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जनविद्या
कवि के काव्यों में उक्तिवैचित्र्य भी देखने को मिलता है । परोपकार ही मनुष्य का भूषण है इस पर जोर देने के लिए कवि ने अठारह विभिन्न मंडनों (भूषणों) की कल्पना की है
भुवणहु मंडणु परहंतु देउ माणिणिमुहमंडणु मयरकेउ । वेसहि मंडण वइसिउ णिरुत्त ववहार मंडणुहु चायवित्त ।
म.पु. 8.15.5.6 कवि की छन्द-योजना भी अद्वितीय है। मात्रिक तथा वर्णिक छन्दों के विभिन्न प्रकारों का प्रयोग कवि के काव्यों में सर्वत्र दिखाई देता है।
इस प्रकार महाकवि पुष्पदंत ने अपभ्रंश भाषा के श्रेष्ठ कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है । इनकी रचनाओं में सुकोमल पद-विन्यास, गूढ़ कल्पना, प्रसन्न भाषा, अलंकार-छंद शैली की रमणीयता, अर्थगम्भीरता आदि काव्यतत्त्वों का अच्छा समावेश हुआ है। वे काव्य-प्रतिभा के अनोखे धनी सिद्ध होते हैं जिसका निदर्शन उनकी काव्य-कृतियों में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है।
वान !
णेहु व्व दाणेण, पारिण व्व पारणेण ।
अर्थ-दान द्वारा स्नेह दृढ़ होता है, प्राणदान द्वारा प्राणी में कृतज्ञता भाव प्रगट होता है।
–जस० 1.17.5