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________________ जंबूसामिचरिउ का साहित्यिक मूल्यांकन -डॉ. प्रादित्य प्रचण्डिया 'दीति' मालवा देश के गुलखेड़ में जन्मे लाड-वर्ग गोत्र के ग्यारहवीं सदी के प्रथम पाद के अपभ्रंश महाकवि वीर द्वारा विरचित महत्त्वपूर्ण चरितात्मक प्रबन्धकाव्य "जंबूसामिचरिउ" का रचनाकाल विक्रम संवत् 1076 है । इस ग्रंथ के प्रणयन की प्रेरणा कवयिता वीर को धक्कड़वंशीय मधुसूदन के पात्मज तक्खड़ नामक श्रेष्ठि से प्राप्त हुई । कवि श्रीवीर को अनेक राजकार्य, धर्म, अर्थ, काम आदि गोष्ठियों में समय बिताते हुए इस चरित ग्रंथ को रचने में लगभग एक वर्ष लगा । इस ग्रंथ में वीर कवि ने अपने पूर्ववर्ती प्राकृत और अपभ्रंश के अनेक कवियों का स्मरण किया है। समकालीन कवियों में सोमदेव सूरि, कवि महासेन, कवि धनपाल, पुष्पदंत तथा हरिषेण का उल्लेख भी कविश्री ने अपनी इस काव्य-रचना में किया है । इस महाकाव्य में जैनधर्म के अंतिम केवली जंबूस्वामी के जीवन-चरित का ग्यारह सन्धियों में कविश्री द्वारा शब्द-गुफन हुमा है। जंबूस्वामी का चरित जैन साहित्य में विख्यात कथानक है । संस्कृत और प्राकृत में इस कथानक को लेकर अनेक रचनाएं रची जा चुकी हैं । गुणपाल कृत "जंबूचरियं" का इतिवृत्त ही प्रस्तुत "जंबूसामिचरिउ" महाकाव्य की मूल कथावस्तु का मुख्याधार है । इसमें परिवर्तन, परिवर्द्धन, संशोधन करके कवि वीर ने अपनी इस काव्यकृति को चरितात्मक प्रेमाख्यान महाकाव्य का रूप दे दिया है । प्रस्तुत प्रालेख में "जंबूसामिचरिउ" का साहित्यिक मूल्यांकन करना हमारा अभिप्रेत है । कथावस्तु वीर कवि के इस महाकाव्य में ऐतिहासिक महापुरुष जंबूस्वामी के पूर्वभवों तथा उनके विवाहों और युद्धों का वर्णन अभिव्यजित हुआ है । जंबूस्वामी महर्षि सुधर्मा से अपने
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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