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________________ भावार्थ- शब्द, बन्ध आदि पुद्गल की पर्यायें । है। 'बन्धेऽधिको पारिणामिकौ' ऐसा सूत्र लिखा हुआ है। हैं। एवं 'च' शब्द से नोदन, अभिघात आदि भी पुद्गल • कालश्च ॥ ३९॥ की पर्यायें हैं, यह जानना चाहिये। सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक और अणवः स्कन्धाश्च॥ २५॥ सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं है। सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक और | तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः परस्परसमुच्चये। तेनायमर्थः सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं की है। | न केवलं धर्माधर्माकाशपुद्गला जीवाश्च द्रव्याणि तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः परस्परं समुच्चये वर्तते। | भवन्ति, किन्तु कालश्च द्रव्यं भवति। द्रव्यलक्षणोपेतत्त्वात्। तेनायमर्थ:- न केवलम् अणव एव पुद्गलाः किन्तु | द्रव्यस्य लक्षण द्विप्रकारमुक्तम्- उ द्रव्यस्य लक्षणं द्विप्रकारमुक्तम्-'उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं स्कन्धाश्च पुद्गला भवन्ति निश्चयव्यवहारनयद्वयक्रमा- | सत्', गुणपर्ययवत् द्रव्यम् इति च। एतदुभयमपि लक्षणं दित्यर्थः। निश्चयनयादणव एव पुद्गलाः, व्यवहारनयात् कालस्य वर्तते, तेन कालोऽपि द्रव्यव्यपदेशभाग् भवति। स्कन्धा अपि पुद्गला भवन्तीत्यर्थः। अर्थ- सूत्र में 'च' परस्पर समुच्चय के लिए है। अर्थ- सूत्र में 'च' परस्पर समुच्चय के लिए है। इससे यह अर्थ है कि केवल धर्म, अधर्म, आकाश, इससे यह अर्थ होता है- केवल परमाणु ही पुद्गल नहीं | पुद्गल और जीव द्रव्य नहीं हैं, बल्कि काल भी द्रव्य है, किन्तु स्कन्ध भी पुद्गल होते हैं। निश्चयनय और | होता है, क्योंकि काल में भी द्रव्य के लक्षण होते हैं। व्यवहारनय के क्रम से होते हैं अर्थात् निश्चयनय से द्रव्य का लक्षण २ प्रकार से कहा है- 'उत्पाद, व्यय परमाणु ही पुद्गल है और व्यवहारनय से स्कन्ध भी और ध्रौव्य से युक्त सत् है' और 'गुण और पर्यायवाला पुद्गल होते हैं, यह इसका अर्थ हुआ। द्रव्य है।' ये दोनों लक्षण काल के भी हैं। इससे काल भावार्थ- अणु और स्कन्ध दोनों पुदगल भेद हैं। | भी द्रव्य संज्ञावाला है। निश्चयनय से परमाणु ही पुद्गल है और व्यवहारनय भावार्थ- धर्मादि की तरह काल भी द्रव्य है, क्योंकि से स्कन्ध भी पुद्गल हैं, यह जानना चाहिये। इसमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होता है एवं गुण-पर्यायबन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च॥ ३७॥ वाला भी है, अर्थात् द्रव्य के सभी लक्षण काल द्रव्य सर्वार्थसिद्धि, सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति, तत्त्वार्थवत्ति में | में भी पाये जाते हैं। 'च' शब्द की व्याख्या नहीं की गयी है। राजवार्तिक श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान एवं श्लोकवार्तिक में इस सूत्र में 'च' शब्द ही नहीं दिया सांगानेर, जयपुर (राज.) संस्थान में क्रेश कोर्स प्रारंभ परम पूज्य १०८ आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की आशीष प्रेरणा से संचालित भारतवर्षीय दिगम्बर जैन प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान में १ जून २००९ से छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की मुख्य परीक्षा तथा संघ लोकसेवा आयोग की प्री की परीक्षा की तैयारी हेतु जून २००९ के प्रथम सप्ताह से विभिन्न विषयों का प्रशिक्षण कार्य प्रारंभ होने से प्रशिक्षार्थीगणों में अधिक उत्साह देखा जा रहा है। संस्थान में प्रशिक्षार्थियों की तैयारी कराई जाने हेतु प्रवेश प्रारंभ है तथा प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर से जिन प्रशिक्षार्थियों को लाभ लेना हो वे 'श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान पिसनहारी मढ़िया केम्पस गढ़ा, जबलपुर (म.प्र.)' से सम्पर्क करें। मुकेश सिंघई, संस्थान अधीक्षक विचार संस्था ने किया डॉ० सिंघई का सम्मान कुण्डलपुर में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में डॉ० अशोक सिंघई एवं उनकी पत्नी का साल श्रीफल एवं मुमेन्टो भेंटकर सम्मान किया गया। डॉ. अशोक सिंघई ने कुछ दिन पूर्व सागर की भाग्योदय अस्पताल में जन्म से अंधी एक निर्धन कन्या का आचार्यश्री के आशीर्वाद से निःशुल्क सफल आपरेशन कर उसे जीवन की नई रोशनी प्रदान की थी। सुनील बेजीटेरियन जुलाई 2009 जिनभाषित 21
SR No.524341
Book TitleJinabhashita 2009 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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