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________________ जनविद्या प्राचार्य-"प्रिय बटुक ! तुम्हारा प्रश्न बहुत सुन्दर है। यह यशोधरचरित का आख्यान कवि की कल्पना-प्रसूत कृति नहीं । इसका आधार पूर्व परिचित लगभग 75 रचनाएं हैं जिनमें यह कथानक वर्णित है। जिनमें 29 रचनाएं ऐसी हैं जिनमें कवि या रचयिता के नाम भी हैं। ये रचनाएं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल आदि भाषाओं में हैं । श्री सोमदेव कृत "यशस्तिलक" (सन् 959 ई० की रचना) इसका प्रधान आधार है । पुष्पदंत ने श्री सोमदेव का ही अनुसरण किया है। यद्यपि यह आख्यान बहुत पहिले ही लोकप्रिय रहा है । हां, कवि पुष्पदंत ने इसमें अपनी मनोहर काव्यशैली से नूतन लोच व आकर्षण का पुट डाला है जिससे यह उत्तम काव्य-चरित बन गया है । दूसरा ब्रह्मचारी-"गुरुदेव, बतायेंगे कि आख्यान या चरित-काव्यों में किन तत्त्वों का समावेश होता है ? और क्या वे सब तत्त्व यशोधरचरित में विद्यमान हैं ?" प्राचार्य-"प्रिय शिष्य ! चरितकाव्य में निम्नलिखित तत्त्वों का होना आवश्यक आ hc - 1. नायक के पूर्वजन्मों का परिचय, 2. उसके वर्तमान जन्म के कारण, 3. नायक के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनायें, 4. कथा-सम्बन्धित देश, नगर, युद्ध आदि का वर्णन, 5. अनेक घटनाओं को एक में गुम्फित करने की कला, 6. चरितग्रंथों में प्रलौकिक, अप्राकृतिक तथा प्रमानवीय घटनाओं व शक्तियों का वर्णन । .. ये सब तत्त्व "यशोधरचरित" में स्पष्टतः मनोहर ढंग से पाये जाते हैं।" तीसरा ब्रह्मचारी-"गुरुदेव ! कृपा कर यह बतावें कि यह यशोधर-चरित या आख्यान कवि पुष्पदंत द्वारा कब लिखा गया ? ___प्राचार्य-"प्रिय शिष्य ! इस पाख्यान का रचनाकाल मुझे पहले ही कहना चाहिये था। तुमने यह अच्छा प्रश्न पूछ लिया। प्रिय शिष्यो ! पहले दिन मैंने तुम लोगों को बताया था कि “महापुराण" की रचना-समाप्ति सिद्धार्थ संवत्सर में आषाढ़ शुक्ल दशमी को हुई थी । ईस्वी सन् की गणना के अनुसार वह रविवार सन् 965 ई० होता है, और यशोधरचरित की रचना सबसे पीछे हुई। विद्वानों ने सब घटनाओं पर विचार कर इसे सन् 975 ई० की माना है। अतः यह रचना आज से एक सहस्र वर्ष से कुछ अधिक पुरातन है। कोई एक अन्य शिष्य-"गुरुदेव, क्या कवि की अच्छी ख्याति उनके जीवन काल में ही हो गई थी?"
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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