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________________ ज्वर को नापा जा रहा है और 'ज्वर भी है' यह संकेत दे रहा है, फिर भी नियामक नहीं है। गर्मी के दिनों में अलग देगा, सर्दी के दिनों में अलग देगा, मुख में लगायें तो अलग देगा, ललाट में लगायें तो अलग देगा। बगल में लगायें तो अलग देगा । भिन्न-भिन्न नाड़ी यंत्रों के प्रभाव से उस थर्मामीटर पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए नाड़ी यंत्र के ज्ञाता, न तो पहले थर्मामीटर के पास जाते थे और न अभी जा रहे हैं। वे थर्मामीटर को नहीं देखते थे। जिस व्यक्ति को देखना है पहले उस व्यक्ति को दूर से देखते थे, बुद्धि से परखा करते थे, जीभ देख लेते थे । काल के पास जीभ नहीं है, काल के पास नाड़ी नहीं है । काल में जीभ है, काल में नाड़ी अवश्य है लेकिन काल सो जीभ नहीं, नाड़ी सो जीभ नहीं फिर बाद में आपकी आँखों में ललाई देख करके, आपके पास यह यन्त्र, नियन्त्रण कैसा है यह देख करके, फिर बाद में कभी-कभी नाड़ी का स्पर्श करते थे। कुछ तो ऐसे होते हैं आयुर्वेदज्ञ । 'आयुर्वेत्ति अनेन इति आयुर्वेदः' आयु को जान सकता है। आयु भी एक कारण है । यह आपके जीवन का संचालक है। काल संचालक नहीं है। 1 । कई मूर्धन्य लोग कहते हैं और आज तक भी कहते आ रहे हैं कि आयु का अर्थ काल है। गलत बात है। आयु का अर्थ काल नापना है ही नहीं, काल है ही नहीं आयु में, आयु का अर्थ काल में बँधा हुआ आयु कर्म है। आयु का दूसरा अर्थ प्राण है । प्राण आपके पास दस हैं। अब दस में से सबसे उत्तम तो यह है, बल का ज्ञान आपके पास कितना है? इस प्रकार वात, पित्त, कफ के माध्यम से, आपकी वचन प्रणाली के माध्यम से आपकी बुद्धि के माध्यम से और आपकी शारीरिक स्थिति के माध्यम से आपके भविष्य को सामने लाने की क्षमता उनके पास आ जाती है आपके बिना वे नहीं कर सकेंगे। प्रभावक क्या रहा? उनकी बुद्धि को संकेत काल नहीं दे रहा है, जिसको हम प्रभाव के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। किन्तु अब हमारे ये सारे के सारे कार्यक्रम हो चुके हैं। उनके परिणाम घोषित हो चुके हैं। इसको कहते हैं चिकित्सा। जब से हम महाराज जी (आचार्य ज्ञानसागर जी) के पास आये हैं, तब से इतनी काल की महिमा गायी जा रही है कि मैं सोचता रहा कि संभव है, दक्षिण भारत में इस 10 अप्रैल 2009 जिनभाषित Jain Education International प्रकार का काल न हो। तो हम यह पूछ रहे हैं कि 'निष्क्रियाणि च' या तो ऐसा कह दो 'अत्र तु सक्रियाणि च।' वहाँ पर ( दक्षिण भारत में ) काल निष्क्रिय हो और यहाँ पर सक्रिय हो । वहाँ पर हुण्डावसर्पिणी काल काम नहीं कर रहा हो, यहाँ पर काम कर रहा हो । यदि कर रहा है तो सब जगह एक सा करना चाहिए तो ही काल प्रभावक हुआ। ये कुछ बातें ऐसी हैं कि काल द्रव्य कहाँ से प्रभावक हो गया? महावीर भगवान् के काल में चार पाँच कुछ महाप्रभावक हुए हैं, जैसे- गोशालक, मस्करी इत्यादि । अब सोचिये, उन्होंने रट लगा दी, उसका प्रभाव आज तक चला आ रहा है कि काल नियामक ही है । षट्कारकों में काल नहीं कारण- कार्य की व्यवस्था में कर्त्ता से लेकर अधिकरण तक का स्वरूप समझिए । अब कारण कार्य की व्यवस्था के बारे में सोचिये । प्रत्येक वाक्य जो विद्वानों के मुख से निकलता है, उसमें सभी कारक काम करते रहते हैं। ऐसे वाक्य का निर्माण करो जिसमें सारे-केसारे कारक आ जायें। पूज्यपाद स्वामी ने 'वीरभक्ति' में कहा है धर्मः सर्वससुखाकरो हितकरो, धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं धर्मान्नास्त्यपरः सुहृद् भवभृतां धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं, हे । 'धर्म' इसको कर्त्ता बना दिया 'कथंभूतः धर्मः ? 'सर्वसुखाकरो हितकरो यह हो गया कर्त्ता कारक धर्म सब सुखों की खान है और सबका हित करनेवाला है। 'धर्म बुधाश्चिन्वते' विद्वान् लोग धर्म का ही आश्रय लेते हैं । यह कर्मकारक हो गया। 'धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं धर्म के द्वारा ही शिवसुख की प्राप्ति होती है। यह करण कारक हो गया। 'धर्माय तस्मै नमः ' = इसलिए धर्म को नमस्कार हो यह सम्प्रदान कारक हो गया। चार कारक आपके सामने रख दिये। इन चारों में काल आया है या नहीं, आप सोचिये। एक-एक कारक आता जा रहा है। विभक्ति बदलती जा रही है। काल कोई काम नहीं कर रहा, बुद्धि काम कर रही है, तो काम हो जायेगा । 'कोऽत्र प्रभावकः ?' 'कालो नास्ति' काल प्रभावक नहीं है । अब आगे चलो- 'धर्मान्नास्त्यपरः सुहृद् भवभूतां' For Private & Personal Use Only धर्मं बुधाश्चिन्वते, धर्माय तस्मै नमः । धर्मस्य मूलं दया, धर्म! मां पालय ॥ 102 www.jainelibrary.org
SR No.524338
Book TitleJinabhashita 2009 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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