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________________ 24 जैनविद्या इस प्रकार कवि अपनी विनम्रता के साथ-साथ स्वाभिमान को भी सजीव अभिव्यक्ति देता है। कथा का प्रारम्भ कवि श्रेणिकराज के प्रश्न और गौतम गणधर के उत्तर की परम्परा से करता है । इस कथा का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि इस "प्रेमकथा" को कवि ने धर्म के प्रावरण से ढक कर मनोहारी बना दिया है । वास्तविकता यह है कि कवि ने कथानायक के रूप में किसी राजा अथवा राजकुमार को न लेकर साधारण वणिक्पुत्र "भविष्यदत्त" को लिया है जिससे कथा में लोकचेतना को सहज ही अभिव्यक्ति मिली है। इस कथा के माध्यम से कवि धनपाल बहुविवाह के दुष्परिणाम को वाणी देता है और साथ ही उसने साध्वी तथा कुटिल स्त्री के अन्तर को सरूपा एवं कमलश्री के माध्यम से व्यक्त किया है । कवि सामाजिक मूल्यों को निरन्तर वाणी देने का उपक्रम करता है । परम्परा से प्राप्त त्याग, उदारता, स्नेह, सद्भाव एवं सहानुभूति जैसे मानवमूल्यों को कवि धनपाल यत्र-तत्र कथा के सूत्रों में गूंथ देता है । धार्मिक एवं सद्वृत्ति प्रधान पात्रों का अभ्युदय “भविसयत्तकहा" में सर्वत्र दिखाया जाना कवि की महान् दृष्टि का परिचायक ही है । पश्चात्ताप का महत्त्व कवि निरूपित करता है वोहत्तणसाउ महु इहलोयवि संभविउ । दुहदुम्मियदेहु दोविं दोउ परिम्भमिउ । 6. 20. इस प्रकार "सत्" के समक्ष "असत्" की पराजय दिखाना महत्त्वपूर्ण है। . कवि धनपाल ने इस कथा को दो खण्डों में विभक्त किए जाने का संकेत कृति की अन्तिम सन्धि में दिया है बिहिखंडहि बावीसहि संधिहि । परिचितियनियहेउनिबंधिहि ॥ 22.9.8 लेकिन डॉ० रामसिंह तोमर “भविसयत्तकहा" की कथा के तीन भाग होना मानते हैं-"भविष्यदत्त कथा का कथा-प्रसंग काफी लोकप्रिय और प्राचीन प्रतीत होता है । कृति के कथा भाग के तीन स्वतन्त्र खण्ड लगते हैं ।"8 पूरी कृति में कवि वस्तुतः सत् एवं असत् के बीच द्वन्द्व दिखाता है । कथानायक भविष्यदत्त एवं प्रतिनायक बंधुदत्त क्रमशः उदात्त एवं कुटिल मनोवृत्ति के प्रतीक ही हैं । इस से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि कवि धनपाल का मूल उद्देश्य उदात्त एवं महत्तर जीवनमूल्यों की स्थापना करना ही है ।
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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