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हैं।
भावार्थ- सूत्र में 'च' शब्द अनन्त का समुच्चय । परिणाम आदि के अलावा फसल पकना, ऋतुपरिवर्तन करने के लिए है, जिससे यह फलितार्थ है कि पुद्गल | आदि भी काल द्रव्य के उपकार मानने चाहिये। द्रव्य के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश होते हैं। | शब्दबंधसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योत
सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥ २०॥ वन्तश्च॥ २४॥ राजवार्तिक एवं श्लोकवार्तिक में इस सूत्र में आये |
श्लोकवार्तिक ग्रंथ में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं 'च' शब्द की व्याख्या नहीं है।
की है। . सर्वार्थसिद्धि- 'च' शब्द किमर्थः? समुच्चयार्थः। सर्वार्थसिद्धि- 'च' शब्देन नोदनाभिघातादयः अन्योऽपि पुद्गलकृत उपकारोऽस्तीति समुच्चीयते। यथा | पुद्गलपरिणामा आगमे प्रसिद्धाः समुच्चीयन्ते। शरीराणि एवं चक्षुरादीनीन्द्रियाण्यपीति।
अर्थ- सूत्र में दिये हुए 'च' शब्द से नोदन (ठेलना, अर्थ- शंका- सूत्र में 'च' शब्द किसलिए दिया | हाँकना, हटाना आदि) अभिघात (मारना, चोट पहुँचाना, है? समाधान- समुच्चय के लिए। पुद्गलकृत और भी | प्रहार आदि) आदि जो पुद्गल की पर्यायें आगम में उपकार हैं, उनके समुच्चय के लिए सूत्र में 'च' शब्द | प्रसिद्ध हैं, उनका संग्रह होता है। दिया है। जिस प्रकार शरीर आदि पुद्गलकृत उपकार - राजवार्तिक- नोदनाभिघाताद्युपसंख्यानमिति चेत्, हैं, उसी प्रकार चक्षु आदि इन्द्रियाँ भी पुद्गलकृत उपकार | न, 'च' शब्दस्येष्टसमुच्चयार्थत्वात्। २७। स्यान्मतम्
नोदनाभिघातादयः पुद्गलपरिणामाः सन्ति। तेषामत्रोप. सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दश्चक्षुरादिस- संख्यानं कर्तव्यमिति, तन्न, किं कारणं? 'च' शब्दस्येष्टमुच्चयार्थः। तेन यथा शरीराणि पुद्गलकार्याणि तथा
| समुच्चयार्थत्वात्।ये पुद्गलपरिणामा आगमे इष्टाः तेषामिह चक्षुरादीन्द्रियाण्यपीत्यवसेयम्।
'च' शब्देन समुच्चयः क्रियते। अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द चक्षु आदि का समुच्चय
अर्थ- शंका- नोदन, अभिघात का भी ग्रहण करना करने के लिए है। जैसे शरीर आदि पुद्गल के कार्य
चाहिये? समाधान- नहीं, सूत्र में आये 'च' शब्द से इष्ट हैं, वैसे चक्षु आदि इन्द्रियाँ भी पुद्गल के कार्य हैं, ऐसा | का समुच्चय हो जाता है। २७। जानना चाहिये।
प्रश्न- नोदन, अभिघात, आदि भी पुद्गल की तत्त्वार्थवृत्ति-चकार: समुच्चये वर्तते। तेनचक्षरादीनि | पर्यायें हैं, इसलिए इनका भी सत्र में उल्लेख होना चाहिये। इन्द्रियाण्यपि शरीरादिवत् जीवोपकारकाणि भविन्त।
| उत्तर- नहीं। प्रश्न- किस कारण से? उत्तर- सूत्र में अर्थ- चकार शब्द समुच्चय के लिए है। इससे
'च' शब्द इष्ट के समुच्चय के लिए है। अतः नोदन, चक्षु आदि इन्द्रियाँ भी शरीर आदि के समान जीव का | अभिघात आदि जितने भी पुद्गल के परिणाम आगम उपकार करनेवाली होती हैं।
में इष्ट हो सकते हैं, उन सबका समुच्चय 'च' शब्द भावार्थ- सुख, दु:ख, जीवन एवं मरण ये पुद्गलकृत | से हो जाता है। जीव पर एवं जीवकृतः जीव पर उपकार हैं तथा 'च' सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- एवमन्येऽपि नोदनाभिघाताशब्द से पुद्गलकृत और भी उपकार होते हैं। यथा- दयो ये पुद्गलपरिणामा आगमे इष्टास्तेषामिह 'च' शब्देन चक्षु आदि इन्द्रियों की रचना।
समुच्चयः क्रियते। वर्तनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य॥२२॥
अर्थ- इसी प्रकार अन्य भी नोदन, अभिघात आदि सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, सुखबोध
पुद्गल के परिणाम आगम में इष्ट हैं, उनका 'च' शब्द तत्त्वार्धवृत्ति, तत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं
से ग्रहण किया है। की गयी है।
तत्त्वार्थवृत्ति-चकारात् अभिघातनोदनादयः पुदगलआचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज- यहाँ 'च' शब्द
परिणामाः परमागमसिद्धाः समुच्चिता ज्ञातव्याः। से फसल पकना, ऋतुपरिवर्तन, समय पर फूल आना,
अर्थ- 'च' शब्द से आगम प्रसिद्ध अभिघात, नोदन फल आना, भूख लगना आदि लेना चाहिये।
आदि पुद्गल की पर्यायों का समुच्चय होता है, ऐसा भावार्थ- सत्र में आये 'च' शब्द का अर्थ वर्तना, | जानना चा
20 जुलाई 2009 जिनभाषित