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________________ सुदंसणचरिउ का साहित्यिक मूल्यांकन -डॉ. मादित्य प्रचण्डिया 'दीति' मालव देश के धारा नगर-निवासी कुंदकुंदान्वय की प्राचार्य परम्परा के सुनक्ष, पदमनंदी, विष्णुनंदी, नंदिनंदी. विश्वनंदी, विशाखनंदी, रामानंदी की श्रृंखला में माणिक्यनंदी विद्य के विनीतस्वभावी शिष्य, काव्य एवं छंदशास्त्र के सुज्ञाता, संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश के प्रकाण्ड पण्डित, ग्यारहवीं शती के निर्दोष एवं जगत्प्रसिद्ध अपभ्रंश कवयिता मुनिश्री नयनंदि विरचित महनीय चरितात्मक महाकाव्य 'सुदंसणचरिउ' का प्रणयन परमारवंशी त्रिभुवननारायण श्रीनिकेत नरेश भोजदेव के राज्य के धारा नगरस्थ जैन मन्दिर के महाविहार में वि. सं. 1100 में हुआ । यथा - पारामगामवरपुरणिवेसे, सुपसिखमवंतीणामवेसे । ................... तहि प्रत्यि धारणयरी गरिन्छ । तिहवणणारायणसिरिणिकेउ तहिं गरवा पुंगमु भोयदेउ । णिवविक्कम कालहो ववगएसु, एयारह संवच्छरसएसु । तहिं केवलचरिउ प्रमच्छरेण गयगंदि विरइर कोच्छरेण ॥ 12.10 कविश्री नयनंदि द्वारा बारह संन्धियों के इस प्राध्यात्मिक कथात्मक चरितकाव्य में जैनधर्म के विख्यात महामंत्र पंचनमस्कार का माहात्म्य प्रतिपादन हेतु शास्त्रीय परम्परा के विपरीत श्रेष्ठी सुदर्शन के चरित्र का अंकन बखूबी हुमा है । सुदर्शन का चरित जैन साहित्य का बहुश्रुत तथा लोकप्रिय कथानक है । प्रबन्धकाव्यों की परम्परा के अनुरूप अनेक नर-नारी, भौगोलिक प्रदेश, प्राकृतिक दृश्य प्रादि का अलंकृत भाषा में वर्णन कवि-काव्य में दृष्टिगत है।
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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