SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भवनत्रिक देव जिनभक्तों का सम्मान करते हैं या उपकार? ___पं. सुनीलकुमार शास्त्री विगत वर्षों में उपर्युक्त विषय पर बहुत से लेख । वज्रमय छत्र तानकर स्थित हो गयी। (देखें उत्तरपुराण एवं पस्तिकाएँ दृष्टिगोचर हुई हैं। शास्त्रीय प्रमाणों के | पर्व ७३/१३९-१४१) परन्तु 'प्राकृत विद्या' जनवरी-मार्च अनुसार तो यह भली प्रकार सिद्ध है कि जिनभक्तों पर | २००८ अंक के पृ. ६२ के अनुसार 'पद्मावती के मस्तक जब-जब कष्ट आए हैं, तब-तब चतुर्थ काल एवं पंचम पर विराजमान भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ १६वीं काल में भक्तों के द्वारा, जिनेन्द्र प्रभु की भक्ति या स्मरण | शताब्दी ईसवी के आसपास पंथव्यामोह के कारण बनना करने पर, देवों ने उनके संकट दूर करके उनका सम्मान | प्रारम्भ हो गईं जो गलत निरूपण था।' इससे पूर्व एलोरा किया है। आदि में जितनी भी उपसर्गसहित धरणेन्द्र-पद्मावती की प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद | मूर्तियाँ मिलती हैं, वे उपर्युक्त उत्तर-पुराण के उद्धरण हैं। इन ग्रन्थों में एक भी उदाहरण ऐसा देखने को नहीं के अनुसार ही मिलती रहीं। यह गलत परम्परा भट्टारकों मिलता कि भक्तों ने भवनत्रिक देवों की पूजा-भक्ति की | के काल से प्रारंभ हुई। इसी प्रकार वर्तमान में पंथव्यामोहहो और देवों ने उन भक्तों पर उपकार करते हुए, उनका | पूर्वक भवनत्रिक देवों के उपकारों की जो चर्चा पढ़ने कष्ट दूर कर दिया हो। यद्यपि यह सत्य है, फिर भी में आती है, वह भी अर्थ का अनर्थ मात्र ही है, रंच जैनसमाज का एक वर्ग अभी भी भवनत्रिक देवों की | मात्र भी आगम सम्मत नहीं है। स्वाध्याय प्रेमियों को पूजा-अर्चना-आरती इस आशय से करता हुआ देखा | चाहिए कि वे ऐसे लेखों को आगम के उद्धरण से मिलाते जाता है कि ये भवनत्रिक देव हमको सांसारिक-सुख | हए पढ़ें। प्रदान कर हम पर उपकार कर दें। एक लेख पिछले दिनों ऐसा भी पढ़ने में आया ___ कई माह पूर्व पद्मावती के उपकार संबंधी लेख | है, जिसका आशय है कि राजकुमार नमि-विनमि पर कुछ पत्रिकाओं में पढ़ने को मिले। उन लेखों को जब | पद्मावती ने बड़ा उपकार किया। इस पूरे लेख में एक आगम के परिप्रेक्ष्य में देखा गया, तो उनको लेखक के भी स्थान पर किसी शास्त्रीय उद्धरण में पद्मावती का मन की नितान्त कल्पना रूप पाया गया। उन लेखों में नाम नहीं है, जबकि लेखक ने स्वेच्छा से लेख के शीर्षक शास्त्रीय उद्धरण तो दिये गए, परन्तु उन उद्धरणों में पद्मावती | में 'पद्मावती का उपकार' लिखा है। आश्चर्य तो यह का नाम (मूल ग्रंथ में) कहीं भी पढ़ने को नहीं मिला। | है कि नमि और विनमि तो भगवान् आदिनाथ के काल लेखक ने आग्रहग्रस्त होकर शास्त्रों में उल्लेख न होने | में हुए थे (अर्थात् आज से लगभग एक कोड़ाकोड़ी पर भी पद्मावती का नाम जोड़ दिया, क्योंकि उनको | सागर पूर्व) आदिपुराण के १८वें पर्व में इस प्रकरण पद्मावती का उपकार दिखाना था। जैनसमाज भोली है, | में धरणेन्द्र का नामोल्लेख तो है, उनकी पत्नी या पद्मावती वह तो मात्र इतना देखती है कि किसी आचार्य ने शास्त्रीय | का उल्लेख ही नहीं है। फिर इस लेख में पद्मावती उद्धरण देते हुए यदि कोई लेख लिखा है, तो वह प्रामाणिक | का नाम कहाँ से आ गया? दूसरे, धरणेन्द्र ने भी नमि ही होगा। वर्तमान में समाज में सारी गलत परम्पराएँ | और विनमि पर कोई उपकार नहीं किया, बल्कि उनको इसी आधार से विकसित होती चली जा रही हैं। १२वीं | राज्य दिलाकर, राज्याभिषेकपूर्वक सम्मान किया। ऐसे शताब्दी के बाद भट्टारककाल में भी भट्टारकों ने जैनसमाज भ्रमपूर्ण लेख को पढ़कर समाज गुमराह हो रहा है और को इसीलिए अज्ञानी बनाकर रखा ताकि समाज उनकी समझ रहा है कि पद्मावती देवी ने ही राजकुमार नमिगलत परम्पराओं का विरोध न कर सके। वास्तविकता | विनमि पर उपकार किया था। वह पद्मावती वही थीं, तो यह थी कि भगवान् पार्श्वनाथ पर जब कमठ के | जो आजकल भगवान् पार्श्वनाथ से संबंधित प्रचारित की जीव ने उपसर्ग किया, तब ७ दिन बाद धरणेन्द्र ने उनके | जाती हैं। अतः यदि उनकी हम पर भी कृपा हो जाए, ऊपर फणाओं का समूह आवृत किया और उसकी | तो वह हमारे ऊपर भी उपकार करेंगी, यह बिलकुल पत्नी, मुनिराज पार्श्वनाथ एवं धरणेन्द्र के फणों के ऊपर । गलत धारणा है। 14 नवम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524333
Book TitleJinabhashita 2008 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy