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________________ सभी काम ईश्वरकृत मानें, तो प्रत्यक्ष का लोप होगा, | जो कांति का भेद है वह तैजस शरीरकृत है। मृत्यु होने क्योंकि प्रत्यक्ष में घटपट गृहादिक मनुष्यकृत देखे जाते | पर तैजस शरीर जीव के साथ चला जाता है।) और हैं। सभी काम ईश्वरकृत मानने से जीवों के पुण्यपाप कार्मण ये ५ शरीर हैं। इनमें से कार्मण शरीर को कर्म सब निरर्थक हो जायेंगे। न तो किसी को हिंसा आदि | और शेष शरीरों को नोकर्म कहते हैं। जीव और कर्मों पाप कार्यों का फल मिलेगा और न किसी को जप, | के बन्ध को कर्मबन्ध कहते हैं, तथा जीव और अन्य तप, दया आदि पुण्य कार्यों का फल मिलेगा। क्योंकि | शरीरों के बन्ध को नोकर्मबन्ध कहते हैं। भवांतर में ये तो जीवों ने किये ही नहीं, यदि ईश्वर ने किये हैं, | जानेवाला जीव पूर्व शरीर को छोड़ने के बाद, जब तक तो इनका फल जीवों को मिलना क्यों चाहिए? तब निःशंक | नया शरीर ग्रहण नहीं करता है, तब तक के अन्तराल हो प्राणी पाप करेंगे और पुण्य कार्यों से विमुख रहेंगे। | में उसके तैजस और कार्मण ये दो सूक्ष्म शरीर साथ इस प्रकार ईश्वर को कर्ता मानने में इस तरह | में रहते हैं। इस अन्तराल का काल जैनागम में बहुत के अन्य भी अनेक विवाद खड़े होते हैं। किसी कर्म | ही थोडा तीन समय मात्र अधिक से अधिक बताया का फल हमें तुरन्त मिल जाता है, किसी का कुछ माह | है। अन्तराल में यह कार्मण शरीर ही उसे किसी नियत बाद मिलता है, किसी का कुछ वर्ष बाद मिलता है | स्थान पर ले जाकर नया शरीर ग्रहण कराता है। उक्त और किसी का जन्मांतर में मिलता है। इसका क्या कारण | तैजस और कार्मण शरीर संसार दशा में सदा इस जीव है? कर्मों के फल के भोगने में समय की यह विषमता | के साथ रहते हैं। जब यह जीव भवांतर में जाकर नया क्यों देखी जाती है? ईश्वरवादियों की ओर से इसका | शरीर ग्रहण करता है, तब सदा साथ रहनेवाले दो शरीर ईश्वरेच्छा के सिवाय कोई सन्तोषकारक समाधान नहीं | और एक नया प्राप्त शरीर इस प्रकार जीव के कुल मिलता। किन्तु कर्मों में ही फलदान की शक्ति मानने | तीन शरीर हो जाते हैं। जिस प्रकार दूध में जल, मिश्री वाला कर्मवादी जैनसिद्धान्त उक्त प्रश्नों का बुद्धिगम्य | आदि घुल मिल जाते हैं, उसी प्रकार इन तीनों शरीरों समाधान करता है। को आत्मा के साथ मिश्रण हो जाता है। सदा साथ रहनेवाले जैनशास्त्रों का कहना है कि बाईस भेद स्कन्ध | तैजस और कार्मण ये दो शरीर इतने मूक्ष्म हैं कि वे के और एक भेद अण का इस प्रकार पुद्गल के कुल | हमारे कभी इन्द्रियगोचर नहीं हो सकते हैं। २३ भेद होते हैं। इन्हीं को २३ वर्गणायें कहते हैं। इनमें | प्रश्न-'अनन्तगुणे परे' इस सूत्र के द्वारा सूत्रकार से १८ वर्गणाओं का जीव से कुछ सम्बन्ध नहीं है और | उमास्वामी ने औदारिकादि शरीरों से कार्मण शरीर के ५ वर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है। उनके नाम आहार- परमाणु अनन्तगुणे अधिक लिखे हैं। इससे तो कार्मण वर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और | शरीर अन्य सब शरीरों से बड़ा होना चाहिये। कार्मणवर्गणा हैं। आहारवर्गणा से औदारिक, वैक्रियिक | उत्तर- उन्हीं आचार्य उमास्वामी ने 'परं परं सूक्ष्मम्' और आहारक ये तीन शरीर और श्वासोच्छवास बनते | इस सूत्र द्वारा कार्मण शरीर को अन्य सब शरीरों से हैं। तैजसवर्गणा से तैजस शरीर बनता है। भाषावर्गणा है। भाषावर्गणा | सूक्ष्म भी लिखा है। इस प्रकार आचार्यश्री ने दोनों कथन से शब्द बनते हैं मनोवर्गणा से द्रव्यमन बनता है, जिसके करके यह अभिप्राय प्रकट किया है कि कार्मण शरीर द्वारा यह जीव हित-अहित का विचार करता है और | का गठन ऐसा ठोस है कि उसकी प्रदेश संख्या अन्य कार्मणवर्गणा से ज्ञानावरणादिक अष्ट कर्म बनते हैं। जिन | शरीरों से अनन्तगुणी होते हुए भी वह अन्य शरीरों जैसा कर्मों के निमित्त से यह जीव चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण स्थूल नहीं है, जैसे रुई का ढेर और लोहे का गोला। करता हुआ नाना प्रकार के दु:ख उठाता है और जिनके | लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि कार्मण शरीर क्षय होने से यह जीव संसार से छूटकर मोक्षपद को | जब इतना ठोस है तो उसकी गति अन्य पौद्गलिक पदार्थों पाता है। इन ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों के पिंड को ही | से रुक जाती होगी? उसकी बनावट ही कुछ ऐसी जाति कार्मण शरीर कहते हैं। इस प्रकार इस जीव के औदारिक | के परमाणुओं से होती है, जिससे वह वज्रपटलादि में (मनुष्य तिर्यंचों का शरीर) वैक्रियिक (देव-नारकियों का | भी प्रवेश कर जाता है। जैसे अग्नि लोहे में प्रवेश कर शरीर) आहारक, तैजस (मृतक और जीवित शरीर में | जाती है। 13 अगस्त 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524342
Book TitleJinabhashita 2009 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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