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को जैन धर्म व दर्शन के अध्ययन का लाभ संत सतियांजी के सान्निध्य में उपलब्ध नहीं हो पाता अथवा जो प्रौढ़ होने से किसी ज्ञानशाला में प्रविष्ट नहीं हो पाते, उनके लिए पत्राचार पाठमाला योजना आगामी 15 दिसम्बर से प्रारंभ की जा रही है। प्रवेशार्थी की योग्यता हायर सैकण्डरी या समकक्ष होनी चाहिए। प्रत्येक छात्र को 2 पाठ प्रतिमाह भोर 22 पाठ प्रतिवर्ष भेजे जावेंगे। पाठ्यक्रम का वार्षिक शुल्क 15/- रुपये है जो प्रवेश पत्र के साथ देय होगा। इच्छुक व्यक्ति 30-11-78 तक कुलसचिव, जैन विश्व भारती से सम्पर्क स्थापित करें। साधना विभाग
जैन विश्व भारती में साधना विभाग के अन्तर्गत ध्यान, योग से संबंधित विभिन्न प्रवृत्तियां निर्बाध गति से चल रही हैं। यहां ध्यान से संबंधित दो प्रकार के शिविरों का, वर्ष भर में विभिन्न समयों पर आयोजन किया जाता है । ये हैं-1. प्रेक्षा ध्यान शिविर 2. अध्यास्म योग नैतिक शिक्षा शिविर । प्रेक्षा ध्यान शिविर मुनि श्री नथमल जी के सफल निर्देशन में सम्पादित किये जाते हैं । साधना-विभाग अब तक छः प्रेक्षा-ध्यान शिविरों का सफलतापूर्वक आयोजन कर चुका है। इनमें अंतिम गंगाशहर में 23 अक्टूबर से 1 नवम्बर तक "छठा प्रेक्षा ध्यान शिविर" अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य व मुनि श्री नथमल के निर्देशन में आयोजित किया गया था। शिविरों की बढ़ती हुई लोक प्रियता व इसमें बढ़ती हुई साधकों की संख्या, साधना विभाग की सफलता का ज्वलंत प्रतीक है।
साधना विभाग ने प्रेक्षा-ध्यान शिविर के साथ ही 21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर तक जैन विश्व भारती में, तुलसी अध्यात्म नीडम् में "अध्यापक अध्यात्म योग नैतिक शिक्षा शिविर" भी निर्धारित किया था। सम्पूर्ण तैयारियां हो जाने के बाद भी वर्तमान में यह संभव न हो सकने के कारण इसे स्थगित कर देना पड़ा। आगे उपयुक्त समय पर इसे निश्चित किया जा सकेगा।
शिविरों के अतिरिक्त साधना-भवन में प्रतिदिन की प्रवृत्तियां नियत समय पर होती हैं । साधकों के स्वयं के योगाभ्यास के अतिरिक्त सायं 7-30 से 8-15 बजे तक मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी के मार्गदर्शन में प्रेक्षा-ध्यान का नियमित अभ्यास होता है।
विद्यालयों में अभी पिछले दिनों लाडनूं नगर के तीन उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों, जे. बी. जौहरी व महावीर उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के छात्र-छात्राओं, अध्यापकअध्यापिकाओं व अन्य विद्वज्जनों के समक्ष शिक्षा में सदाचार व योग ज्ञान की उपादेयता" विषय पर मुनि श्री महेन्द्र कुमार जी के प्रवचन हुए। वर्तमान जर्जरित शिक्षा पद्धति को उद्देश्यहीनता से हटाकर उसमें सार्थकता भर देने की प्रेरणा देते हुए मुनि जी ने बतायाशिक्षा का वास्तविक उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति में विवेक-शक्ति व कर्तव्य-बोध का विकास करना हैं, हेय-उपादेय के फर्क को समझना है, व्यक्ति के लिए जीवन की समस्याओं के सही समाधान का मार्ग पा सकना है। जो व्यक्ति शिक्षित होकर भी विवेकहीन है, जिसे कर्तव्य का बोध नहीं है, उसे साक्षर भले समझा जाय किन्तु, शिक्षित कहना व्यर्थ है।
योग व नैतिक शिक्षा के महत्त्व को उद्घाटित करते हुए आपने कहा—शिक्षा के साथ
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तुलसी प्रज्ञा
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