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________________ जैन विद्या 109 संवत् 1589 वर्षे । कार्तिक मासे शुक्लपक्ष। मार्गसिर मासे कृष्णपक्षे द्वेज वृहस्पतिवासरे श्री मूलसघे नंद्याम्नाये वलात्कारगणे सरस्वत्ती गच्छे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदिदेवास्तस्पट्ट भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवा स्तत्पट्ट भट्टार श्री जिनचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेवास्तत्सिष्य मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्रस्तदाम्नाये अजमेर महागढ वास्तव्ये राव श्री जगमल राज्य प्रवर्तमाने खंडेलवालान्वये गोधा गोत्रे । संघभारधुरंधर सं० पारस तद्भार्या पौसिरि तयोः पुत्राः प्रथम जिनपूजापुरंदर । सं० फाल्हा द्वितीय सं० साधू तृतीय जिनपूजपुरंदर सं० दामा चतुर्थ सं० । हासा । सं० । फाला भार्या फल्हसिरि । 9. वेष्टन सं० 757/पत्र सं० 170/साइज-9x48"/अपूर्ण प्रतिभीगी है। . 10. वेष्टन सं. 758/पत्र सं. 140/साइज-11x5"। प्रति भीगी और जीर्ण है। __अथ संवत्सरेस्मिन् श्री नृपबिक्रमादीत्यगताब्दः संवत् 1582 वर्षे श्रावण सुदि 11 रविवासरे कुरुजांगलदेसे श्रीपालंव सुभस्थाने श्री विराहिम राज्य प्रवर्त्तमाने श्री काष्टासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे उभयभाषाप्रवीण तपनिषिः श्री माहवसेनदेवा: तत्प? सिद्धान्तजलसमुद्रः भट्ठारक श्री उद्धरसेनदेवाः तस्पट्ट विवेकलोकेकमलिनीविकासनक दिनमणिः भट्टारक श्री देवसेनदेवाः तत्पट्टे कविविद्याप्रधान भट्टारक श्री विमलसेनदेवाः तत्पट्टे भट्टारक श्री धर्मसेनदेवाः तत्पट्टे भट्टारक श्री गुणकीर्तिदेवाः तत्पट्टालंकार श्रीयसःकोतिदेवाः तत्पट्ट वादीभकुंभस्थलविदारणफकेसरि भट्टारक श्री गुणभद्रसूरि तस्य शिष्य चारित्रचूड़ामणि मंडलाचार्य मुनि क्षेमकीत्ति तदाम्नाये अग्रोतकान्वये गर्गागोत्रे वसेईवास्तव्ये पंचमी उद्धरणधी श्रावकाचारदक्ष साधु छाजू तद्भार्या साधी तस्य पुत्र तीन प्रथम पुत्र साधुधी दुतिय पुत्र साधु पाल्हा त्रितिय पुत्रु साधु लाडमु तद्भार्या साध्वी कल्हो तस्य पुत्र तीनि प्रथम पुत्र साधु गोल्हे तद्भार्या साध्वी प्यारी तस्य पुत्र चारि प्रथम पुत्रु देवगुरुसास्त्रभक्तु सास्त्रदानदायकु साधु पचाइणु साधु गेल्हे दुतिय पुत्रु साधु रणमलु त्रितिय पुत्रु साधुराज चतुर्थ पुत्रु साधु भोजराजु साधु लाडम दुतिय पुत्रु पंडित गुण विराजमान पंडित हरियालु तद्भार्या सीलतोयतरंगिणी विनयवागेस्वरी साध्वी सरो तस्य पुत्र तीनि प्रथम पुत्रु साधुजीवंदु दुतिय पुत्रु साधु देईदा त्रिति पुत्र साधु माणिकचंदु साधु लाडम त्रितियपुत्रु साधु सिउराजु तद्भार्या साध्वी सुनखा पंचमी उद्धरणधीर साधु गेल्हे सुतु साधु पचाइणु तेन इदं श्रुतपंचमी भविसदत्त सास्त्र लिखाततं । पंचमी उद्धरणधीर श्रावकाचारदक्ष चतुर्विधदानकल्पवृक्ष साधु जगमल उपकारेन ॥छ।। 13u...
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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