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________________ उचित कहा गया है। कम अवधिज्ञानावरण को, उससे कम मनःपर्ययज्ञानावरण जिज्ञासा- एक समय में ग्रहण की गई कार्मण | को और सबसे कम द्रव्य केवलज्ञानावरण को मिलेगा। वर्गणाओं का मूल एवं उत्तर प्रकृतियों में बँटवारा किस | मोहनीय तथा दर्शनावरण में कम से इसी प्रकार हीन प्रकार होता है? द्रव्य मिलता है। किन्तु नाम और अन्तराय कर्म के भेदों समाधान- प्रत्येक जीव प्रतिसमय समयप्रबद्ध | में क्रम से अधिक-अधिक द्रव्य मिलता है अर्थात् सबसे प्रमाण (सिद्धराशि के अनन्तवें भाग अथवा अभव्यराशि कम द्रव्य दानान्तराय को, उससे अधिक लाभान्तराय को से अनन्तगुणा) कार्मण वर्गणाओं को ग्रहण करके कर्म | उससे अधिक भोगान्तराय को, उससे अधिक उपभोगान्तराय रूप करता है। उसका बँटवारा गोम्मटसार कर्मकाण्ड ग्रन्थ | को और सबसे अधिक वीर्यान्तराय को मिलता है। के अनुसार इसप्रकार होता है वेदनीय, गोत्र और आयु कर्म की एक समय में एकआउगभागो थोवो णामागोदे समो तदो अहियो। | एक ही प्रकृति का बन्ध होता है अर्थात् जब उच्च गोत्र घादितिये वि य तत्तो मोहे तत्तो तदो तदिये ॥१९२॥ बँधता है, तब नीच गोत्र नहीं बँधता। जब सातावेदनीय गाथार्थ- सभी मूलप्रकृतियों में आयु कर्म को सबसे | प्रकृति बँधती है, तब असातावेदनीय नहीं बँधती तथा कम भाग मिलता है। उससे अधिक भाग नाम व गोत्र | चारों आयुकर्मों में से एक समय में एक ही आयु का कर्म को मिलता है, जो आपस में समान हैं, उससे अधिक | बंध होता है। तब उस समय उस प्रकृति को उस कर्म भाग ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय को मिलता है, | का पूरा द्रव्य प्राप्त होता है। जो आपस में समान है। उससे अधिक भाग मोहनीय | इतना अवश्य और जानना चाहिए कि लोक में कर्म को मिलता हैं। और सबसे अधिक भाग वेदनीय | भरी हुई कार्मण वर्गणा में से जो द्रव्य ज्ञानावरणीय के कर्म को मिलता है। योग्य होता है, वही ज्ञानावरणरूप परिणमन करता है, वेदनीय कर्म संसारी जीवों को सुख-दुख का कारण अन्य कर्म रूप परिणमन नहीं करता। ये सभी कार्मण है अतः इसकी निर्जरा अधिक होने से इसको सबसे | वर्णणाएँ भिन्न-भिन्न कर्म रूप परिणमन करने की योग्यता अधिक द्रव्य मिलता है। वेदनीय कर्म के अलावा अन्य | रखनेवाली होते हए भी पथक-पथक नहीं रहतीं. मिश्रित सर्व मूलप्रकृतियों में द्रव्य का बँटवारा उनकी स्थिति | होकर रहती हैं। (देखें धवल पुस्तक-१४, पृष्ठ ५५३के अनुसार होता है अर्थात् सबसे अधिक स्थिति मोहनीय कर्म की, उससे कम ज्ञानावरण-दर्शनावरण एवं अन्तराय प्रश्नकर्ता- राजेन्द्र कुमार जैन, जबलपुर । की, उससे कम गोत्र व नाम कर्म की और सबसे कम जिज्ञासा- अरिहन्त भगवान् आहार नहीं करते हैं, स्थिति आयुकर्म की होने के कारण, इन कर्मों को तदनुसार | तो उनका शरीर कैसे हजारों वर्ष तक टिकता होगा? ही द्रव्य मिलता है। उत्तर प्रकृतियों में बँटवारा इस प्रकार समाधान- उपर्युक्त विषय पर कषाय पाहुड़ १/१, होता है प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रवचनसार, बहत जिनोपदेश, प्रश्नोत्तर उत्तरपयडीसु पुणो मोहावरणा हवंति हीणकमा। | श्रावकाचार, जैनेन्द्र सिद्धान्तकोष आदि ग्रन्थों में विस्तृत अहियकमा पुण णामाविग्घा य ण भंजणं सेसे॥१९६॥ चर्चा उपलब्ध है। उसी के आधार से आपको उत्तर ___अर्थ- उत्तर प्रकृतियों में मोहनीय, ज्ञानावरण और | दिया जा रहा हैदर्शनावरण के भेदों में क्रम से हीन-हीन द्रव्य है तथा १. श्री धवला पुस्तक-२, पृष्ठ-४३७ पर कहा नाम व अन्तराय कर्म के भेदों में क्रम से अधिक- | है कि जब अप्रमत्तसंयत, सप्तमगुणस्थानवर्ती मुनिराज के अधिक द्रव्य है। वेदनीय, गोत्र और आयु कर्म के भेदों | भी असातावेदनीय की उदीरणा न होने के कारण आहारसंज्ञा में बँटवारा नहीं होता, क्योंकि इनकी एक काल में एक | नहीं है, तब केवली के आहारसंज्ञा कैसे हो सकती है? ही प्रकृति बँधती है। २. जिस काल में असाता का उदय होता है, उस विशेषार्थ- जितना द्रव्य ज्ञानावरण को मिलेगा, | काल में अनन्तगणी शक्तिवाले साता का भी उदय रहता उसका बँटवारा पाँच प्रकृतियों में होगा। सबसे अधिक है। अतएव वहाँ असातावेदनीय का उदय क्षुधादि वेदना मतिज्ञानावरण को, उससे कम श्रुतज्ञानावरण को, उससे | का कारण नहीं हो पाता। केवली के शरीर में प्रतिसमय खनवाला होते हुए भी पृथक-पृथक नहीं रहतीं तियों में द्रव्य का बँटवारा उनकी ५५४) जुलाई 2009 जिनभाषित 25
SR No.524341
Book TitleJinabhashita 2009 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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