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________________ UPHIN/2006/16750 मुनि श्रीयोगसागर जी की कविताएँ आज मंदिरों के दरवाजों पर ताले लटकते नजर आते हैं पर यह मत समझना कि गुदगुदेदार मृदुल मखमली सेज पर भी जब फीज नजर आती हैं तब कहना होगा कि वैराग्य की किरणें फूट रही हैं भगवान् का विश्वास लुट चुका है हर दरवाजे पर लटकते ताले हमें अनेकांत को सुनने वालो और सुनाने वालो थोड़ा ध्यान दो एकांत की शरण लिए बिना इन पतित आत्माओं का उद्धार कैसे संभव है? इस बात का ज्ञाता वही हो सकता है जो अनेकांत को जानता है। मौन रूप से संदेश सुनाते हैं कि इंसान की अमूल्य धरोहर विश्वास लुट चुका है आश्चर्य की बात तो यह है। प्रस्तुति -प्रो० रतनचन्द्र जैन स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524338
Book TitleJinabhashita 2009 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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