SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनविद्या 15 हे पयवय तुहूं सवरणाणुबंधु, महु अक्खहि सुन्दरि णेहबंधु । हा मुद्धि मुद्धि तुहुँ केरण पीय, किं एवहिं ल्हिक्किवि कहिं मि ठीय । हा कुंजर कि तुहुँ जमहो दूउ, कि रोसई महो पडिकूलु हूउ। 5.15 - कन्यापहरण से सम्बन्धित एक उपकारक इतिवृत्त भी है। एक राक्षस राजकन्या का अपहरण कर लेता है। राजा अनुदिन डिडिमि घोष कराता है कि कभी कोई उद्धारक नगर में प्रवेश कर राजा का कार्य साध सके। एक बार दो विद्वान् पुरुष पाए, उन्होंने उस राक्षस को मंत्रों द्वारा द्वेषगलित कर उस कन्या का उद्धार किया। राजा ने उन्हें अति प्रचुर धन से सम्मानित किया ते कहिउ एत्यु णरणाहधूव, णिय मंडई रक्खसें कामरूव । छंडावइ को विण सा वराय, रक्खेरण जित्त परणियर राय । पइपारि गरि उव्वसि वसेइ, तहो भीए को वि ण ऊससेइ । विज्जाहिउ णरु प्रायउ णिएइ, ते कज्जे दिवि दिवि इहु भमेइ। 2.11 गय विणि वि ते रक्खसरिणवासे, परिभमइ रण कवणु वि जासु पासे । पुणु विठ्ठउ रक्खसु कविलकेसु, उच्चारई मंतहो गलियदेसु । ते विक्खिवि राणउ हिट्ठचित्तु, अइपउर पइण्णउ ताहं वित्तु । 2.12 एक अन्य अभिप्राय रमणी रभस से सम्बन्धित है । उनका विभ्रम वस्तु सौन्दर्य की उत्कृष्ट व्यंजना करता है और साथ ही नारी के मनोविज्ञान को भी इंगित करता है। सारा नगर करकण्ड के नगर प्रवेश पर सागर सदृश किस प्रकार विक्षुब्ध है सो पुरवरणारिहिं गुणणिलउ पइसंतउ दिउ पयरे कह। णं दसरहणंदण तेयरिणहि उज्झहिं सुरणारीहिं जह । 3.1 तहिं पुरवरि खुहियउ रमणियाउ, झाणट्ठियमुणिमणदमणियाउ । क वि रहसइँ तरलिय चलिय णारि, बिहडफ्फड संठिय का वि वारि। क वि धावइ णवणिवणेहलुख, परिहाण ण गलियउ गणइ मुख । क वि कज्जल बहलउ अहरे देइ, णयणुल्लएं लक्खारसु करेइ । णिगंथवित्ति क वि अणुसरेइ, विवरीउ डिभु क वि कडिहिं लेइ । कवि णेउरु करयलि करइ बाल, सिरु छडिवि कडियले घरइ माल। णियणंदणु मण्णिवि क वि वराय, मज्जारु ण मेल्लइ साणराय । क वि षावह णवणिउ मणे धरंति, विहलंघल मोहइ घर सरंति । क वि माणमहल्ली मयणभर करकंडहो समुहिय चलिय । थिरथोरपनोहरि मयणयण उत्तत्तकणयछवि उज्जलिय। 3.2.
SR No.524757
Book TitleJain Vidya 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy