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ग्रन्थ-समीक्षा
दिगम्बर जैन मुनि
सुरेश जैन 'सरल'
पुस्तक का नाम : दिगम्बर जैन मुनि। ग्रंथकर्ता-पू. मुनिश्री 108 समतासागर जी महाराज (गुरु : राष्ट्रसंत आचार्यप्रवर श्री 108 विद्यासागर जी महाराज)। प्रकाशक : श्री प्रेमचंद प्रमोदकुमार जैन,
_ महावीर मार्ग, बड़ौत (बागपत) उ.प्र.। पृ. संख्या : 68। मूल्य - स्वाध्याय
आज हमारा प्रगतिशील समाज स्वादिष्ट भोजन । राष्ट्रसंत, गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज आगम के प्रदाय करनेवाले अनेक होटलों के नाम जानता है, किन्तु | धरातल पर, सर्वोदयी भावना से अनुप्राणित हो जिनशासन उत्तम पाठन-सामग्री देनेवाले ग्रंथों के नहीं, जब नाम | की प्रभावना और अहिंसा तथा जीवदया की जादुई-बाँसुरी ही नहीं जानता तो पढ़ेगा क्या? प्रस्तुत पुस्तक एक नामवर | बजा रहे हैं। वे महावीरत्व के प्रमुख लोक चेतनावाही होटल से अधिक मायने रखती है और जो जिन्स (आयटम)| प्रतापी सैनिक हैं। हैं नूतन महावीर। प्रदाय करती है वे पाठक के मन और मस्तिष्क को दिगम्बरत्व और जैन मुनिचर्या पर समतासागर जी स्थायी महत्त्व की संतुष्टि देते हैं।
| ने सरल भाषा में भ्रमनाशक 17 बिन्दुओं पर सुंदर चर्चा समाज जिन महान् दिगम्बर-भेष-धारी साधुओं के | की है जिसमें मुनि के विहार, प्रवास, केशलौंच, दिगम्बरत्व दर्शन करने अनेक कष्ट उठाकर जाता आता रहता है, | अपरिग्रह आदि पर प्रेरक सामग्री है। मुनियों के 28 मूलगुणों उनके विषय की अनेक जानकारियों से वह जीवन भर | का आगमोचित्त कथन, पहले संस्कृत में, फिर हिन्दी अछूता रहता है। ऐसे समर्पित धर्मज्ञों के लिए पू. मुनि | में प्रस्तत करते हए पाँच महाव्रतों. पाँच समितियों. पाँच समतासागर जी ने इस कृति के माध्यम से दिगम्बर- | इंद्रियों का निमंत्रण छः आवश्यक और सात विशेष गुणों मुनि के परिचय और चर्या को पारदर्शी बना दिया है। का वर्णन आत्मसात करने योग्य है। अन्यगणों का कथन
पहले वे कथन करते हैं कि विभिन्न मतों में | करनेवाला स्थल (पृ. 34) बार-बार मननीय है। दिगम्बरत्व को भरपूर महत्त्व दिया गया है, चाहे ग्रंथराज मुनि की नग्नता का कारण जानने के लिए यह महाभारत देखें, चाहे वैराग्य शतक (भर्तृहरि), चाहे गुरुग्रंथ | पुस्तक आईना का कार्य करती है, फिर खड़े होकर साहिब और चाहे बाईबिल। सभी अपने अपने स्तर से | भोजन, केशलोंच का अभिप्राय, अस्नान, व्रत की वैज्ञानिकता, प्रतिसाद देते मिले हैं। मुनिवर ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य | प्रासुक जल और प्रासुक भोजन पर प्रकाश डाला गया में भी दिगम्बर जैनमुनियों के प्रवास और विहार पर | है। दिगम्बर मुनि के उपकरणों का परिचय, आहारचर्या प्रकाश डाला है और स्पष्ट किया है कि मौर्य-सम्राटों, | का अनुशासन मुनिदीक्षा से पूर्व की जानेवाली साधना, सम्राट सिकंदर, बादशाह सेल्यूकस, सम्राट सम्पति, | दीक्षा की प्रक्रिया को शोधपरक दृष्टि से प्रस्तुत किया बादशाह आंगष्टस, सम्राट खारवेल, से लेकर प्रजा-सम्राट | गया है। दिगम्बर जैनसाधु की तीन श्रेणियों और प्रायश्चित महात्मागाँधी तक ने जैनसंतों के अस्तित्व को स्वीकार | विधि गुरु-शिष्य और श्रावक को पठनीय है। यह पुस्तक किया है और उनसे शिक्षायें ग्रहण की हैं।
जैनधर्म में स्त्री-सन्यास का रहस्य खोलती है और उनके प.पू. समतासागर जी ने एक स्थल पर स्पष्ट किया निवास-प्रवास का ज्ञान भी कराती है। है कि सन् 1938 के आसपास भारत के दक्षिणी भू- ____ मुनि जीवन का चरम सल्लेखना-व्रत पर पूरा होना, भाग निजाम राज्य में दिगम्बरत्व पर बंदिश लगाने का | समाधि लेना और देह का अग्निसंस्कार करना भी संकलन प्रयास किया गया था, जिसे प.पू. आचार्य शांतिसागर | में जानने को मिलता है। जैनमुनि अपनी साधना से समाज जी महाराज की प्रेरणा से समाप्त किया गया था। और राष्ट्र को जो मौन योगदान देते हैं, वह किसने देखा?
समतासागर जी लिखते हैं कि वर्तमान आचार्य, | पृ. 58 पर दर्शाया गया है। अंत के पन्ने पर मुनि की 24 नवम्बर 2008 जिनभाषित
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