________________
14
जैनविद्या
3. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग 4, डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री, श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद्, सागर । प्रथम संस्करण 1974, पृष्ठ 105
4. महापुराण, तृतीय खण्ड, भूमिका, पृष्ठ 4
5. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ 302
6. ( क ) जो विहिणा गिम्मिउ कव्वपिंडु, तं गिरिवि सो संचलिउ खंडु |
( महापुराण, सन्धि - 1, क. 6 )
(ख) मुग्धे श्रीमदनिन्द्यखण्डसुकवे बंन्धुर्गुणैरुन्नतः ( महापुराण, सन्धि - 3 )
(ग) वांछन्नित्यमहं कुतूहलवती खंडस्य कीर्तिः कृतेः । ( महापुराण, सन्धि- 39 ) 7. अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन, पृ. 72
8. ( क ) तं सुणेवि भणइ अहिमागमेरु । ( म. पु. 1.3.12 )
(ख) कं यास्यस्यभिमानरत्ननिलयं श्री पुष्पदंतं बिना (म. पु., सं. 45 ) (ग) गण्ण हो मंदिर णिवसंतु संतु, हिमागमेरु गुणगरणमहंतु । ( गायकुमारचरिउ, 1.2.2 )
9. वय संजुत्ति उत्तम सत्ति वियलिय संकि अहिमापंकि । ( यशोधर चरित, 4. 31.3 ) 10. भो भो केसव तणुरुह गवसररूहमुह कव्व रयरण रयणायर । ( महापुराण, 1.4.10 ) 11. तं णिसुणेवि भरहें वुत्तु ताव, भो कइकुलतिलयं विमुक्क गाव । ( महापुराण 1.8.1 ) 12. अग्गइ कइराउ पुप्फयंतु सरसइणिलउ ।
देवियहि सरू वण्णs कइयरणकुलतिलउ || ( यशोधर चरित - 1.8.15 )
13. (क) जिरणचरणकमलभत्तिल्लएण, ता जंपिउ कव्वपिसल्लए ।
( महापुराण 1.8.8 )
(ख) बोल्लाविउ कइकव्वपिसल्लउ, कि तुहुं सच्चउ बप्प गहिल्लउ । ( महापुराण, 38.3.5 )
(ग) गण्णस्स पत्थरणाए कव्वपिसल्लए ण पहसियमुहेण । ( गायकुमारचरिउ, अंतिम पद्य )
14. तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा, भाग 4 पृष्ठ 105
15. महापुराण, तृतीय खण्ड, भूमिका, पृष्ठ 9-10
16. धम्मपरिक्खा, 11-26
17. अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन, पृ. 73
18. मज्भुकइत्तणु जिरणपद भत्तिहि, पसरइ गउ गिय जीवि वित्तिहि । ( महापुराण, 2-6 )
19. महाकवि पुष्पदंत, राजनारायण पाण्डे, पृष्ठ 50-84
20. बोल्लइ कोइल अंबय कलियहि कांगणि चंचरीउ रूणुरू टइ ।। ( महापुराण, 2-6 )
21. महापुराण-1