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वनस्पतिकाय में जो बादर-निगोद-जीव पैदा होते हैं, वे उस । हैं। वायरस का आकार अन्गस्ट्राम इकाई से मापा जाता वनस्पति के रूप-रस-गन्ध जैसे ही पैदा होते हैं। । है। एक अन्गस्ट्राम १/१००० माइक्रोन के बराबर होता है।
जैनधर्म के अनुसार यदि जीव अपनी शारीरिक | किसी भी परपोषी कोशिका में लाखों वायरस लम्बे समय संरचना पूर्ण करने में सक्षम होता है, तो उसे पर्याप्तक | तक बिना प्रत्यक्ष रूप से अपनी उपस्थिति बनाए रह सकते कहते हैं और जब वह अपनी शारीरिक संरचना पूर्ण करने | है। की क्षमता से रहित होता है और शारीरिक संरचना पूर्ण माइक्रोप्लाज्मा- माइक्रोप्लाज्मा का शरीर अति सूक्ष्म होने से पूर्व ही मर जाता है, तब उसे लब्ध्यपर्याप्तक कहते | होता है। इनकी कोशिका की लम्बाई जीवाणु कोशिका के हैं। निगोदिया जीव दोनों प्रकार के होते हैं पर्याप्तक और | दसवें भाग के बराबर तथा व्यास ०.५ माइक्रोन से भी कम लब्ध्यपर्याप्तक।
| होता है। ये जीव अभी तक हुई जीवविज्ञान की खोज में आधुनिक विज्ञान में सक्ष्म जीव
सबसे छोटे आकार के हैं, जो अनकल वातावरण में स्वतंत्र आधुनिक जीवविज्ञान में सूक्ष्म जीवों का अत्यन्त | रूप से जीवित रह सकते हैं। महत्त्व है। प्रकृति के विभिन्न प्रकार के वातावरण में पाये | निगोदिया जीव और जीवाणु, (बैक्टीरिया), जानेवाले, विविध रोग फैलानेवाले, लाभप्रद या हानिकारक | विषाणु (वायरस) एवं जैनधर्म और आधुनिक वैज्ञानिक सूक्ष्म जीवों की शारीरिक संरचना एवं क्रियाविधि का | खोजों में माइक्रोप्लाज्मा में समानताएँविस्तृत अध्ययन होने से ही मानव ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति | १. बैक्टीरिया और वायरस आदि सूक्ष्म जीवों की तरह की है। यह सूक्ष्म जीव मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं- निगोदिया जीव भी वातावरण में सर्वत्र पाये जाते जीवाणु, (बैक्टीरिया), विषाणु (वायरस) एवं माइक्रोप्लाज्मा। जीवाणु (बैक्टीरिया)- जीवाण या बैक्टीरिया
आधुनिक सूक्ष्म जीवों की तरह निगोदिया जीव भी एककोशीय सूक्ष्म जीव होते हैं। सामान्यतः ये गोलाकार, अनन्त होते हैं एवं एक ही पोषक कोशिका या दण्डाकार या स्पायरल होते है। बैक्टीरिया सामान्यतः सम्पूर्ण शरीर में रहते हैं। वायरस प्रायः निष्क्रिय कॉलोनी बना कर (गुत्थे के गुत्थे) रहते हैं, जिसमें ये एक
ही रहते हैं, परन्तु किसी बैक्टीरिया के शरीर में दूसरे से जुड़े रहते हैं। जीवाणुओं का आकार ०.१ माइक्रोन पहुँच कर वह सक्रिय हो जाते हैं और उसी शरीर से १० माइक्रोन तक होता है। एक माइक्रोन एक मिलीमीटर मे निवास करते हैं। के हजारवें हिस्से के बराबर होता है। अधिकांश जीवाणु | ३. जिस तरह सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति के आश्रित परपोषी होते हैं अर्थात् अपना भोजन अन्य कार्बनिक पदार्थ अनन्त साधारण या निगोदिया जीव पाये जाते हैं, या जीवित जीवों से प्राप्त करते हैं। स्वयंपोषी जीवाणु अपना उसी तरह हजारों आधुनिक वनस्पतियाँ हैं, जिनकी भोजन जल कार्बनडाय-ऑक्साइड आदि से स्वयं बना लेते जड़ तना, कंद या फल फूलों में बैक्टीरिया या हैं। जीवाणुओं में श्वसन क्रिया होती है और प्रजनन-वर्धी वायरस का निवास होता है। कई अति सूक्ष्म प्रजनन, अलैंगिक या लैंगिक प्रजनन के रूप में होता है। वनस्पतियाँ जैसे कि एल्गी (काई) आदि के आश्रित
विषाणु ( वायरस)-विषाणु या वायरस का आकार अनन्त बैक्टीरिया पाये जाते हैं, जो जैनधर्म में वर्णित बैक्टीरिया से भी छोटा होता है। इनके स्वयं के कोई साधारण वनस्पति के समान जान पड़ती हैं। वैसे कोशिका नहीं होती है बल्कि ये किसी अन्य कोशिका में भी आधुनिक वैज्ञानिकों ने जीवाणु या बैक्टीरिया घुसकर प्रजनन करते हैं। प्रायः वायरस स्वतंत्र दशा में को पौधों के वर्ग में ही रखा है। अक्रिय रहते हैं, क्योंकि इनके पास अपना उपापचय तंत्र | ४. बैक्टीरिया की अनेक प्रजातियों के समान निगोदिया नहीं होता है। जब वे अपना न्यूक्लिक अम्ल परपोषी जीव भी गोलाकार होते हैं। वायरस तो निगोदिया कोशिका में अन्तक्षेपण करते हैं, तो यह क्रियाशील होकर जीवों के समान, आयताकार और गोलाकार दोनों परपोषी कोशिका की उपापचयी क्रिया पर नियंत्रण कर प्रकार के होते हैं। लेते हैं। वायरस सुई या डण्डे के आकार के, आयताकार, जैनधर्म के अनुसार बोने के अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त सभी गोलाकार, बहुभुजीय या चतुष्कोणीय रवों के समान होते | वनस्पतियाँ अप्रतिष्ठित होती हैं। बाद में निगोदिया
- जून 2009 जिनभाषित 25
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