________________
जैनविद्या
22. महापुराण - 2, पृष्ठ 18, 43, 137, 158, 212, 355
23. महापुराण - 2, पृष्ठ 291
24. गायकुमारचरिउ, 32, 44, 49
25. तणुरूह कव्वत्थु व रइमईए । ( जसहरचरिउ, 18 )
26. महापुराण, तृतीय खण्ड, भूमिका, पृष्ठ-4
27. पुष्पदंत प्रयुक्त कविसमयों एवं कथानक रूढ़ियों का परवर्ती मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, कु० मीरा रानी शर्मा, श्रागरा विश्वविद्यालय की पीएच. डी. का स्वीकृत शोध प्रबन्ध । सन् 1983, पृष्ठ 509
28. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग 4, डॉ० नेमीचन्द्र जैन पृष्ठ 109-112
29. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ 313
30. जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, श्री रामसिंह तोमर, एम. ए., संगृहीत ग्रंथ - प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ, प्रेमी अभिनंदन समिति, टीकमगढ़। सन् 1946, पृष्ठ 464
31. (क) जैन साहित्य में प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री, श्री कामताप्रसाद जैन, संगृहीत ग्रन्थ- प्रेमी अभिनंदन ग्रन्थ, वही, पृष्ठ 456
(ख) हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ० नामवरसिंह, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद- 1 | तृतीय संस्करण 1961, पृष्ठ 202
15
32. जैन साहित्य मौर इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ 314
33. जैन साहित्य में प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री, श्री कामताप्रसाद जैन, संगृहीत ग्रंथ - प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ, प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ समिति, टीकमगढ़ । सन् 1946, पृष्ठ 456 34. गायकुमारचरिउ, सम्पादक, अनुवादक - डॉ० हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, कनाट प्लेस, नई दिल्ली-1
द्वितीय संस्करण, सन् 1972 ई०, सन्धि- 1, पृष्ठ 2-3
35. गायकुमारचरिउ, वही, संधि 1.7, पृष्ठ 6-7
36. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ 314
37. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ० नामवरसिंह, पृष्ठ 208
38. अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन, पृ. 124
39. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग 4, पृष्ठ 112
40. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ० नामवरसिंह, पृष्ठ 202 41. स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ' के यशस्वी सम्पादक तथा अपभ्रंश भाषा के सुविज्ञ ।