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________________ बोधतत्त्वार्थवृत्ति एवं तत्त्वार्थमंजूषा आदि ग्रन्थों में 'च' । म्लेच्छ के भेद से २ प्रकार के हैं। 'च' शब्द से मनुष्य शब्द की व्याख्या नहीं की है। | सम्मूर्छन भी होते हैं। तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः परस्परसमुच्चये वर्तते। | भावार्थ- मनुष्यों के २ भेद होते हैं- आर्य और तेनायमर्थः- आर्या म्लेच्छाश्चोभयेऽपि मनुष्याः कथ्यन्ते। म्लेच्छ। आर्यों के २ भेद हैं। म्लेच्छों के भी २ भेद तत्रार्याः द्विप्रकारा भविन्त। कौ तौ द्वौ प्रकारौ? एके | हैं। मनुष्य सम्मूर्छन जन्मवाले भी होते हैं। इन सबके ऋद्धिप्राप्ता आर्या, अन्ये ऋद्धिरहिताश्च। ऋद्धिप्राप्ता आर्या | समुच्चय के लिए सूत्र में 'च' शब्द दिया है। अष्टविधाः। के ते अष्टौ विधा? बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तिर्यग्योनिजानां च॥ ३९॥ तपो, बलमौषधं, रसः क्षेत्रं चेति।..... ऋद्धिरहिताः आर्यास्तु सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक एवं तत्त्वार्थपंचप्रकारा भविन्त। के ते पंचप्रकारा:? सम्यक्त्वार्याः | मंजूषा आदि ग्रन्थों में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं की है। चारित्रार्याः, कार्याः, जात्यार्याः, क्षेत्रार्याश्चेति। ....म्लेच्छास्तु सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्द प्रकृताभिद्विप्रकाराः। अन्तरद्वीपोद्भवा, कर्मभूम्युद्भवाश्चेति। ..... | सम्बन्धार्थः। तेन तिर्यग्योनिजानां चोत्कृष्टा भवस्थितिएवं षण्णवति म्लेच्छद्वीपाः। .... कर्मभूम्युभवाश्च म्लेच्छा | स्त्रिपल्योपमा। जघन्यान्तमूहुतो मध्येऽनेकविधविकल्प इति पुलिन्दशवरयवन्दशकखसबर्बरादयो ज्ञातव्याः। चात्र वेदितव्यम्। अर्थ- चकार शब्द परस्पर समुच्चय के लिए है। अर्थ- 'च' शब्द प्रकृत अर्थ के सम्बन्ध के लिए इससे यह अर्थ है कि आर्य और म्लेच्छ दोनों के २- | है। तिर्यंचों की भी उत्कृष्ट भवस्थिति ३ पल्य की है २ भेद हैं। आर्यों के २ भेद- (१) ऋद्धिप्राप्त आर्य | तथा जघन्यस्थिति अन्तर्मुहर्त की है, मध्य के अनेक भेद (२) ऋद्धिरहित आर्य। ऋद्धिप्राप्त आर्य ८ प्रकार के हैं- | हैं ऐसा जानना चाहिये। बुद्धिऋद्धि, क्रियाऋद्धि, विक्रियाऋद्धि, तपोऋद्धि, बलऋद्धि, तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः परस्परसमुच्चये वर्तते। औषधऋद्धि, रसऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि। ऋद्धिरहित आर्य अर्थ- चकार शब्द परस्पर समुच्चय के लिए है, ५ प्रकार के हैं- सम्यक्त्वार्य, चारित्रार्य, कार्य, जात्यार्य, जिससे यह जाना जाता है कि तिर्यंचों में मनुष्यों के क्षेत्रार्य। म्लेच्छ के २ भेद- १. अन्तर्वीपज म्लेच्छ २. समान स्थिति होती है। कर्मभूमिज म्लेच्छ। अन्तर्वीपज म्लेच्छों के ९६ द्वीप हैं, भावार्थ- मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु ३ पल्य एवं जिन्हें कुभोगभूमि कहते हैं। कर्मभूमिज म्लेच्छों के | जघन्य आयु अन्तमूहुर्त प्रमाण है। यही प्रमाण तिर्यंच पुलिन्द, शबर, यवन, शक, खस, बर्बर आदि अनेक आयु का भी है। इसी का ज्ञान कराने सूत्र में 'च' शब्द भेद जानने चाहिये। दिया है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज- मनुष्य आर्य, | श्री दि० जैन संस्कृति संस्थान, सांगानेर श्रीसेवायतन द्वारा मधुबन (शिखर जी) को वृन्दावन बनाने की कवायद शुरू मधुबन को वृन्दावन बनाने का सपना आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने देखा है, उसे साकार करने का बीड़ा श्रीसेवायतन ने उठाया है। श्री शिखर जी के तलहटी में बसे गाँवों में फैली गरीबी, अशिक्षा और पलायन को देखते हुए गाँव वासियों को दुग्ध उत्पादन योजना से जोड़कर वैकल्पिक रोजगार का अवसर प्रदान करते हुए उनके स्वावलम्बी एवं समृद्ध जीवन का सपना श्रीसेवायतन झारखण्ड सरकार के साथ मिलकर साकार कर रहा है। गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों को एक सौ पचास गायें उत्तम नस्ल की दी जा रही हैं। गाय वितरण का कार्य श्रीसेवायतन के अध्यक्ष श्री एम.पी. अजमेरा, राँची, मंत्री श्री सुनील अजमेरा, हजारीबाग एवं संजय जैन नोएडा, नई दिल्ली आदि के सत्प्रयत्नों से प्रारंभ हो चुका है। संस्था के अध्यक्ष श्री एम. पी. अजमेरा के कथनानुसार दुग्धयोजना से प्रति परिवार करीब तीन हजार रूपयों की मासिक आमदनी होगी। शिखर जी में दूध की भारी माँग है। छह माह के बाद पुनः एक सौ गायें प्रदान की जायेंगी। जब ग्रामवासी गाय पालन एवं दुग्ध उत्पादन में दक्ष हो जाएँगे, तब आगे यहाँ झारखण्ड सरकार के सहयोग से चिलिंग प्लाण्ट लगेगा। इसमें ग्रामवासियों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलेगा। इससे यहाँ के ग्रामवासियों का जीवन स्तर ऊँचा उठेगा। इसके साथ ही श्रीसेवायतन इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं स्वास्थ्यसुविधा प्रदान करने के लिए भी कृतसंकल्प है। विमल सेठी, गया (प्रचार मंत्री श्रीसेवायतन) मई 2009 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524339
Book TitleJinabhashita 2009 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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