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________________ और उत्साह से करते हैं जिस प्रकार कि प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी आदि भाषाओं में रचित पूजाओं को । यह अलग बात है कि भक्त यह जानते हैं या नहीं कि जो पूजा वे कर रहे हैं वह अपभ्रंश भाषा की है। ऐसी कुछ पूजाओं के नाम हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं जो 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित 'ज्ञानपीठ पूजाञ्जलि' में संगृहीत हैं1. देव जयमाला-'वट्टाणुद्वाणे जणु धणदाणे........................' 2. शास्त्र जयमाला-'संपइ सुहकारण कर्मवियारण................ 3. गुरु जयमाला -'भवियह भवतारण सोलहकारण-............' 4. सोलहकारण पूजा की जयमाला-'भव भविहिँ निवारणं................ 5. दशलक्षण पूजा में अंगपूजा के प्रत्येक अंग का पूर्णा_-'उत्तम खममद्दव.............' मादि एवं अन्य । . . '.. इनमें से संख्या 1 देवजयमाला महाकवि पुष्पदत्त द्वारा विरचितं 'जसहरचरित' की संधि । का अन्तिम पत्ता और संधि द्वितीय है जो कि कथित ग्रन्थ के मंगलाचरणरूप में है। संख्या 23 एवं 4 जयमाला के कर्ता का पता प्रभी अजात ही प्रतीत होता है। संख्या 5 की इस अंग की पूजात्रों के महार्य खेमसिंह के पुत्र होलू के कहने से महाकवि रयधू द्वारा रधिन है जैसा कि निम्न पंक्ति से प्रकट है एणं उवाएं लब्भई सिवहरू, इम 'रहधू' बहु मणइ विणययरु । भो खेमसिंह सुय भव्व विणयजुय, होलुव मण इह करहु थिएं ॥ जैसाकि ऊपर बताया गया है, अपभ्रंश भाषा का साहित्य भी अन्य भाषाओं के साहित्य की तरह ही अनेक विधाओं में रचा मया है। यद्यपि इस दिशा में अभी बहुत कम प्रयत्न हुआ है किन्तु अब तक जितना भी साहित्य उपलब्ध हुआ है उसकी श्रीवृद्धि करने में राजस्थान के साहित्यकारों का योगदान भी कम नहीं है। उनमें से कुछ के नाम निम्न प्रकार 1. त्रिभुवनगिरि के निवासी मुनि विनयचन्द जिनकी चूनड़ी शीर्षक रचना इसी पत्रिका के - प्रथम पत्र में प्रकाशित हो चुकी है । (13वीं श. वि.) । 2. सत्यपूरीय महावीर उत्साह के कर्ता सांचोर निवासी कवि धनपाल । ये 'भविसमत्तबहा' के कर्ता धनपाल धक्कड़ से भिन्न हैं । (11 वीं श. वि.)।।.. . 3. 'धम्म परिक्खा' के रचनाकार चित्तौड़ निवासी श्री हरिषेण । (11 वीं श. वि.) । 4. 'जिणदत्तचरिड' के कर्ता त्रिभुवनगिरि के निवासी कवि लक्खण । (13 वीं श. वि.) । 5: .. 'पज्जुष्णकहा' के कर्ता सिरोही निवासी कवि सिंह । (13 वीं स. वि.)। .
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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