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________________ लिए आहारक शरीर होता है। सिद्धि के लिए कहा है। यथा- लब्धिविशेष के सद्भाव आचार्य श्री विद्यासागर जी- सूत्र में आये 'च' | का ज्ञान कराने के लिए, सूक्ष्म पदार्थ का निश्चय कराने शब्द से आहारक शरीर भी लब्धिप्रत्यय होता है, यह | के लिए, संयम की रक्षा आदि के लिए प्रमत्तसंयम मुनि जानना चाहिये। आहारकशरीर की रचना करते हैं। एवं यह लब्धिप्रत्यय ___ भावार्थ- आहारक शरीर शुभ है, विशुद्ध है, निर्बाध | होता है, यह भी 'च' शब्द से ग्रहण करना चाहिए। है। सूत्र में 'च' शब्द आहारक शरीर के प्रयोजन की | श्री दि० जैन संस्कृति संस्थान, सांगानेर आस्थाओं को नकारती ये मोबाइल घंटियाँ । डॉ० ज्योति जैन पिछले दिनों विद्यार्थियों के एक कार्यक्रम के लिये। साहित्य, कला, संगीत, गीत आदि सभी को बिकाउ माल सूचना देने को उनके द्वारा दिये गये नम्बरों का उपयोग बनाकर बेचा जा रहा है। सम्मान, आस्था, श्रद्धा जैसे किया, तो दंग रह गयी, तरह-तरह की रिंगटोन सुनकर। शब्द बेमानी हो गये हैं। पहला ही नम्बर डायल करने पर सांवरिया...सांवरिया... | णमोकारमंत्र हो या गायत्री मंत्र, अन्य धार्मिक भजनों, जब तक मोबाइल उठा नहीं मजबूरीवश गाना सुनना | पदों, धुनों का मोबाइल रिंगटोन में बहुतायत से प्रयोग ही पड़ा। ये तो मात्र एक उदाहरण है। ऐसे ही न जाने हो रहा है। धर्म व्यक्तिगत आस्था की अनुभूति है न कितने कानफोड़, भद्दे गीतों, तरह-तरह की आवाजों, | कि प्रदर्शन की। हम भर तो लेते हैं, पर दूसरा जब खिलखिलाने, रोने या फूहड़ संगीत धुनों से आप हम | उसे सुनता है, उसका अनुभव? फिर पन्द्रह बीस सेकण्ड सबको रूबरु होना पड़ता है। इन रिंगटोनों को सुनवानेवाले | में पूरा होने से पहले ही उसे उठा लेने पर क्या मंत्र/ यह भूल जाते हैं कि फोन की रिंगटोन बडे-बुजुर्ग, | पद गायक संगीतकार का अपमान नहीं है। पर फैशन महिला-बच्चे आदि सभी सुनते हैं। व दिखावे में आज हम जाने अनजाने अपनी धार्मिक पहले हर फोन पर एक ही तरह की घंटी बजती आस्थाओं संस्कृति/संगीत/कविता सहित अपनी संवेदनाओं थी। फिर लोकल / बाहर की घंटी आयी। एक आदत का मूल्य घटाते जा रहे हैं। सी बन गयी थी। मोबाइल युग की शुरुआत होने पर आज जब चारों ओर का वातावरण मोबाइलयुक्त घंटी के समान ही आठ दस तरह की रिगंटोन सुनाई | होता जा रहा है, तब आस्था के केन्द्र मंदिरों में बाहर देती थी। पर आज आलम यह है कि आप रिंग करते | लिखना पड रहा है कि मंदिर जी में मोबाइल स्विच समय क्या रिगंटोन सुन लें कुछ पता नहीं। मोबाइल ऑफ कर प्रवेश करें। एक विडम्बना यह भी आ रही के इस युग में सड़क के दोनों ओर लगे बड़े-बड़े मोबाइल है कि कुछ साधुओं में पिच्छी, कमण्डलु, शास्त्र के साथ विज्ञापन होर्डिंग्स ने दिल दिमाग पर कब्जा कर लिया मोबाइल भी एक आवश्यक उपकरण बनता जा रहा है। मोबाइल उपभोक्ताओं की रिकार्डतोड़ संख्या आये | है। हमारे वीतरागी धर्म को रागरूपी नये-नये आवरणों दिन अखबारों की सुर्खियाँ बनती है। फुटपाथियों से लेकर का जामा पहनाया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर कुछ मंत्रियों तक, मजदूर से लेकर मैंनेजर तक, बच्चे, युवा, | दिन चर्चा होती है, फिर सब सामान्य हो जाता है। महिला, बुजुर्ग सभी के हाथ/जेब पर्स में एक आवश्यक | मोबाइल से होनेवाले खतरे, उनसे निकलने वाली उपकरण के रूप में मोबाइल ने अपनी उपस्थिति दर्ज रेज़ आदि सभी के बारे में समय-समय पर विशेषज्ञ करायी है। सचेत करते रहे हैं। सच भी है यदि मर्यादा में रहकर बात चल रही थी रिगंटोन की। बाजारवाद के किसी वस्तु का उपयोग करो, तभी लाभकारी है, अन्यथा शिकंजे में जकड़ी कम्पनियों और उनके अधिकारियों दुष्परिणाम तो भुगतने ही पडेंगे। का एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चिंतन अवश्य करना है किस तरह हम अपनी है। वह अपनी सारी बुद्धि इसी में झोंकते हैं। जिससे | धार्मिक / सांस्कृतिक आस्थाओं को बनाये रखें, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जाये। ऐसे में संस्कृति, | तभी धर्म, संस्कृति सुरक्षित रहती है। सर्वोदय, जैन मण्डी, खतौली-२५१ २०१ - अप्रैल 2009 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524338
Book TitleJinabhashita 2009 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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