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________________ 98 जनविद्या महाकवि पुष्पदंत अपभ्रंश के श्रेष्ठ कवियों में माने जाते हैं। उनकी उपलब्ध तीन कृतियों में महापुराण विशाल पुराण-ग्रंथ है जिसमें त्रेसठ शलाकापुरुषों का जीवनचरित निबद्ध है। जैन परम्परा में श्रेसठ शलाकापुरुषों का जीवन जैनधर्म का इतिहास है, जैन संस्कृति की कहानी है और समूचे देश का प्रतिबिम्ब है। इसलिए अपभ्रंश में पुष्पदंत का महापुराण एवं संस्कृत में प्राचार्य जिनसेन एवं गुणभद्र का महापुराण सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाएं मानी जाती हैं। इनमें पुष्पदंत का आदिपुराण ही एकमात्र ऐसी कृति है जिसकी सचित्र पाण्डुलिपि प्राप्त हुई है और जो चित्रकला-जगत् में महत्त्वपूर्ण कृति मानी जाती है। ____ आदिपुराण की दो सचित्र पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध होती हैं - एक पाण्डुलिपि जयपुर के श्री दिगम्बर जैन तेरहपंथी मन्दिर में तथा दूसरी देहली के दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर में । दोनों ही चित्रकला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं जो रंग, वस्त्र, पहिनाव, नाक-नक्श आदि की दृष्टि से सजीवता लिये हुए हैं । सचित्र आदिपुराण (जयपुर) की पाण्डुलिपि में 344 पत्र हैं लेकिन इनमें पत्र संख्या 10, 15, 102, 103, 132 व 133 नहीं होने से वर्तमान में इसमें 338 पत्र ही रह गये हैं। यह सम्वत् 1597 फाल्गुन सुदि 13 में लिखी हुई प्राण्डुलिपि है जिसकी प्रतिलिपि हरिनाथ कायस्थ ने की थी तथा चौधरी राइमल्ल ने उसकी प्रतिलिपि करवाई थी। इसमें चित्रों की संख्या 558 है जो सभी कला, रंग, शैली तथा कलम की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। इस पाण्डुलिपि के चित्रों की एक विशेषता यह है कि इनमें से कुछ चित्र तो पाण्डुलिपि के आकार के हैं। चित्रों की पृष्ठभूमि लाल है किन्तु पीला, चमेली एवं हरे रंग का भी प्रयोग हुआ है। प्रसिद्ध कला-विशेषज्ञ डॉ. मोतीचन्द्र के. अनुसार चित्रों में अंकित मानवाकृति पश्चिम-भारतीय चित्रकला से मिलती-जुलती है। प्राकृतियों का अलंकरण अत्यधिक कलापूर्ण एवं सजीव है। .. वेशभूषा पुरुषों व स्त्रियों की वेशभूषा सीधी-सादी है । स्त्रियाँ चोली, साड़ी एवं चद्दर पहने हैं। किसी-किसी चित्र में साड़ियाँ इतनी लम्बी हैं कि पैरों में पहिने हुए गहने भी दिखाई नहीं देते। उनके कानों में बालियाँ, हाथों में चूड़ियाँ, भुजाओं में बाजूबन्द हैं। पैरों में कड़े एवं चाँदी की साट हैं। माथे पर सुहाग का प्रतीक बोरला बंधा हुआ है। पुरुषों की वेशभूषा में ग्वालियरी पगड़ी, सांगानेरी धोती, रंगीन दुपट्टा है। पाण्डुलिपि के प्रमुख चित्रों का परिचय निम्न प्रकार है - 1. भरत मंत्री के पास पुष्पदंत का आगमन - पत्र संख्या 4 पर, प्राकार 9°x4.2" इस चित्र में महाकवि पुष्पदंत महामंत्री भरत के पास आया है तथा भरत द्वारा महापुराण लिखने की प्रार्थना पर कवि द्वारा विचार किया जा रहा है। ...
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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