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पठन-पाठन में समाविष्ट विकृतियाँ
डॉ० आराधना जैन 'स्वतंत्र' पठन-पाठन साक्षर व शिक्षित होने का साधन है।। प्रतिसमय होती रहती है अत: वहाँ पुस्तकें रखना अनुचित सुसंस्कारित जीवननिर्माण और जीवनयापन का श्रेष्ठतम | ही है। पुस्तकें सुरक्षित स्थान पर रखकर उन्हें अधिक साधन है। यह सुसंस्कृत सभ्य समाज और राष्ट्र के निर्माण | समय तक स्थायित्व प्रदान करना चाहिए। में सहायक है, समय का सदुपयोग तो होता ही है। पुस्तकें कहाँ पढ़ना चाहिए? यहाँ कहाँ से' तात्पर्य वर्तमान में पठन-पाठन में अनेक विकृतियाँ आ गयी | है पुस्तक पढ़ने का स्थान। सामान्यतया घर, विद्यालय, है, जिन्हें देख-सुनकर मन में अति पीड़ा होती है। एक | वाचनालय, मन्दिर आदि स्थानों पर बैठकर पुस्तकें पढ़ी घटना इस प्रकार है
जाती हैं। यह अवश्य है कि हमारे पठन-पाठन का स्थान एक बार सागर में मेरा एक परिचित के यहाँ | साफ स्वच्छ, हवा एवं प्रकाशवान् हो, जिससे अध्ययनरुकना हुआ। मैं प्रातः दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के | लेखन आदि में बाधा न हो सके। लिए शौचालय गयी, तो वहाँ देखा कि 'गृहशोभा','सरिता', अध्ययन करने का सर्वश्रेष्ठ समय कौनसा है? 'मुक्ता' तथा कुछ समाचार पत्र रखे हुए हैं। यह देख | हमारी संस्कृति में प्रात:कालीन ब्रह्ममुहूर्त का समय मन में अनेक प्रश्न उठे, पर स्वयं संतोषजनक समाधान अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ बतलाया गया है। इससमय न पा सकी, तो विचारा कि जिनके द्वारा ये पुस्तकें रखी शुद्ध हवा बहती है। नींद पूरी होने से शारीरिक थकान गई हैं, उनसे ही अपनी जिज्ञासा शान्त की जावे। मैंने समाप्त हो जाती है। मन मस्तिष्क स्वस्थ होता है, अतः उनसे सहज ही प्रश्न किया- "आपके इतने बड़े घर इस समय पढ़ा हुआ जल्दी याद होता है। सन्धिकाल में पुस्तकें रखने कहीं जगह नहीं है, जो आपको शौचालय में सिद्धान्तग्रन्थों के स्वाध्याय का निषेध है। शेष समय में पुस्तकें रखनी पड़ी या अन्य कोई कारण है?" वे | में अपनी सुविधानुसार अध्ययन किया जा सकता है। बोले ऐसा कोई कारण नहीं है। हमारे बच्चे को शौचालय सामान्यतया एक विषय एक अन्तमुहूर्त तक पढ़ना चाहिए। में आधा घण्टा लगता है, अतः वह वहाँ बैठकर पढ़ता इससे अधिक समय तक एक विषय में एकाग्रता नहीं है। सुनकर मन में आश्चर्य हुआ और खेद भी। इस रह पाती है। विद्यालयों-महाविद्यालयों में भी एक विषय घटना से हमारे सामने कई प्रश्न उपस्थित होते हैं- | के पढ़ने-पढ़ाने का समय ४५ मिनिट का होता है। अनन्तर १. पुस्तकें कहाँ रखनी चाहिए?
विषयपरिवर्तन करें या कुछ समय बाद वही विषय पढ़ें। २. पुस्तकें कहाँ बैठकर पढ़नी चाहिए?
हमें कैसे पढ़ना चाहिए? इस प्रश्न का समाधान पुस्तकें किस समय / कब पढ़नी चाहिए? हमारी संस्कृति में निर्देशित है। पढ़ने के लिए विद्यार्थी किस आसन से किस तरह बैठकर पढ़नी चाहिए? | को किसी कुचालक वस्तु लकड़ी या चटाई आदि आसन शौचालय में मलविसर्जन हेतु न्यूनतम व अधिकतम | पर बैठना चाहिए। रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। समय कितना होना चाहिए आदि।
पुस्तक हमारी आँख से लगभग एक फुट दूर होना चाहिए। आलेख के विषय के अनुसार प्रथम प्रश्न पर | प्रकाश पीछे की ओर से आये, जिससे सीधे आँख पर विचार करते हैं। हम सभी जानते हैं कि पुस्तकें ऐसे | उसका प्रभाव न पड़े। रात्रि में टेबिल लैंप के प्रकाश सुरक्षित स्थान पर रखनी चाहिए, जिससे उनका धूल, | में पढ़ने से आँखों पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता। टेबिल धूप, नमी, दीपक, सूक्ष्म जीव तथा चूहे आदि पुस्तकों | कुर्सी पर बैठ कर पढ़ने की विधि भी ठीक है। को हानि पहुँचानेवाले जीवों से बचाव हो सके। इस वर्तमान में पठन-पाठन में समाविष्ट अनेक विकृतियाँ हेतु पुस्तकों पर आवरण चढ़ाकर, वेष्टन में बाँध कर | दृष्टिगोचर होती हैं जैसेआलमारी में रखने की हमारी परम्परा है। शौचालय में | नमी तो रहती ही है, अनेक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति | पर ढाई-तीन वर्ष की उम्र में छात्र को शाला में भर्ती 26 अप्रैल 2009 जिनभाषित
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