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________________ 88 जनश्चिा यशोधना-यशोधना विदेहस्थ पुष्कलावती देश की पुंडरिकिणी नगरी के राजा वजदंत की प्रमुख रानी है जो स्वच्छ कमल जैसे मुखवाली कमलदल के समान नेत्रोंवाली, कमल सडश ही उज्ज्वल शरीरवाली स्वयं कमला अर्थात् लक्ष्मी के समान बतायी गई है । भवदत्त का जीव मरकर स्वर्ग में देव हुआ था वह पुनः सागरचन्द्र के रूप में इसी महादेवी के गर्भ से जन्म लेता है19 । कथाप्रवाह में सागरचन्द्र की माता का उल्लेख करने हेतु ही यशोधना का प्रसंग उपस्थित हुआ है। वनमाला-वनमाला विदेहस्थ पुष्कलावती देश में ही वीताशोक नगरी के चक्रवर्ती राजा महापद्म की छयानवे हजार रानियों में प्रमुख रानी है, जो अपनी मुखकांति से चन्द्रमा को जीतनेवाली बतायी गई है20 । भवदेव के जीव शिवकुमार की माता के रूप में इसका कथन करना पड़ा है। जयभद्रा, सुभद्रा, धारिणी और यशोमती-ये चारों ही चंपानगरी के समृद्ध व सुचित्त श्रेष्ठी सूर्यसेन की पत्नियां हैं22 । पूर्वोपार्जित पाप के कारण जब इनका पति सूर्यसेन सैकड़ों व्याधियों से ग्रस्त होने से अपनी पत्नियों के प्रति शंकालु व ईर्ष्यालु होकर अमानवीय कृत्य करने लगा तो दुःखी होकर वे परस्पर कहती हैं-"यह दुष्ट स्वभाव-वाला दुर्जन मर क्यों नहीं जाता जो चाचा, मामा जैसे पूज्यजनों को हमारा शयनीय समझने लगा है23 ।' बसंत ऋतु आने पर सूर्यसेन ने अपनी इन चारों ही पत्नियों को अलंकृत करके यात्रोत्सव में भेजा। वहाँ भी चारों ने नाग की पूजा कर अपने हृदय का दुःख कहा कि हे परमेश्वर ! बस इतना करना कि सूर्यसेन के समान कांत मत देना24। फिर वे वहीं स्थित जिनमंदिर में प्रहंत भगवान् व सुमति नामक मुनिपुंगव की वंदना करती हैं और मुनिश्री से श्राविका के व्रत ले लेती हैं25 | व्याधि संतप्त सूर्यसेन के मर जाने पर चारों ही अपने द्रव्य से जिनभगवान् का मंदिर बनवाती हैं और सुव्रता नामक प्रायिका से दीक्षा लेकर तपश्चरण करने लगती हैं। अंत में समाधिपूर्वक मरण कर वे विद्युन्माली देव की क्रमशः विद्युत्वती, विद्युत्प्रभा, प्रादित्यदर्शना और सुदर्शना नाम की प्रियायें बन जाती हैं26 । जो आगे के भव में जम्बूकुमार की चार पत्नियों क्रमशः पद्यश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री के रूप में जन्म लेती हैं। श्रीसेना-यह मगधदेशस्थ हस्तिनापुर के राजा विश्वंधर की रानी और विद्युच्चर की माता28 है। कामलता-यह राजगृह नगर में तरुणों की प्यारी वेश्या है। काम की लता के समान सुन्दर होने से इस कामिनी ने अपना कामलता नाम सार्थक कर दिया है। चौरकर्म में प्रवीण विविधकलाविद् विद्युच्चर की प्रेयसी भी यही है29 | काव्य में इसकी कोई विशिष्ट भूमिका नहीं है। गोत्रवती—यह राजगृही के धनदत्त नामक संतोषी वणिक् की पत्नी व जम्बूस्वामी के पिता अरहदास की माता है30 । जिनमती-यह श्रेष्ठी अरहदास की उद्दाम लावण्यवती कुलवधू है31 तथा कवि के चरितनायक जम्बूकुमार की माता के रूप में चर्चित हुई है। चरमशरीरी व तद्भवमोक्षगामी जीव की
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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