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________________ हैं। दिनचर्या के रेखा-चित्र अबोले ही बहुत कुछ कह देते । भेंट किये हैं। उनके सार्थक लेखन की तरह उनके बोधगम्य प्रवचन भी सभ्य-समाज में चर्चा बनाये रहते हैं। सच, पुस्तक मात्र पठनीय नहीं है, संग्रहणीय भी है। वे दोनों जगह प्रवीण हैं। दोनों विधाओं का आचार्यत्व ऐसी पुस्तकें आड़े समय पर टार्च की तरह उपयोगी | उनके भीतर पाल्थी मारकर बैठा हुआ है। हमें दर्शन सिद्ध होती हैं। 13 जुलाई 62 को नहीं देवरी (म.प्र.) भी हो रहे हैं। वे धन्य हैं। उन्हें नमन है। में जन्मे गुरुदेव श्री समतासागर जी महाराज ने मात्र 46 405, गढ़ाफाटक, जबलपुर म.प्र. वर्ष की वय में अनेक सुंदर ग्रंथ लिखकर लोक को | गर्भपात के लिए माँ की अर्जी खारिज की बम्बई हाई कोर्ट ने मुम्बई ५ अगस्त- ३७ वर्ष पुराने कानून के बंधन से मुक्ति पाने के लिए एक अर्जी लेकर निकिता मेहता मुम्बई हाईकोर्ट की शरण में गई थी। उन्होंने बताया कि उनके गर्भ में बढ़ रही २४ हप्ते की सन्तान के हृदय में जटिल खराबी है। उसे जन्म के पहले ही गर्भपात के द्वारा समाप्त करने की अनुमति दी जाए, किन्तु निकिता की वह अर्जी अदालत ने खारिज कर दी है। हाईकोर्ट ने बताया कि निकिता की गर्भजात सन्तान अस्वाभाविक अवस्था में जन्म लेगी इस बात का प्रमाण आवेदन करनेवाले नहीं दे पाये। इसलिए गर्भपात की अनुमति नहीं मिल सकती। निकिता ने पति हर्ष मेहता और चिकित्सक निखिल दातार के साथ हाईकोर्ट में आवेदन किया था। इस निवेदन का आधार था चिकित्सा की रिपोर्ट। उन लोगों ने बताया था कि हृदय की खराबी लेकर ही शिशु जन्म लेगा। परन्तु उसके साथ ही एक और बात उन्होंने बताई थी कि जाँच के द्वारा जो तथ्य मिले हैं वे गर्भपात कराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट के इस अंश को गम्भीरता के साथ अदालत ने देखा है इतना ही नहीं, उसी अस्पताल के अन्य एक दल चिकित्साकों के द्वारा परीक्षण कराया गया था। उन्होंने बताया है कि हृदय में दोष लेकर शिशु के जन्म लेने की सम्भावना नहीं के बराबर है।' दूसरी तरफ निकिता के लिए सहानुभूति दिखाते हुए भी केन्द्रिय स्वास्थ्यमंत्री आनबूमणि रामदास ने गर्भपात सम्बन्धित कानून में संशोधन की सम्भावना को भी समाप्त कर दिया है। "वर्तमान" बाँगला दैनिक ५.८.०८ से साभार संकलन- सुशीलकाला, धुलियान, मुशीर्दाबाद, अनुवाद - ब्र. शान्तिकुमार जैन श्रमणपरम्परा में सम सुमतचन्द्र दिवाकर सम-समता, शम-शान्ति, श्रम में निहित तपस्या है, । पापों का प्रक्षालन स्वालम्बन, आत्मनिर्भरता और धर्म अहिंसा है। स्वाध्याय अहं विसर्जन बीज में, फूल, फल सम, जिनके जीवन की चर्या है सम में सभी समाते हैं। ज्ञान ध्यान तप में रत रहना सम धारण कर ही, श्रमण संत, ऐसी श्रमण साधना है। सम्यक् भाव बढ़ाते हैं। बाधाएँ आने पर भी भेद और अभेद का समन्वय समाधान है, समताभाव बनाये रहना, महावीर का स्याद्वाद मंत्र ऐसी श्रमण परम्परा है। जिसमें समता प्राणवान् है। पुष्पराज कॉलोनी गली नं.२, रत्नत्रय आराधन, थुति उच्चारण सतना (म.प्र.) नवम्बर 2008 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524333
Book TitleJinabhashita 2008 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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