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________________ साध्वियों से सम्पर्क किया है। वे जैन विश्व भारती में 1-11-78 को आई एवं एक सप्ताहपर्यन्त यहां रहकर मुनि श्री नवरत्नमलजी जो कि तेरापंथ सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध इतिहासकार हैं, के सहयोग से एवं "शासन समुद्र" तथा प्राचीन ग्रन्थों के आधार से तेरापंथ सम्प्रदाय के प्रथम तीन चार आचार्यों के समय की महासतियांजी के संबंध में जानकारी प्राप्त की। लाडनं स्थित सेवा केन्द्र जहां वृद्ध, अशक्त, रुग्ण सतियांजी विराजमान हैं, उनके संबंध में पूरे तथ्य संग्रहीत किये । उन्हें यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि तेरापंथ समाज के संत सतियां जी का सुव्यवस्थित इतिहास प्रारंभ काल से उपलब्ध है । सेवा केन्द्र में सेवा की जो सराहनीय व्यवस्था है, यह देखकर भी वे मुग्ध हुई। आपने पारमार्थिक शिक्षण संस्था की गतिविधियों का बारीकी से अवलोकन किया तथा ज्ञानरत दीक्षार्थिनी बहिनों की ज्ञान स्पृहा एवं जीवनचर्या से इतनी प्रभावित हुई कि इन्होंने मुक्तकण्ठ से संस्था की सराहना की तथा निम्नलिखित सम्मति लिखी “Here is a centre of spirituality and learning for the Sramani of the future. While they learn in depth the essence and richness of their Jaina tradition, may they also be open to other traditions, and learn their essence and richness not only through learning and study, but also through living encounters. आशीर्वाद ! एन. शान्ता बहिन । कुमारी एन. शान्ता हिन्दी अच्छी तरह जानती हैं । मारवाड़ी भाषा में लिखित गद्यपद्य वे अनायास समझ लेती है । संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में भी उनकी गति है। बंगला तथा गुजराती भाषा का भी आपको ज्ञान है । उनकी लगन सराहनीय है। प्रतिदिन नौ-दश घण्टे काम करना उनका नित्य क्रम रहा है। वे पुनः अपने शोध कार्य के लिए यहां आवेंगी। ____ श्री सुमेरमल बैद- (लाडनू) ने, जो भागलपुर रहते हैं, हिन्दी में पटना विश्व विद्यालय से एम. ए. हैं, वर्तमान में भागलपुर विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. के लिए पंजीकरण कराया है । संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डा. कलानाथ झा उनके शोध-मार्गदर्शक रहेंगे। उनके शोध प्रबंध का विषय है---"आचार्य श्री भिक्षु : व्यक्तित्व और कृतित्व" । वे इन दिनों यहां आये थे । डा० नथमल टाटिया से इस संबंध में उन्होंने परामर्श लिया है। साथ ही मुनि श्री नवरत्नमल जी तथा मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी के साथ भी इस विषय में विस्तृत-चर्चाएं की। वे आगामी ग्रीष्मकाल में दो तीन मास यहां रहकर अपने शोध कार्य को आगे बढ़ायेंगे। यह उल्लेखनीय है कि श्री बैद "प्रज्ञाचक्ष" हैं, फिर भी बहुत उत्साही एवं लगनशील हैं। श्री रमेशचन्द्र लालन (बम्बई)-जो बम्बई में महाराष्ट्र सरकार में पोलिस प्रोसीक्यूटर हैं, Jain Penology' (जैन दण्ड विद्या) पर अपना शोध प्रबंध लिख रहे हैं । इसी संदर्भ में वे यहां आये थे। मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी एवं डा० टाटिया से दो तीन दिन तक इस विषय में मार्गदर्शन प्राप्त किया । वे शीघ्र ही बम्बई विश्वविद्यालय के कानूनविभाग को अपना शोध-प्रबंध पी-एच. डी. हेतु समर्पित करेंगे। अनुवाद कार्य आलोच्य काल में मुनि श्री नथमल जी की पुस्तक "जैन न्याय का विकास" का २३८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524516
Book TitleTulsi Prajna 1978 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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