SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या कविश्री ने अपनी रचना को निर्दोष स्वीकारा है । मुनिश्री नयनंदि का कहना है कि रामायण में राम और सीता का वियोग है, महाभारत में यादव, पाण्डव और धृतराष्ट्र के वंशों का भंयकर क्षय हुमा है परन्तु सुदर्शन के चरित में कलंक की एक रेखा भी नही है । यथा - रामो सीयविमोयसोयविहरं संपत्त रामायणे। जादा पंडव धायरट्ठ सदवं गोतंकली भारहे। डेडाकोडिय चोररज्जणिरदा माहासिदा सुखए । णो एक्कं पि सदसणस्स चरिने दोसं समुम्भासिदं । 3.1 प्रस्तुत कथन कवयिता के प्राध्यात्मिक दृष्टिकोण का परिचायक है। प्रस्तुत प्रालेख में 'सुदंसणचरिउ' का साहित्यिक मूल्यांकन करना हमारा मुख्याभिप्रेत है। कथावस्तु-कविश्री के महाकाव्य 'सुदंसणचरिउ' की प्रथम संधि में कथा की परम्परा'-वंदना, प्रात्मलघुता आदि परिलक्षित हैं । यथा मह एकहि विणि वियसिय-वयण मणे गयणाणंदि वियप्पइ । सुकवितें चाएं पोरिसेण जसु भुवम्मि विढप्पद ॥ सुकवित्ते ता हउँ अप्पवीण, चाउ वि करेमि कि दविण-हीण । सुहगत्तु तह व दूर णिसिबु, एवंविहो वि हउं जस-विलुदु । णिय-सत्तिए तं विरयेमि कन्व, पद्धडिया-बंधे जं अउन्छ । छा कीरह जिण-संभरण चित्ते, ता सई जि पवट्टइ मइ कवित्ते । जल-बिंदु उ गलिणीपत्तजुत्तु, कि सहइ ग मुत्ताहल-पवित्तु ॥ 1.1,2 दूसरी सन्धि में गौतम गणधर द्वारा कथा प्रारम्भ होती है-भरतक्षेत्र के अंगदेश में चम्पापुरी नगर था, उसमें धाड़ीवाहन राजा रहता था। उसकी रानी अभया थी। उसी. नगर में ऋषभदास सेठ था । उसकी पत्नी का नाम अहंदासी था। उनके यहां पूर्वजन्म का एक मोपाल णमोकार मंत्र के प्रभाव से सुदर्शन नाम से पुत्र हुआ। वह प्रनिन्द्य सुन्दर और मेधावी था। युवतियों को प्राकृष्ट करने में उसे कामदेव समझिए। सुदर्शन सागरदत्त की लड़की मनोरमा पर रीझ गया । वह उसे पाने के लिए व्याकुल हो उठा। दोनों का विवाह हुमा । घाड़ीवाहन राजा की पत्नी अभया और कपिला नाम की एक अन्य स्त्री भी उस पर प्रासक्त हो गई । रानी ने पण्डिता नामक धाय के माध्यम से सुदर्शन से मिलने का उपाय किया। किसी तरह सुदर्शन रानी के पास पहुंचा पर रानी उसे फुसलाने में असमर्थ रही। तब उसने सुदर्शन पर उल्टा आरोप लगाकर उसको पकड़वा दिया। उस समय व्यन्तर देवता ने उसकी रक्षा की । व्यन्तर से युद्ध में घाड़ीवाहन हार गया। अन्त में राजा और सुदर्शन संन्यासी बन गये । अभया और कपिला नरक गई। जन्म-जन्मान्तरों के वर्णन के साथ कथा परिसमाप्त होती है। प्रस्तुत कथानक से स्पष्ट है कि उसकी केन्द्रीय घटना एक स्त्री के परपुरुष के ऊपर मोहासक्त होकर उसका प्रेम प्राप्त करने का एक उत्कट प्रयत्न करना है । इसके दृष्टान्त प्राचीनतम ग्रन्यों से लेकर वर्तमानकालीन साहित्य तक में प्राप्त हैं। वस्तुतः आकर्षक रूपसौन्दर्य ही इस महाकाव्य के आख्यान का माधार है । यह धार्मिक उद्देश्य से लिखा गया महा
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy