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संस्थान में महाकवि पुष्पदंत के
ग्रन्थों की पाण्डुलिपियां -श्री मुन्नालाल जैन
वर्तमान में ज्ञात अपभ्रंश के महाकवियों में स्वयंभू के पश्चात् पुष्पदन्त का नाम आता है। अपभ्रंश के ही कवि वीर ने अपने पूर्व में होनेवाले इस भाषा के जिन तीन महाकवियों का नाम गिनाया है उनमें भी पुष्पदन्त का नाम सम्मिलित किया है। इससे पुष्पदन्त की महत्ता का सरलता से मूल्यांकन किया जा सकता है ।
संयोग से जनविद्या संस्थान के पाण्डुलिपि सर्वेक्षण विभाग में प्राचीनतम पाण्डुलिपि पुष्पदन्त के महापुराण की वि०सं० 1391 की लिपीकृत है । उनके एक एक ग्रन्थ की कई कई पाण्डुलिपियां हैं जिनकी प्रशस्तियां भी ऐतिहासिक दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है । इन पाण्डुलिपियों का उनकी प्रशस्तियों सहित संक्षिप्त परिचय नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है
1. वेष्टन संख्या 799 । पत्र संख्या-398 । पूर्ण । प्राकार 32x101 | लिपिक पं० गंधर्व पुत्र चाहड़। लिपि स्थान-योगिनीपुर । लिपि समय-संवत् 13911