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दिगम्बरो ! आओ! अपने सिद्धक्षेत्र बचायें! कैसे? सुझाव एवं एक अपील
जैन संस्कृति का मूलाधार वीतरागता है। जैन तीर्थंकरों ने वीतरागता के मार्ग पर चलकर ही मुक्ति प्राप्त की थी। जिस स्थान से मुक्ति पायी जाती है, उस क्षेत्रविशेष को सिद्धक्षेत्र कहा जाता है।
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प्राचार्य डॉ० नेमिचन्द्र जैन रहे हैं। हमारे क्षेत्रों का अपहरण करते जा रहे हैं। केशरिया जी का प्रकरण भी ऐसा ही हैं। श्री सिद्धक्षेत्र पावागिरजी का जलमंदिर - प्रकरण, मक्सी जी का पार्श्वनाथ मंदिर आदि भी कालान्तर में अपहरण के शिकार न हो जावें, विचारणीय है।
हमारे सिद्धक्षेत्र, अतिशय क्षेत्र सत् पुरुषार्थ के प्रेरक हैं। आज हम देख रहे हैं कि हमारे शाश्वत तीर्थ क्षेत्र शिखर जी पर अनधिकृत अधिकार करने का प्रयास चल रहा है। हमारे ही धर्मबन्धु श्वेताम्बर भाई हम दिगम्बरों को अपने अधिकार से वंचित करना चाहते हैं। पिछले १०० वर्षो से मुकदमेबाजी में फँसाये हुए हैं। करोड़ों रुपया बर्बाद हो रहा है। तीर्थक्षेत्र कमेटियाँ कार्य करती हैं । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी भी है, जो निरन्तर तीर्थक्षेत्रों के रक्षार्थ प्रयत्नशील है । पर अर्थ के अभाव में, हम सभी के व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण, पद और प्रतिष्ठा की दौड़ के कारण, पूर्णत: सफल नहीं हो पा रहीं हैं। हम सभी देख रहे हैं कि २२ वें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ जी एवं हजारों पवित्रात्माओं की सिद्ध-भूमि गिरनार जी पर हमारे देश के ही धनलोभी, आतंकी लोगों ने डण्डे के बल पर अधिकार जमाने का कार्य कर रखा है। सिद्धक्षेत्र गिरनारजी की तीसरी एवं पाँचवीं टोंक पर हम पूजन-वंदन से वंचित होते जा रहे हैं। ओर ऐसा भी मान लें कि गिरनार जी हमारे हाथों से खिसकता जा रहा है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। यह सब दिगम्बर और श्वेताम्बर की फूट का ही परिणाम है। अगर श्वेताम्बर भाइयों का सहयोग रहता, तो हमारे गिरनार जी क्षेत्र की पाँचवीं टोंक पर दत्तात्रेय की मूर्ति स्थापित न हो पाती। तीसरी टोंक पर गोरखनाथ जी की मूर्ति भी विराजमान न हो पाती। यदि हम यह मानकर चलें कि हमारे श्वेताम्बर जैन भाइयों के इशारे पर यह सब हो गया, तो असत्य नहीं हैं। हम जानते हैं कि जैसे दो बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर मौज मारता है, उसी प्रकार श्वेताम्बर जैन और दिगम्बरों जैन की फूट और लड़ाई के कारण ही अजैन बन्धु लाभ उठा । होने पर भी अतिशययुक्त हो जाते हैं, क्योंकि उनके निर्माण
दिगम्बर जैन समाज धन के मामलों में अधिकांशत: मन वचन काय से पूर्णत: दिगम्बर न होते हुए भी दिगम्बर ही है। अब विचारणीय है कि हमारे पूज्य शाश्वत सिद्ध क्षेत्रों और हमारे अधिकारों की रक्षा कैसे हो? सभी जानते हैं कि बूँद बूँद से घड़ा भरा जा सकता है। कुछ वर्षों पूर्व परम पूज्य १०८ आर्यनन्दी मुनिराज ने मुनि अवस्था में ही दिगम्बर जैन समाज से एक करोड़ रुपया की राशि एकत्रित करवा कर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी को प्रदान करवायी थी। जब एक दिगम्बर जैन मुनि सिद्धक्षेत्र के रक्षार्थ अपने त्याग एवं तपस्य को भी सदोष बनाकर महान् कार्यकर प्रायश्चित के द्वारा शोधन कर लेता है, तब हम सब तो गृहस्थ हैं । गजरथ चलवाते
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नये-नये अतिशय क्षेत्र बनवा रहे हैं, और अरबों का खर्च करते हैं। नये अतिशय क्षेत्र अतिशययुक्त न
22 अप्रैल 2009 जिनभाषित
शाश्वत सिद्धक्षेत्र सम्मेद शिखरजी पर भी ऐसी ही सोचनीय स्थिति है। अभी पिछले वर्षों में राँची उच्च न्यायालय ने दिगम्बरों को समानरूप से क्षेत्रवन्दना, पूजन करने का अधिकार दिया था। हमारे श्वेताम्बर भाई इसे पचा नहीं सके। पहिले श्री कल्याणजी आनन्दजी ट्रस्ट, जो कि श्वेताम्बरों का ही ट्रस्ट है एवं दिगम्बरों के बीच का झगड़ा था। अब कलकत्ता के श्वेताम्बर जैन भाइयों ने उच्चतम न्यायालय में प्रकरण कर रखा है। उनका कहना है कि सिद्धक्षेत्र सम्मेद शिखर पर न कल्याण जी आनन्दजी ट्रस्ट का और न दिगम्बरों का अधिकार है, बल्कि श्वेताम्बरों का ही अधिकार है, जिसका निर्णय होना शेष है। इस प्रकार श्वेताम्बर भाई अपने धन के बल से दिगम्बरों को परेशान करने में लगे हैं।
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