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मुनि कनकामर व्यक्तित्व और कृतित्व -डॉ० (श्रीमती) अलका प्रचण्डिया 'दीति'
साहित्य का चरम मानदण्ड रस ही है जिसकी परिधि में व्यष्टि और समष्टि, सौन्दर्य और उपयोगिता, शाश्वत और सापेक्षिकता का अन्तर मिट जाता है । साहित्य की सार्थकता तभी है जब साहित्यकार अपने मानस की व्यापकता तथा गहराई से मानव जीवन की सम्पूर्णता का संचय कर उसे निज की अनुभूति एवं भावों के पुटपाक में परिपाक कर सुन्दर उद्घाटन करता है । भारतीय साहित्य की एक सुदीर्घ परम्परा का इतिहास अपभ्रंश साहित्य है। मुनिश्री कनकामर अपभ्रंश वाङ्मय के प्रमुख ज्योतिर्मय हस्ताक्षर हैं। मुनिश्री का व्यक्तित्व सदाचरण का शिखर है और उनका काव्यत्व धार्मिक गंध से मुखर है । वस्तुतः कविमनीषी कनकामर का व्यक्तित्व और कृतित्व ज्ञान और क्रिया का अद्भुत समन्वित समीकरण है । यहां मुनिश्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालना हमारा मुख्य लक्ष्य है।
जैन कवियों की नाई मुनिश्री कनकामर का स्वभाव प्रात्मपरिचय की अभिव्यक्ति करना कदापि नहीं रहा है । प्रसंगवशात् अपने विषय में विशेष कथन जीवन-बिन्दुओं का स्पर्शमात्र है तथापि कविश्री का जीवन-संदर्भित-वृत्त स्पष्ट सा है। ग्यारहवीं शती के मध्यभाग में मुनिश्री कनकामर ब्राह्मण वंश के चंडऋषि गोत्र में उत्पन्न हुए थे । यथा
श्री वञशाखाधुरिवत्रसेनान्नागेन्द्रचन्द्रादिकुलप्रसूतिः ।