SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पूर्ण कर्मसिद्धान्त आवरणमुक्ति पर खड़ा है। ज्ञाना- । डंगपउनउ वनज प्रद डपदपउनउ यह नग्नता से होकर वरण दर्शनावरण आदि तमाम आवरण हटाने के अंगोपांग गुजरनेवाला संदेश है। इस संदेश को पहले स्वयं तक फिर हैं। ये हमारे ज्ञान को ढँकनेवाले, मौलिकताओं को ढँकने वाले औरों तक पहुँचायें । आवरण हैं, इसलिए इन्हें हटाने की जरूरत है। वीतरागता / दिगम्बरत्व के लिए भी बाह्य आवरण हटाने की जरूरत होती है, इससे स्थूल नग्नता घटित हो जाती है, लेकिन भीतर से नग्न हो पाना, यह तो उत्तरोत्तर होनेवाला विकास है । दिगम्बरता किसी साधक को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाती है। सब तरह के अबलम्ब छोड़ने की शुरुआत। नग्नता एक तरह की पारदर्शिता है प्ज पे ज्तंदेचंमदबल यह सामाजिकों के लिए विशुद्ध / निर्दोष ट्रान्सपेरेन्सी है। इसे मैं शुचिता का दर्पण मानता हूँ । यहाँ दूसरा पक्ष भी है, जिसके भीतर नग्नता आ गई है, वह बाहर आवरण पसंद नहीं करेगा । उसके ऊपर से वह गिर जायेगा- इसी भाषा में कहें, क्योंकि ग्रहण करने का भाव ही उसमें शेष नहीं रहेगा। मैं जब विहार कर रहा था, कलकत्ते की तरफ, तब एक एस.पी. मेरे साथ चल रहे थे, एक एस.पी. मेरे साथ चल रहे थे, उन्होंने पूछा की आपकी यह नग्नता हमें क्या संदेश देती है, देश को इससे क्या बेनीफिट मिला ? तब मैंने उन्हें जवाब दिया कि मैं इतने कम से काम चला सकता हूँ, एक संदेश तो यह मिलता है कि हम अपनी आवश्यकताओं को कम करें, दूसरा यह भी की हमने वह वस्त्र जो हमारे काम आते, का भी परित्याग कर दिया। अब वह किसी और के काम आयेंगे, जिन्हें इनकी आवश्यकता है। यह नग्नता का अर्थशास्त्र है । आचार्यश्री से जब पूछा गया कि जैन मुनि नग्न रहते है, दाँत साफ नहीं करते, तो वे अस्वच्छ रहते होंगे। तब उन्होंने कहा कि 'मैं स्नान नहीं करता? मैं तो चौबीसों घंटे स्नान करता हूँ मैं सनलाइट / मूनालाइट में नहाता हूँ। हवाएं मुझे सदा स्नान कराती ही हैं। ब्रह्मचारी सदा शुचिः- जो ब्रह्मचर्य की साधना करता है, उसके शरीर और मन दोनों पवित्र होते हैं। नग्नता विलक्षण / अमोघ वरदान है। 'चिपिंग स्पेरो, जुलाई-अगस्तसितम्बर २००८ से साभार चक्रवर्ती भरत को घर में ही वैराग्य हो गया था। जितनी ऊँचाई तक घर में विरक्त हुआ जा सकता है, उतनी ऊँचाई तक वैराग्य भरत जी ने पाया । यह भीतर का नाग्न्य था, उनकी भीतर की ग्रन्थियाँ घटी थीं, साथ में और जो भी कषायें थी वे कम हुईं। कषायों का, राग-द्वेष का घटना ही निर्ग्रन्थता है, यही दिगम्बरता की सीढ़ी है। और जैसे ही उन्होंने वस्त्रों का विमोचन किया और अपने आप में संलीन हुए, तो अन्तर्मुहूर्त में कैवल्य हो गया। नग्नता / निर्वस्त्रता ज्ञान और चारित्र के साथ ऊँचाई को पा लेती है और समाज को अपरिग्रह का संदेश देती है। हम अपने परिग्रह और अपनी इच्छाओं का परिमाण करें, कम से कम में अपना जीवन चलायें समाज में इन दिनों बढ़ती चारित्रहीनता (अब्रह्म) है, उससे बचें और तीसरी बात हम अल्पतम लें और अधिकतम लौटायें। श्री माणिकचंद पाटनी का निधन दिगम्बर जैन मेरेज ब्यूरो, दि० जैन सोशल ग्रुप जैसी नेक संस्थाओं के जनक, दि० जैन महासमिति के पूर्व राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, समाजरत्न श्री माणिकचंद जी पाटनी (बाबूजी) का आकस्मिक निधन दिनांक १६ अप्रैल २००९ को दोप. ३.४५ पर हो गया। अनकों स्नेहीजनों ने श्रद्धासुमन अर्पित किये। जिनमंदिर शिलान्यस समारोह सानंद सम्पन्न श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल जबलपुर में १००८ कुण्डलपुर के बड़े बाबा एवं १०८ आचार्य विद्यासागर जी महाराज के गगन भेदी जयघोषों के बीच १००८ मुनि सुव्रतनाथ जिनमंदिर का शिलान्यास मंदिर- वेदीनिर्माता श्री महेन्द्रकुमार जी जैन रायपुर, चूड़ीवाले एवं मूर्तिप्रदाता श्री सुरेन्द्र कुमार जी कटंगहा के कर कमलों से गुरुकुल अधिष्ठाता प्रतिष्ठाचार्य ब्र० जिनेश जी, ब्र० महेश जी, ब्र० नरेश जी के द्वारा मंत्रोच्चारपूर्वक सानंद सम्पन्न हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only अधिष्ठाता ० जिनेशकुमार जैन मई 2009 जिनभाषित 11 www.jainelibrary.org
SR No.524339
Book TitleJinabhashita 2009 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy