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जैनविद्या
जलयात्रा में पोत और स्वजनों का बिखराव अत्यन्त प्रसिद्ध अभिप्राय है। करकंड के सलिलयान को चोर हर ले जाते हैं। दूसरी नाव तैयार होती है। वह लहरों के वेग से बिखर जाती है। राजा देशान्तर में भटक कर कोंकण जा लगता है और रानी खम्भायत पहुँच जाती है। वहीं, वह एक कुट्टिनी के हाथों पड़ जाती है। जब वह यह कहती है कि बिना ग्रहण के वेश्या शुद्ध नहीं होती तब वह द्यूत में पराजय की शर्त लगाती है। राजा उसे द्यूत में हराता है । दोनों एक दूसरे को पहचान लेते हैं। इसी प्रकार टक्क व्यापारी से अपना घोड़ा भी मोल ले लेते हैं
णिवपहरएँ तुरियई हयसमाणु, ता चोरहिं हरियउ सलिलजाण । रविउग्गमे परवइ णियइ जाव, ण वि पेक्खइ बोहिय तुरउ ताव । खड़ कट्टिवि बंधहु तुरिउ तेव, रयणायर लीलएँ तरहु जेव। . तं रइवि चडिण्णउ सरलराउ, णियघरिणिहे सरिसउ सुयसहाउ । तहो लहरिहिं बंधई तोडियाई, देसंतर राएँ हिंडियाई । ता उड्डिवि सूयउ वडि गयउ रिणउ परवइ लहरिहिं कोंकणहो । तहो घरिणि मणोहर विहिवसई णिय, खंभायच्चहो पट्टणहो। 8.12 तहि लंबझलंबा कुट्टीएँ, सा विट्ठिी ताई वियक्खणीएं। तं णिसुणिवि जंपिउ सुंदराए, इह जूवई जो मई जिणइ माए । सो सोवइ मई सहुँ भणिउ ताएं, ता जिणिया जूर्व पर तियाएं। 8.13 जएण पसिद्धी कित्ति जाहे, देवाविउ गहरणउ तेण ताहे । अप्पणु पुणु रयणिहिं गयउ तेत्यु, सूयएँ सहुँ रमरिण शिविठ्ठजेत्थु । सा भणिय तेण णं मयणदूउ, लइ सुंदरि खेल्लहिं सारिजूउ । सा जित्ती तेण णराहिवई जा हुई मणे विहडप्फडिय। ता ताएं वियाणिवि रिणयरमणु खणे अंगें पंगु समुभिडिय ॥ 8.15
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जावच्छइ तिएं सहुँ तेत्थु राउ, ता तुरय लेवि को वि टक्कु प्राउ । तहि मज्झि णिहालिउ राणएण, किउ ऊहणु ते सहुँ टक्कएण। बोल्लाविउ राएँ णाम लेवि, ता घोडें जोइउ मुहु वलेवि। 8.16
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२ सयलु विहंजिवि दुत्थियाह, सुहभोयणु दिउ भुक्खियाह । जावच्छइ सा तहिं रइ करंति, जिणणाहहो चलाई मणि सरंति । रइवेयई विट्ठउ णियरमणु तहिं हरिसई वड्ढिउ अंसुजलु ।
ता विज्जु चमक्किय कसणतणु सिहिकंतएँ णं जलहरु सजलु ॥ 8.17
यहाँ विषमता के संघर्ष की कसौटी पर मानवीय संभावनाओं की परीक्षा है जिसमें जहां-तहां देव सहायक है । मानव की संभावनाओं के उभार के लिए संघर्ष प्रयोजनीय है ।