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________________ ६. ७. जीवों के निवास बना लेने से सप्रतिष्ठित हो जाती हैं। आधुनिक वनस्पति विज्ञान में फली, दाल, मटर, आदि के पौधों के बीजों को बोने के उपरान्त जैसे ही पौधा बड़ा होने लगता है, इसकी जड़ों के छोटी-छोटी गाँठे बन जाती हैं एवं इन गाँठों में बैक्टीरिया अपना निवास बना लेते हैं । । आधुनिक बैक्टीरिया और वायरस की तरह निगोदिया जीव भी इतनी तीव्र गति से जन्म लेते हैं एवं वृद्धि करते हैं कि यह देख पाना असंभव हो जाता है कि कौन सा जीव नया है ओर कौन सा पुराना जिस प्रकार एक शरीर में निगोदिया जीव एक साथ ही जन्म-मरण, श्वासोच्छ्वास एवं अन्य क्रियाएँ करते हैं, उसी तरह अधिकांश बैक्टीरिया एवं वायरस की गतिविधियाँ भी समान रूप से चलती हैं। अधिकांश बैक्टीरिया वर्धी या अलैंगिक प्रजनन १ 1 मैं हूँ वो नहीं जो तुम्हें दिख रहा हूँ। परे ही रहा हूँ ॥ मैं वो नजर से न जाने कहाँ से यहाँ आ गया हूँ जो चेतन हूँ तन में समा क्यों गया हूँ मैं बन्धन से मुक्ति को अब पा रहा हूँ मैं हूँ वो नहीं २ सभी की तरह थी मेरी जो भी हसरत नहीं मुझको उनकी रही जब जरूरत मैं तब से ही अपने में सुख पा रहा हूँ. मैं हूँ वो नहीं ..... 26 जून 2009 जिनभाषित Jain Education International ८. करते है। यही गुण निगोदिया जीव में भी पाया जाता है। सभी निगोदिया सम्मूर्छन जन्म वाले हैं। आधुनिक सूक्ष्म जीवों और निगोदिया जीवों में अन्य बड़े जीवों की तरह तंत्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम) नहीं होता, यह गुण उनके समान रूप से एकेन्द्रिय होने का संकेत देता है। मैं हूँ वो नहीं... निगोदिया जीवों में जो लब्ध्यपर्याप्तक होते हैं उनके जन्म मरण का काल अत्यंत अल्प है, परन्तु बैक्टीरिया या वायरस आदि के बारे में विज्ञान में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता। क्या वास्तव में बैक्टीरिया या वायरस आदि जीव भी निगोदिया जीव हैं? इस विषय पर गहन विचार और शोध की आवश्यकता है। इतना अवश्य है कि जैनआचार्यों द्वारा वर्णित सूक्ष्मतम जीव, निगोदिया हैं एवं आधुनिक जैव-वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गये सूक्ष्मतम जीव बैक्टीरिया, वायरस एवं माइक्रोप्लाज्मा हैं। ३ कठिन राह पर भी मैं आसान क्यों हैं समझ कर भी सब कुछ मैं अनजान जो हूँ जो पाया न अब तक वो अब पा रहा मैं हूँ वो नहीं मुनि श्री प्रणम्य सागर जी **** ये एहसास कैसा मुझे हो रहा है जो मुझको ही केवल समझ आ रहा है मैं अपने को अपने में ही पा रहा हूँ मैं हूँ वो नहीं मेरे बाद भी लोग आएँगे ऐसे जो पूछेंगे जग में जिए तुम थे कैसे .... For Private & Personal Use Only मैं इस बार मर कर भी मर ना रहा हूँ मैं हूँ वो नहीं....... www.jainelibrary.org
SR No.524340
Book TitleJinabhashita 2009 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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