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________________ में, नियन्ता के रूप में, निधि के रूप में स्वीकारा है, तभी से विद्वानों के माध्यम से यह सारा का सारा घोटाला हुआ है। ये सारे के सारे प्रकरण पठनीय हैं, चिन्तनीय हैं आज के विद्वद्गण के लिए। धवला जी का स्वध्याय चल रहा था, अभी चल रहा है। चूँकि यह नैमित्तिक कार्यक्रम रखा गया, तो हमने सोचा इन लोगों को भी समय देना चाहिए। हम क्या दे रहे हैं, काल तो दिया भी नहीं जाता और लिया भी नहीं जाता है, सामान्य है जब सामान्य है, तो जो चीज दी नहीं जाती, ली । भी नहीं जाती, तो उसका उपयोग क्या होगा या उसका क्या करना है, भगवान् जाने या आप लोग जानें। आप समझ रहे हैं कि काल को इतने ऊपर उठा कर क्यों देखा जा रहा है? विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली, लेकिन शुद्ध द्रव्यों के बारे में वैज्ञानिकों ने कोई डेफिनिशन - परिभाषा नहीं दी है। धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और कालद्रव्य शुद्ध द्रव्य हैं। अस्तिकाय में तीन द्रव्य हैं और काल को मिलाकर चार द्रव्य होंगे चार द्रव्यों में काल को अस्तिकाय नहीं माना है। अस्तित्व तो माना है, किन्तु कार्य के रूप में स्वीकार नहीं किया है। विज्ञान ने क्या किया? इतनी उन्नति आप लोगों के । सामने लाकर रख दी और कौन-कौन से द्रव्य सहयोग में लिये, सहायक के रूप में लिये हैं, मैं सोचता रहा, पढ़ता रहा, लोगों से पूछता रहा, सुनता भी रहा। वैज्ञानिक जो कोई भी आ जाते हैं, आप लोगों की दृष्टि में आ जाते हैं या आप लोग भेज देते हैं, तो मैं उनसे जानना चाहता हूँ कि काल द्रव्य के बारे में वे क्या विवेचन देना चाहते हैं। मैं थोड़ी सी जिज्ञासा की दृष्टि से मूल तत्त्व के बारे में जानना चाहता हूँ, तो 'नहीं के बराबर' वे विवेचन देते हैं । किसी द्रव्य के बारे में हमें समझना है, तो उसके गुणधर्म, लक्षण, क्रिया, गुणवत्ता, अस्तित्व का स्थान अधिकरण आदि-आदि ये कुछ ऐसे साधन हैं, जिनके माध्यम से हमारा प्रवेश उन तक हो सकता है। अँग्रेजी में शब्द है टाइम, अब टाइम क्या होता है? हमने 'काल' कहा । 'टाइम' यह भाषा का परिवर्तन हुआ। चूँकि पढ़ता रहता हूँ, जिज्ञासा रहती है, जिज्ञासा शांति के लिए श्रुत ही एक मात्र साधन है जिन्होंने चिन्तन किया, मनन किया और मिला चिन्तन जिन्हें उसके माध्यम से कुछ अभिव्यक्त हो जाता है, पूरा तो होता नहीं। 'टाइम' कहने । 1 8 अप्रैल 2009 जिनभाषित Jain Education International मात्र से आप उसे कौनसे द्रव्य की कौनसे निर्माण में, कौनसी पर्याय की उत्पत्ति में उन्नति में किस रूप में स्वीकार करते हैं, यह मेरी जिज्ञासा है? मगर कोई उत्तर नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आइंस्टीन की विचारधारा बताकर प्रायः ये सब लोग हमें उत्तर देने का प्रयास करते हैं। काल को उन्होंने स्वीकार किया है और जब काल को उन्होंने स्वीकारा है तो कहीं-न-कहीं उनको प्राचीन ग्रन्थ, सूत्र, तत्त्व, व्याख्या या भाष्य अवश्य मिला होगा, जिस किसी भाषा इत्यादि के माध्यम से या उनके सामने कोई भी व्यक्ति थे, उनके माध्यम से क्योंकि बिना भाषा के लिपि नहीं हो सकती, लेकिन इसके उपरांत भी उन्होंने काल को सापेक्ष माना है। कभी-कभी कहने में यह आ जाता है और काल निरपेक्ष भी साबित हो जाता है। यहाँ पर हमें थोड़ा सोचना चाहिए। । प्रश्न : काल प्रभावक है या नहीं? उत्तर : काल का प्रभाव है महाराज! क्या करें? उत्सर्पिणी है, अवसर्पिणी है, हुण्डावसर्पिणी है। जो नियामक होता है उसको हमें गौण नहीं करना चाहिए। उसको हमेशा सामने रख करके विचार करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक कार्य में उसका सहायोग आवश्यक होता है तो रखना चाहिए, लेकिन जिसका कोई सहयोग नहीं है, फिर भी अधिकरण के रूप में काम कर रहा है, उसमें भी, करण के रूप में काम कर रहा है, उसमें भी और जो सहयोग के रूप में काम कर रहा है, उसमें भी, और जो सामान्य रूप से काम कर रहा है, उसको भी नियामक मान कर जो समझते हैं, इसमें उनकी जो तत्त्वनिर्णय की दृष्टि है, वह नयविवक्षा न समझने का परिणाम है। जो कोई भी भूत खड़े होते हैं, वे बुद्धि के माध्यम से खड़े होते हैं, यह निश्चित बात है। उसके माध्यम से बहुत सारे व्यक्ति उसमें लग जाते हैं, युग उनके पीछे जुड़ जाता है, तो वह महाभूत बन जाता है उसको हटाना । फिर बहुत कठिन हो जाता है। हमने भी काल को स्वीकारा है, किन्तु यदि प्रभावक के रूप में स्वीकारा है, तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। कारण के रूप में स्वीकारा तो बहुत अच्छी बात है प्रभावक के रूप में स्वीकारा और विशेष रूप में स्वीकारा तो इसकी छानबीन तो हमें करनी ही पड़ेगी। क्योंकि 'येन विना न भवति' यह एक सूत्र जैसा है। इसके बिना नहीं हो सकता, इसके 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524338
Book TitleJinabhashita 2009 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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