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जनविद्या
लेकिन वह अब तक उपलब्ध नहीं हुई है। अतः उपलब्ध णायकुमारचरिउ जैसी रचनामों में पुष्पदंत-विरचित काव्य ही सर्वाधिक प्राचीन है। हम कह सकते हैं कि पुष्पदंत कृत "णायकुमारचरिउ" ने उस कथा को बहुत लोकप्रियता प्रदान की। फलस्वरूप उक्त विषय को लेकर पन्द्रह से अधिक कृतियां परवर्ती काल में निर्मित हुईं। जान पड़ता है कि पुष्पदंत ने परम्परागत नागकुमार-कथा के इधर-उधर बिखरे तत्त्वों को लेकर उसके आधार पर उसे सुरम्यरूप प्रदान किया।
पुष्पदंत कृत णायकुमारचरिउ आद्यन्त जनकाव्य है, वह अथ से इति तक पौराणिक शैली में लिखित जैनकाव्य के विशिष्ट संकेतों से अनुप्राणित है। इस लेख में उसकी इस विशिष्टता पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। ..
. : (1) प्रेरणा का धार्मिक प्राधार
पुष्पवंत कहते हैं कि शिष्यवर गुणधर्म और शोभन ने "परमधर्म" का उपदेश देने (1.2.8) और "श्रीपंचमी" के व्रत के फल को स्पष्ट करनेवाले नागकुमार-चरित्र का वर्णन करने (1.2.1) की प्रार्थना की। तत्पश्चात् नन्न ने विनती की कि वे (पुष्पदंत) प्रालस्य को छोड़ दें, जैनधर्म के कार्य में मन्द न हों और "श्रुतपंचमी" के व्रत के निर्मल फलों को बताएँ। फिर नाइल्ल और शीलया ने यह अनुरोध किया कि वे उक्त विषय पर काव्य-रचना करते हुए उसमें नन्न का नाम चढ़ाएँ, जिससे आसन्न भव्य नन्न को सन्तोष हो (1.4.1)। . ... अनुरोधकर्ताओं के मत में पुष्पदंत उनके लिए पुण्यकर्मों के उपार्जन में हेतुरूप. हैं, वे उनके उपाध्याय हैं । अर्थात् इससे स्पष्ट हो जाता है कि पुष्पदंत श्रुतपंचमी व्रत के फल को स्पष्ट करने, परमधर्म का उपदेश देने तथा उसके लिए माध्यमरूप नागकुमार-चरित्र को मनोहर काव्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सर्वथा सुयोग्य व्यक्ति हैं । वे सरस्वती देवी के निकेत (वाईसरिदेवीणिकेउ) हैं, धवल यशस्वी काव्यधुरन्धर (जसपबलु, कविपिसल्लर) हैं।..
श्रोता शिष्य तथा नन्न ज्ञानार्थी प्रार्तजन हैं। नन्न आसन्न भव्य हैं, बुद्धि में वृहस्पति हैं, प्रभु-भक्ति में अद्वितीय, शुद्ध चरित्र से युक्त, धर्मानुरक्त, त्यागी और दानशील, स्थिर-मति, सागर-सम गम्भीर हैं (1.4)। पुष्पदंत के कथन के अनुसार नन्न जिनेन्द्र-चरण-कमल के भ्रमर हैं, वे निरन्तर जिन मन्दिर बनवाया करते हैं, जिन-भवन में पूजा करने में लगे रहते हैं, जैन-शासन और पागम के उद्धारक हैं, उन्होंने बाह्य तथा आभ्यन्तर शत्रुओं को जीत लिया है (काव्य का उपसंहार)। मतलब यह है कि वक्ता और श्रोता सम-शील हैं। अतः श्रोताओं की प्रार्थना को स्वीकार करके कवि पुष्पदंत ने नागकुमार के चरित्र का काव्य में वर्णन कर उसके द्वारा श्रुतपंचमी व्रत के माहात्म्य को स्पष्ट किया है। -(2) गायकुमारचरिङ की फलश्रुति .
. कवि पुष्पदंत ने काव्य के अन्त में "णायकुमारचरिउ" के पठन-कथन आदि की सामान्य और विशिष्ट फल-श्रुति ' कही है। वे कहते हैं जो उसे पढ़े और पढ़ाये, जो उसे लिखे (प्रतिलिपि बनाए) और लिखवाये, जो उसकी व्याख्या करे, जो