________________
अभाव में नहीं हो सकता। यह अनिवार्य हो गया. तो | लेकिन अकेली बुद्धि काम नहीं करेगी। अब टेम्प्रेचर इसका सद्भाव लाओ और इसके बिना नहीं हो सकता को नापने के लिए थर्मामीटर लगाया, लेकिन लगाने के तो इसका महाप्रभाव आपने स्वीकारा है। काल के जितने | पहले देखो, यह नापने का यंत्र कैसा है? चूँकि गर्मी भेद हैं वे महाप्रभावक रहें, ऐसा समझ कर यह महान् का समय था, अतः पहले ही टेम्प्रेचर ९८ डिग्री के गलती हम लोगों के द्वारा हुई है। कुन्दकुन्ददेव ने कहीं ऊपर चढ़ गया। गर्मी के कारण या टेम्प्रेचर के कारण भी अपने साहित्य में काल को महाप्रभावक के रूप ऊपर चढ़ गया, उसको उठाया और मरीज को लगा में नहीं स्वीकारा है।
दिया, अब क्या करें, १०४ डिग्री टेम्प्रेचर है। कैसा करें? आचार्य समन्तभद्र ने कारिका में 'प्रवक्तुः श्रोतुः' | 'कालः कलिर्वा कलुषाशयो वा श्रोतुः प्रवक्तुः ये दो पद दिये हैं। वक्ता का वचन और श्रोता का अभिप्राय | वचनाशयोर्वा'। अब थर्मामीटर बिगड़ गया। पहले थर्मामीटर ये मुख्य हो गये। ये दोनों विशेष कारण हैं। बाकी जितने | को उतारा (हाथ के एक्शन पूर्वक) पहले उसकी चिकित्सा हैं काल, कलिकाल, वो, ये, x, y, 2 सब सामान्य हैं। कर दी। पारा गरम होता है। पारे को क्यों रखा? सबसे
___ अब वक्ता को लीजिए, महाप्रभावक हो गया वक्ता, भारी होता है और थर्मामीटर में इतनी बुद्धि नहीं है। वक्ता का महान् प्रभाव रहता है। इसलिए वह वक्ता के उस पारे को खोज करके और थर्मामीटर में बंद करके रूप में स्वीकार किया जाता है। श्रोतुः' श्रोता महान् प्रभावक | रख दिया, टेम्प्रेचर का प्रभाव रहा उसके ऊपर। सबसे तो नहीं होता है, लेकिन फिर भी वक्ता और श्रोता के भारी पदार्थ बहुत जल्दी ऊपर जा सकता है। अब देखो बारे में यहाँ विचार करते हैं।
वह भारी भरकम है, उसे उठाने के लिए 'वेट' लगाना वक्ता कैसा होना चाहिए और श्रोता कैसा होना पड़ता है। लेकिन आप में बैठा जो क्रोध का व्यक्तित्व, चाहिए? वक्ता के गुणधर्म कौन-कौन से हैं? श्रोता के गुणधर्म कौन-कौन से हैं? दोनों के गुणधर्म क्रियाकलाप | हो गया, अब गड़बड़ हो गया अब झटका दो (एक्शन कैसे हैं? इसके बारेमें हम चर्चा करते हैं। 'कालः कलिर्वा' | पूर्वक) और ज्यादा गरम हो गया। जितना झटकाएँगे क्रोधी हुण्डावसर्पिणी काल तो असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी | व्यक्ति का पारा और गरम हो जायेगा। न ठण्डी पट्टी के बाद आता है, यह नियम है। उस हण्डावसर्पिणी से उतरनेवाला है और न गरम पट्टी से उतरनेवाला है। और उत्सर्पिणी में क्या-क्या कार्य होता है, यह कितना | एक ही शब्द से प्रभावित है। लम्बा चौड़ा काल होता है? यह वक्ता और श्रोता पर आप सोचिये, काल क्या काम कर रहा है? काल काल का आरोप आता है। जब भोगभूमि होती है तब | को आप क्यों प्रभावक मान रहे हो? निष्क्रियाणि च 'कालः कलिर्वा' काल का प्रभाव समाप्त हो जाता है। शुद्ध चार द्रव्य हैं। शुद्ध द्रव्य अशुद्ध द्रव्य के काम आ अपन भरत और ऐरावत क्षेत्र में रह रहे हैं। यहाँ पर । | सकता है। लेकिन काल प्रभावक नहीं हो सकता है। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में आप लोगों के उत्थान- आप लिख लो, प्रवचन में ऐसा ही बोलना चाहिए। आप पतन, आरोहण-अवरोहण, विकास-विनाश का क्रम चल | लोगों ने, जिन्होंने काल की प्रशंसा की है और उसके रहा है। ऐसी स्थिति में आप लोग जिस प्रकार का गुणगान के माध्यम से विशेष कार्य आगे किया है, समन्तउपादान लेकर आते हैं, तो काल पर वैसा ही आरोप | भद्र स्वामी ने किया ही नहीं, कर ही नहीं सकते और आता है। इसको हम एक उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट | उन्होंने यह कहा- 'अबुद्धिपूर्वापेक्षया दैवायत्तं' और करना चाहते है।
'बुद्धिपूर्वापेक्षया पुरुषायत्तं' इति जिनतत्त्वं । उन्होंने कहा महाप्रभावक शब्द काल के लिए दिया है, तो | जो बुद्धिपूर्वक कार्य होता है वह पुरुषायत्त है और जो वही कारण है। क्योंकि जड़ की चिकित्सा होती है। कार्य अबुद्धिपूर्वक होता है वह दैवायत्त है। जड़ को नापना है तो कैसे नापें? नापने वाला कौन है, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी, पञ्चम काल, षष्ठ बुद्धि के थर्मामीटर का प्रयोग कर सकते हैं, उसके द्वारा | काल आदि जो भी आ जाते हैं, ये सारे काल मुख्यतः हम बहुत जल्दी पहुँच जायेंगे उस तत्त्व तक, बद्धि के आप लोग कारण मानते हैं, पर ऐसा है नहीं। जैसे थर्मामीटर द्वारा ही नापा जायेगा वह तत्त्व, बिना बुद्धि के नहीं।। पर आरोप आ जाता है। थर्मामीटर में ज्वर नहीं है।
- अप्रैल 2009 जिनभाषित
१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org