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________________ कलम बनाओ, सारे समुद्रों की स्याही बनाओ और सरस्वती । से महाराजा, उससे अधिक अर्द्धचक्रवर्ती, जघन्य भोगभूमि ` को प्रभुगुण लिखने के लिए बिठाओ, कागज, कलम, स्याही समाप्त हो जायेंगे लेकिन सिद्धों के सुख का, गुणों का वर्णन पूरा नहीं होगा । के जीव, मध्यम भोगभूमिवाले, उत्कृष्ट भोगभूमिवाले देव, इन्द्र १६ स्वर्ग, नौ ग्रैवेयक, ९ अनुदिश, ५ पंचोत्तर वाले क्रमश: अधिक-अधिक सुखी हैं। उसमें भी सर्वार्थसिद्धिवाले देव अधिक सुखी हैं। सभी सर्वार्थसिद्धि वाले देवों के सुख को भी अनंत से गुणा करो तो भी सिद्धों के सुख की बराबरी नहीं हो सकती। क्योंकि वह अतीन्द्रिय, सहज, अव्याबाध, आत्मिक स्वाधीन हैं शेष सब इन्द्रियजन्य, क्षणिक विनाशी पराधीन सुखाभास ही हैं। ऐसे सुख को कैसे प्राप्त करें? कोई मजदूर कावटिका द्वारा निरन्तर बोझा ढोता है और उससे रहित होने पर सुखी होता है । ऐसे ही संसारी जीव काय की कावटिका से अनंत दुःखों के कारण कर्मरूपी बोझ को लेकर नाना गतियों में लिये लिये फिरता है। परिणामतः दुःखों को भोगता है । भीष्म पितामह जब युद्ध भूमि में मरणासन्न अवस्था में थे तब दो चारणऋद्धिधारी मुनीश्वर आते हैं, णमो सिद्धाणं' कहने को कहते जिसके प्रभाव से वे स्वर्ग में देव होते है। तीर्थंकर किसी के सामने झुकते नहीं हैं, लेकिन जब वैराग्य की धारा बहती है, दीक्षा के लिए उद्धत होते हैं उस समय " नमः सिद्धेभ्यः " कहकर सिद्ध भगवान् को साक्षी में रखकर ही दीक्षा लेते हैं। जैसे सूर्य उष्णता का और प्रकाश का उत्कृष्ट आधार है, समुद्र जल का उत्कृष्ट आधार है उसी प्रकार सिद्ध भगवान् आनन्द-सुख शान्ति के उत्कृष्ट आधार हैं। एक मुख में एक जीभ होती है, उससे कोई काम नहीं चल सकता इसीलिए एक मुख में अनन्त जीभ लगाओ, ऐसे अनन्त मुख बनाओं और उससे सिद्धों के एक समय के सुख का अनन्तवाँ भाग लो तो भी वर्णन नहीं होगा। तीन लोक तीन काल के पूरे शब्दों को एकत्रित करो, उसे भी अनंतानंत गुणा कर लो, इधर सिद्धों के एक समय के सुख का अनन्तवाँ भाग लो, वर्णन करने से पूरी शब्दराशि समाप्त हो जायेगी लेकिन सुख का वर्णन नहीं हो पायेगा, उसे तो मात्र केवली ही जान सकते हैं। क्योंकि शब्द सीमित हैं, और सीमित शब्द असीमित, अतीन्द्रिय सुख का वर्णन नहीं कर सकते । तिर्यंच से मनुष्य सुखी है। मनुष्यों से राजा, राजा नागपुर में पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव महाराष्ट्र की धरती पर प्रथम बार संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में बृहद पैमाने पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव का आयोजन तुलसीनगर नागपुर में दिनांक ३ दिसम्बर से ९ दिसम्बर तक नवनिर्मित भव्य जिनालय के प्रांगण 'विद्याधाम' में सम्पन्न होगा। आचार्य विद्यासागर जी एवं संघस्थ ३८ साधुओं का दिनांक १५ नवम्बर के पश्चात् नागपुर आगमन होगा। ऐसी जानकारी प्रचारप्रमुख 'महेन्द्र जैन रूपाली' एवं डॉ० संतोष मोदी ने दी है। ब्रह्मचारी श्री विनय भैया के मार्गदर्शन एवं दि. जैन परवारपुरा मंदिर ट्रस्ट के सान्निध्य में यह आयोजन सम्पन्न होगा । महेन्द्र जैन "रूपाली" मो. 9822061288 Jain Education International है, इस प्रकर सिद्धों का सुख अनुपम है, अलौकिक उसका वर्णन नहीं हो सकता। वे इतने पवित्र हैं कि उनके नाम लेने मात्र से ही जन्मजन्मान्तर के पाप कर्म दूर हो जाते हैं। जिन्हें सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति हो गई है ऐसे अनन्तसुख के धारी अनन्तानन्त सिद्ध- परमात्मा हो गये हैं, हो रहे हैं और होंगे, उनको मेरा मन-वचन-काय से, अत्यंत भक्तिभावना से, सबको एक साथ व प्रत्येक को अलग-अलग नमस्कार हो । 'वात्सल्यरत्नाकर' ( खण्ड २ ) से साभार पाठशाला शिक्षक दक्षता संवर्द्धन शिविर धर्मोदय परीक्षा बोर्ड, सागर द्वारा 21 सितम्बर से 28 दिसम्बर तक के प्रत्येक रविवार को पाठशाला के शिक्षकों को शिक्षण कला में दक्ष करने के लिए 'शिक्षक दक्षता संवर्द्धन शिविर' का आयोजन आसपास की 5-7 पाठशालाओं का समूह बनाकर दोपहर 11 बजे से 5 बजे तक किया जायेगा। इस शिविर में जो भी शिक्षक भाग लेना चाहें, वे निम्न नम्बर पर संपर्क कर तारीख तय करें । For Private & Personal Use Only संपर्क सूत्र- ब्र० भरत जैन रजिस्ट्रार धर्मोदय परीक्षा बोर्ड, सागर मो. 9424951771 नवम्बर 2008 जिनभाषित 13 www.jainelibrary.org
SR No.524333
Book TitleJinabhashita 2008 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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