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________________ जनविद्या 113 ___ कणो (कण) 1/1 जेम (अ)=जिस प्रकार हालाहलस्सप्पसत्थो [(हालाहलस्स)+ (अप्पसत्थों)] हालाहलस्स (हालाहल) 6/1 अप्पसत्थो (अप्पसत्थ) 1/1 वि सुहासायरंदूसिउं [(सुहा)-(सायर) 2/1)] दूसिउं (दूस प्रे-+दूस'-+दूसिउं) हेकृ नो (अ) = नहीं समत्थो (समत्थ) 1/1 वि। + जिन धातुओं में आदि स्वर दीर्घ होता है उन धातुओं से प्रेरणार्थक भाव प्रकट करने के लिए कभी-कभी किसी भी प्रेरणार्थक प्रत्यय को नहीं जोड़ा जाता है। (हे. प्रा. व्या., 3-150) प्रविग्धो (अविग्ध) 1/1 वि तए (तुम्ह) 3/1 देव (देव) 8/1 सिट्ठो (सिट्ठ) 1/1 वि समग्गो (समग्ग) 1/1 वि तिलोयग्गगामीण [(तिलोय) + (अग्ग) + (गामीण)] [(तिलोय)-(अग्ग)-गामि 4/4 वि] भव्वाण (भव्व) 4/2 मग्गो (मग्ग) 1/1 । पडतो (पड) वकृ 1/1 जणो (जण) 1/1 मोहकालाहिखद्धो [(मोह) + (काल)+ (अहि) + (खद्धो)] [(मोह)-(काल)-(अहि)-(खद्ध) 1/1 वि] किमो (किन) भू कृ 1/1 देव (देव) 8/1 वायासुहाए [(वाया)-(सुहा) 3/1] विसुद्धो (विसुद्ध) भूकृ 1/1 अनि । तुमं (तुम्ह) 3/1 स पत्तसंसारकूवारतीरो [(पत्त) भूक अनि-(संसार)(कूवार)-(तीर) 1/1] तुमं (तुम्ह) 3/1 स सामि (सामि) 8/1 संपुण्णविज्जासरीरो [(संपुण्ण) वि-(विज्जा)-(सरीर) 1/1] । तए (तुम्ह) 7/1 स नाणजोईए [(नाण)-(जोइ) 3/1] उदित्तमेयं [(उद्दित्तं)+ (एयं)] उद्दित्तं (उद्दित्त) भू कृ 1/1 अनि एयं (एय) स 1/1 समुन्भासए [(सं)+ (उन्भासए)] संपूर्णतः उन्भासए (उब्भास-+उब्भासन) भूक 3/1 चंदसूराण [(चंद)(सूर) 6/2] तेयं (तेय) 1/11 मुहाभासयं [(मुह) + (आभासयं)] [(मुह)-(आभास) 2/1 स्वार्थिक य] वप्पणे (दप्पण) 7/1 पेक्खमाणा (पेक्ख) वकृ 1/2 मुहं (मुह) 1/1 चेव (अ) =ही मण्णंति (मण्ण) व 3/2 सक बाला (बाल) 1/2 अयाणा (अयाण) 1/2 । तहा (अ) =उसी प्रकार वत्थुरूवं [(वत्थु)-(रूव) 3/1[ अहंबुद्धिलुद्धा [ (ग्रह)(बुद्धि)-(लुद्ध) भूकृ 1/2 अनि] सरूवं (सरूव) 2/1 निरूवंति (निरूव) व 3/2 सक ते (त) 1/2 सवि नाह (नाह) 8/1 मुद्धा (मुद्ध) 1/2 वि । तुम (तुम्ह) 2/1 स झायमाणस्स (झा+झाय) + वक़ 6/1 नाणम्मि (नाण) 7/1 लोणं (लीण) 1/1 वि मणं (मण) 1/1 होउ (हो) विधि 3/1 मे (अम्ह) 6/1 नाह (नाह) 8/1 संकप्पखीणं [ (संकप्प)-(खोरण) 1/1 वि] । + कभी कभी षष्ठी का प्रयोग तृतीया अर्थ में पाया जाता हैं। (हे. प्रा. व्या. 3-134) हे देव ! तुम सर्वज्ञ (हो) (और) आभा से भरपूर (हो), (तो) क्या मैं अज्ञानी (आपकी) प्रशंसा के लिए समर्थ हूँ ?
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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