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________________ विस्तारसंस्थाननिवृत्तिः प्रतीयते । अर्थ:- सूत्र में पड़े हुए 'च' शब्द से मध्य में भी उनका समान विस्तार समझ लेना चाहिये और इस प्रकार ऊपर, नीचे, बीच में तुल्य विस्तार का कथन करने से अनिष्ट विस्तारवाले संस्थानों की निवृत्ति प्रतीत हो जाती है। सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- उपर्यूर्ध्वभागे मूलेऽधोभागे च शब्दान्मध्ये भागे च तुल्यः समानो विस्तारो विष्कम्भो येषां ते तुल्यविस्ताराः । हिमवदादयः कुलपर्वताः बोधव्याः । अर्थ- इनका उपरि भाग, मूल भाग और 'च' शब्द से मध्य भाग सर्व ही समान चौड़ा है, ऐसे ये कुलाचल विशिष्ट आकारवाले जानने चाहिये । तत्त्वार्थवृत्ति - उपरि मस्तके मूले बुघ्नभागे चकारात् मध्ये च, तुल्यविस्तारा: तुल्यो विस्तारो येषां ते तुल्यविस्ताराः । अनिष्टसंस्थानरहिताः, समानविस्तारा इत्यर्थः । अर्थ:- ऊपर, नीचे और चकार से मध्य में तुल्य विस्तार है, समान है विस्तार जिनका वे तुल्य विस्तार वाले हैं, अनिष्ट आकृति से रहित हैं, समान विस्तार वाले हैं, यह इसका अर्थ है आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज- कुलाचलों के मध्य का विस्तार ३ प्रकार से घटित होता है । यथा1. दीवाल की तरह। 2. मृदंग पर रखे मृदंग की तरह । 3. डमरु पर रखे डमरु की तरह । भावार्थ:- हिमवन् महाहिमवन् आदि कुलाचल ऊपर, नीचे एवं 'च' शब्द से मध्य में भी समान विस्तारवाले हैं, यह अर्थ फलित होता है । एवं अनिष्ट विस्तार की निवृत्ति के लिए 'च' शब्द दिया है। तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च ॥ १८ ॥ सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति एवं तत्त्वार्थमंजूषा आदि ग्रन्थों में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं की है। तत्त्वार्थवृत्ति - ताभ्यां पद्महृदपुष्कराभ्यां द्विगुणद्विगुणास्तद्विगुणद्विगुणा विस्तारायामावगाहा ह्रदाः सरोवराणि भविन्त। पुष्कराणि च पद्मानि च द्विगुणद्विगुणविस्तारायामानि ज्ञातव्यानि । अत्र चशब्दः उक्तसमुच्चयार्थः । अर्थः- पद्म हृद और उसके कमल की अपेक्षा दूने - दूने विस्तार, आयाम और अगवाहवाले ह्रद और कमल होते हैं अर्थात् पद्मतालाब एवं उसके कमल की अपेक्षा आगे के तालाब और कमलों की लम्बाई, चौड़ाई और गहराई दूनी - दूनी जाननी चाहिए । यहाँ 'च' शब्द इसी 20 मई 2009 जिनभाषित Jain Education International के समुच्चय के लिए है । भावार्थ :- हिमवन् कुलाचल में स्थित पद्म तालाब एवं कमल की जो लम्बाई, चौड़ाई और गहराई है, तदपेक्षया महाहिमवन् आदि कुलाचलों में स्थित तालाब और कमलों की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई दूनी दूनी है। भरतः षड्विशंतिपंचयोजनशतविस्तारः षट् चैकोनविंशतिभागा योजनस्य ॥ २४ ॥ सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक श्लोकवार्तिक, सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति, तत्त्वार्थवृत्ति एवं तत्त्वार्थमंजूषा आदि ग्रन्थों में 'च' शब्द की व्याख्या नहीं की है। भावार्थ::- सूत्र में आये 'च' शब्द का अर्थ ' और ' T पुष्करार्धे च ॥ ३४॥ सर्वार्थसिद्धि एवं तत्त्वार्थवृत्ति में 'च' शब्द के विषय में कोई कथन नहीं दिया है। राजवार्तिक- संख्याभ्यावृत्त्यनुवर्तनार्थश्चशब्दः । द्विरित्येतस्याः संख्याभ्यावृत्तेरनुवर्त्तनार्थश्चशब्दः क्रियते, पुष्करार्धे च द्विर्भरतादयः संख्यायन्त इति । अर्थ- 'च' शब्द संख्या की अभ्यावृत्ति की अनुवर्तना के लिए है। द्वि इस संख्या की अभ्यावृत्ति की अनुवर्तना को 'च' शब्द का ग्रहण किया गया है। आधे पुष्करवर द्वीप में भी भरतादि २-२ हैं, इस संख्या को बताने के लिए 'च' शब्द का प्रयोग है । श्लोकवार्तिक- संख्याभ्यावृत्त्यनुवर्त्तनार्थश्चशब्द । धातकीखण्डवत् पुष्कारार्धे च भरतादयो द्विर्मीयन्ते । अर्थ- 'द्विर्धातकीखण्डे' इस पूर्व सूत्र से द्विर् इस संख्या की अभ्यावृत्ति का अनुवर्तन करने के लिए यहाँ सूत्र में 'च' शब्द दिया गया है। धातकीखण्ड के समान पुष्करार्द्ध में भी भरत आदि २ बार गिने जाते हैं । सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- तस्मिन् पुष्करार्धे जम्बूद्वीप भरतादयो द्विर्मीयन्त इत्येतत्यार्थस्यात्राभिसम्बन्धार्थश्चशब्दः । अर्थ- पुष्करार्ध में जम्बूद्वीप के भरत आदि से दुगुणपना है, इस अर्थ का यहाँ सम्बन्ध करने के लिए सूत्र में 'च' शब्द आया है। भावार्थ- धातकीखण्ड की तरह पुष्करार्ध में भी २ भरत, २ ऐरावत क्षेत्र, २ मेरु आदि व्यवस्थायें समान हैं । इसी की सूचना देने सूत्र में 'च' शब्द प्रयुक्त है आर्याम्लेच्छाश्च ॥ ३६ ॥ 1 सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, For Private & Personal Use Only सुख www.jainelibrary.org
SR No.524339
Book TitleJinabhashita 2009 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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