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जैनविद्या
गया है पर यदि इसका काव्यशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें तो यह काव्य प्रबन्ध अथवा महाकाव्य की कोटि में परिगणित किया जाना चाहिए। संस्कृत महाकाव्य की परिभाषा निश्चित करनेवाले प्राचीनतम भारतीय आलंकारिक प्राचार्य भामह हैं । उनके अनुसार महाकाव्य लम्बे कथानकवाला, महान् चरित्रों पर प्राघृत नाटकीय पंचग्रन्थियों से युक्त, उत्कृष्ट और अलंकृत शैली में लिखित तथा जीवन के विविध रूपों और कार्यों का वर्णन करनेवाला सर्गबद्ध सुखान्त काव्य ही महाकाव्य होता है । उन्होंने प्राकृत अपभ्रंश के महाकाव्यों के रूप को पारिभाषित कर जो स्वरूप प्रदान किया वह आचार्य दण्डी की परिभाषा के अनुरूप ही है तथापि नवीनता इतनी भर दी है कि उन्होंने लक्षणों को शब्द वैचित्र्य, अर्थ-वैचित्र्य और उभय- वैचित्र्य में रसानुरूप सन्दर्भ, प्रर्थानुरूप छन्द, समस्त लोकरंजकता आदि का होना आवश्यक माना है ।"
आचार्य विश्वनाथ ने पूर्ववर्ती सभी प्राचार्यों के मतों का समाहार करके, पर विशेष रूप से प्राचार्य दण्डी की परिभाषा के आधार पर अपने लक्षरण निर्धारित किए 110 उन्होंने अपनी परिभाषा में महाकाव्य के बाह्य या स्थायी लक्षणों का ही अधिक निर्देश किया है । उन्होंने यह शर्त लगा दी कि महाकाव्य का नायक कुलीन होना चाहिए। आठ या उससे अधिक सर्ग होने चाहिए; वीर, श्रृंगार तथा करुण में से किसी एक रस की प्रधानता होना आवश्यक है । संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश के काव्यशास्त्रीय प्राचार्य भामहपर्यन्त प्राचार्य विश्वनाथ तथा हेमचन्द्राचार्य द्वारा निर्धारित महाकाव्य निकष पर यदि सावधानीपूर्वक विचार करें तो मुनिवर श्री कनकामर द्वारा विरचित करकण्डचरिउ एक महाकाव्य प्रमाणित होता है, मात्र खण्डकाव्य नहीं ।
करकंडचरिउ का कथानक राजकीय सम्भ्रान्त परिवार से सम्बन्धित है । इस ग्रन्थ में करकंड महाराज का चरित्र वर्णन किया गया है । कथ्य अथवा कथानक का नायक उक्त गुणों से भिमण्डित है । चरितनायक की कथा के अतिरिक्त प्रवान्तर नौ कथाएं भी वर्णित हैं । काव्य कथ्य का मुख्योद्देश्य चतुर्वर्गफल की प्राप्ति रहा है। स्वयं नायक करकण्ड महाराज जागतिक पूर्ण विकास को प्राप्त करता है और अपनी प्राणप्रिय जनता को सभी सुख-सुविधाएं जुटाता है । वह स्वयं भी बहुविध संघर्षपूर्ण जीवन जीता है, भोगोपभोग भोगता है और जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने पुत्र को राज्य की बागडोर सौंप कर मुनिराज से दीक्षा ग्रहण कर आध्यात्मिक उत्कर्ष में लग जाता है । यह मोक्ष पुरुषार्थं को चरितार्थ करनेवाला आदर्श है । अवान्तर कथाओं में कवि ने किसी न किसी अर्थ अभिप्राय की अभिव्यंजना की है जो मूल कथा को गति प्रदान करती हैं । कथानक रूढ़ियों की दृष्टि से इस काव्य की कथा प्रत्यन्त समृद्ध है । अनेक स्थलों पर मुख्य कथा में लोक कथाओं की भनक मिलती है । 11
विवेच्य काव्य में मानव जगत् और प्रकृति-जगत् दोनों का सजीव वर्णन उपलब्ध है । करकण्ड के दंतिपुर में प्रवेश करने पर नगर की नारियों की हार्दिक व्यग्रता मुखर हो उठती है । काव्य सौष्ठव की दृष्टि से यह वर्णन अत्यन्त रसपूर्ण तथा आकर्षक बन पड़ा है । 12 कवि देश, नगर, ग्राम, प्रासाद, द्वीप, श्मशान श्रादि के वर्णन में भी अत्यन्त पटु है । सरोवर धान्य