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प्रास्ताविक
जैनविद्या संस्थान श्रीमहावीरजी की अध्ययन एवं शोधपत्रिका 'जैन विद्या' का यह तृतीय अङ्क है । जैसा पूर्व के द्वितीय अंङ्क में बताया गया है, अपभ्रंश भाषा के सन्दर्भ में महाकवि पुष्पदन्त (10वीं शती ई०) का स्थान भी महाकवि स्वयंभू के समान ही प्रमुख है। विख्यात विद्वान् राहुल सांकृत्यायन द्वारा सम्पादित 'हिन्दी काव्यधारा' नामक अपभ्रंश काव्यों के संकलन एवं अपभ्रंश भाषा के कई अन्य इतिहासकारों की रचनाओं में भी महाकवि स्वयंभू के पश्चात् दूसरा स्थान महाकवि पुष्पदन्त को ही प्रदान किया गया है। जैनविद्या संस्थान का एक प्रमुख उद्देश्य प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, तमिल, कन्नड, राजस्थानी आदि विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचित-प्रकाशित अथवा अप्रकाशित जैन रचनाओं का प्राधुनिक शैली में सम्पादन, प्रकाशन, अध्ययन, शोध-खोज करना व कराना तथा उनको यथासम्भव हिन्दी अनुवादसहित प्रस्तुत करना है जिससे वह साधारण पाठकों को भी बोधगम्य हो सके । अपभ्रंश में मानव-जीवन से सम्बन्धित कई विषयों पर लिखा गया है। स्तोत्र, प्रबन्धकाव्य, मुक्तक, चरितकाव्य, कथा आदि साहित्य की सभी विधाओं से अपभ्रंश साहित्य भरा-पूरा है जिनमें दर्शन, इतिहास, पुराण, संस्कृति आदि विषयों पर अति सरल एवं भावपूर्ण रचनाएं लिखी गई हैं। यह विशेषकर जैन ग्रंथ भण्डारों की खोज के आधार पर सिद्ध हो चुका है।
__ अपभ्रंश भाषा के महत्त्व को देखते हुए ही जैन विद्या संस्थान श्रीमहावीरजी ने अपनी शोधपत्रिका के प्रारम्भिक कुछ अड्डों को केवल इसी भाषा को समर्पित करने का निश्चय किया है । इसी दृष्टि से पत्रिका के प्रथम दो अंक 'स्वयंभू विशेषांक' एवं 'पुष्पदन्त विशेषांक' के रूप में पाठकों तक पहुंचाये जा चुके हैं। महाकवि पुष्पदन्त की रचनाओं से सम्बन्धित इतने शोध-लेख प्राप्त हए हैं कि हमें जैनविद्या के इस तृतीय अक को भी 'पुष्पदन्त-विशेषांक, खण्ड-2' के रूप में प्रकाशित करना पड़ा। इसमें महाकवि की विशेषतः 'जसहरचरिउ' एवं 'णायकुमारचरिउ' इन दो कृतियों का देश के जाने-माने साहित्यमनीषियों द्वारा भिन्न-भिन्न दृष्टियों से अध्ययन एवं मनन किया गया है । साथ ही अपभ्रंश भाषा की दो लघु कृतियों का, सहसम्पादक पं० भंवरलाल पोल्याका, जैनदर्शनाचार्य, साहित्यशास्त्री कृत हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन किया जा रहा है।
ऐसा समझा जाता है कि अपभ्रंश वर्तमान में एक मृत भाषा है और समाज में इस भाषा का उपयोग नहीं हो रहा है किन्तु ऐसा समझना अथवा कहना ठीक नहीं है । आज भी श्रद्धालु भक्तजन अपभ्रंश भाषा में पद्यबद्ध पूजाएं नित्य एवं विशेष पर्वो पर उसी भक्तिभाव