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स्थान बदलती पुस्तकें
डॉ० कपूरचंद जैन हाल ही में अपने एक परिचित के यहाँ जाना हुआ।| रही है। धार्मिक पुस्तकें बार-बार अपना स्थान बदल रहीं पिछले ४० वर्ष से, उनके घर आता-जाता रहा हूँ। पुरानी | हैं और बाहर होती जा रहीं हैं। हमारे शहर के 'वर्धमान परम्परा के पण्डित, घर के हर आले, मध्यम मेज, सब जैनसंघ' के कुछ नौजवानों ने एक प्रयोग किया। उन्होंने जगह पुस्तकें ही पुस्तकें रहती थीं। पुस्तकें भी विभिन्न | शहर के सभी ०९ मंदिरों में टिन के बड़े-बड़े बक्से रख प्रकार की जिनवाणी, नाममाला, तत्वार्थसूत्र, क्षत्र-चूडामणि, | दिये और उन पर लिख दिया कि 'अपने घर की अनुपयोगी रत्नकरण्डश्रावकाचार. पंचतंत्र. हितोपदेश. लघकौमदी आदि। | धार्मिक पुस्तकें, भगवान् के फोटो आदि इसमें डाल देवें घर के मुख्य कक्ष में लकड़ी की एक अलमारी, अलमारी जिससे उनका अविनय न हो। थोड़े ही दिनों में सभी बक्से के नीचे के दो खण्डों में पूजा के बर्तनों के सेट, हवनकुण्ड, | भर गये, अधिकांश पुस्तकें ही इनमें थीं। इससे ज्ञात होता धोती दुपट्टा आदि। पं० जी विवाह शादी, गृह प्रवेश के है कि लोग अपने घर में धार्मिक साहित्य रखना ही नहीं अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के विधान आदि करवाते थे, सो | चाहते, अधिक हुआ, तो जिनवाणी की एक पुस्तक घर ये चीजें जरूरी थीं। अलमारी के ऊपर के खण्डों में वही | में रख लेते हैं। पुस्तकें ही पुस्तकें, बेतरतीव ढंग से रखी हुईं, सर्वार्थसिद्धि | आज इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेन्ट का जमाना से लेकर पूजा के गुटके तक।
है। टी०वी०, कम्प्यूटर, इन्टरनेट के प्रति आकर्षित युवाअब की बार गया, तो नजारा बिल्कुल बदला हुआ वर्ग को, इसके सिवा कहीं भविष्य दिखाई नहीं देता। आज था। बैठक कक्ष में कहीं कोई धार्मिक पुस्तक दिखाई नहीं राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि दे रही थी। लकड़ी की अलमारी भी नहीं थी। आलों में | | मानविकी और समाज विज्ञान विषयों में विद्यार्थियों की या तो प्लास्टिक के फूलोंवाले गुलदस्ते थे या इंजीनियरिंग, | संख्या घटी है, फिर धार्मिक शिक्षा का, तो कहना ही क्या। मैनेजमेंट आदि की पुस्तकें । मध्य टेबिल पर भी बेतरतीव | पाठशालाएँ दम तोड़ चुकी हैं, शिविर भी अनेकबार ढंग से रखीं वही इंजीनियरिंग आदि की पुस्तकें। राजनीति के शिकार हो जाते हैं। एक कमी यह भी है कि
घर में बैठकर आधा घण्टे सुख-दुख, बच्चों-बड़ों, | नई पीढ़ी के अनुरूप धार्मिक-साहित्य का लेखन/प्रकाशन शादी-विवाह, पढ़ने-लिखने, सेमिनार सम्मेलन, परिषद्- नहीं हो पाया है। संघों आदि की बातें हुईं। समय बीतता जा रहा था, बुभुक्षा आज हमारे घर धार्मिक साहित्य से शून्य बनते जा भी दस्तक दे रही थी. सो जल्दी से फ्रेश होकर नहा- | रहे हैं। जैनआचार्यों ने, तो यहाँ तक कहा है कि, जिस धोकर घड़ी देखी, तो साढ़े बारह बज गये थे। मंदिर तो | घर में जिनवाणी नहीं, वह घर श्मशान के समान है। वैदिक साढ़े ग्यारह बजे ही बन्द हो जाता है। सोचा पाठ और | साहित्य के 'भूत शुद्धि तन्त्र' ग्रन्थ में इसी प्रकार के भाव सामायिक कर लें शाम को सभी मंदिर चलेंगे। देखा तो | को व्यक्त करता श्लोक हैघर में कहीं जिनवाणी नहीं मिली। पूछा तो पं० जी की | पुस्तकं च महेशानि, यद् गृहे विद्यते सदा। बड़ी बहू बोली शायद पापा जी के कमरे में रखी होगी, काश्यादीनि च तीर्थानि, सर्वाणि तस्य मंदिरे॥ यहाँ की सभी पुस्तकें पापा जी के कमरे में रख दी गईं प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाये?
पाठक भी पूछ सकते हैं कि हम क्या करें? उत्तर यही पण्डित जी के कमरे में देखा, तो वहाँ भी जिनवाणी दिया जा सकता है कि हमारे पूज्य मुनिराज, आर्यिका नहीं थी। पं० जी के कमरे में भी पोता आकर सोने लगा | माताएँ, विद्वान्, साधक, समाजसेवी लोगों को प्रेरणा देवें था, उसने ज्यादातर पुस्तकें तो रद्दी में बेच दी थीं, पं० | कि अपने घर में कम से कम जिनवाणी की एक पुस्तक जी के प्रतिवाद करने पर जो बची थीं, उन्हें बाथरूम के | उच्च स्थान पर अवश्य विराजमान करें। साथ ही नैतिक ऊपर टांड (दुछत्ती) पर रख दिया गया था।
आचरण की प्रेरणा देनेवाला लोकोपयोगी साहित्य और आज कमोवेश यही स्थिति प्रायः सर्वत्र दिखाई दे | अपनी संस्कृति को दिग्दर्शित करनेवाली पस्तकें घर में
थीं।
जून 2009 जिनभाषित 27
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