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आदिकाल की याद दिलाती दीवाली
उपाध्याय श्री निर्भयसागर जी कार्तिक माह के अमावस्या की काली रात अपने । का दीपमालिका जलाकर जल, चंदन, अक्षत आदि अष्ट अंदर दिव्य-ज्योति, दिव्य-प्रकाश, दिव्य-ज्ञान, दिव्य-ऊर्जा | द्रव्य से पूजा एवं लड्डू चढ़ाकर निर्वाण कल्याणक मनाया
और वास्तविक सुख को आदिकाल से ही समाहित किये | जाता है। 24वें तीर्थंकर भगवान् महावीर स हुए है। प्रकाश को ज्ञान की प्रतिमूर्ति आदिकाल से माना | शासन नायक हैं, उन्होंने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या गया है। जलते हुए दीपक का प्रकाश जीवन और ज्ञान | करके केवल ज्ञान प्राप्त किया, फिर 30 वर्ष तक संसारिक का प्रतीक है, जब कि अंधकार अज्ञान और मौत का प्राणियों को अहिंसा धर्म का उपेदश दिया। कार्तिक कृष्ण प्रतीक है। दीपक जलाना जीवन में सुचिता, संघर्ष, त्रयोदशी को उपदेश देनेवाली धर्मसभा (समवशरण) को निर्भयता, स्वस्थ्यता, अर्थवृद्धि, परमार्थ सिद्धि आदि का | छोड़कर ध्यान-योग में लीन हो गये। इसी उपलक्ष्य में भी प्रतीक है, इसलिए दीपमालिका जलाकर आनंद मनाना धनतेरस मनाते हैं। फिर भगवान् महावीर स्वामी ने एक पर्व है जिसे दीवाली, दीपावली, दीपोत्सव व ज्योति- अमावस्या की प्रात:कालीन बेला में निर्वाण की प्राप्ति पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह दीपावली राष्ट्रीय | की। उस उपलक्ष्य में सोलह दीपक जलाकर अर्ध्य सहित पर्व नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय पर्व है क्योंकि यह नेपाल, | निर्वाण लड्डू चढ़ाकर दीपावली मनाई जाती है। श्रीलंका, मॉरिशस जैसे देशों में दीपावली के नाम से भगवान् महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम मनाया जाता है। यूनान, ईरान, मलेशिया और अरब देशों | गणधर स्वामी ने उसी दिन केवलज्ञान की प्राप्ति की। में यह अलग-अलग समयों में ज्योति-पर्व के रूप में | उसी उपलक्ष्य में शाम को गणधर-स्वामी की पूजा करके मनाया जाता है, जबकि वर्मा, जापान और थाईलैण्ड जैसे | 8 या 16 दीपक जलाकर दीपावली मनाते हैं। आठ दीपक . देशों में तोरोनगाशी नाम से मनाया जाता है। भारतीय | आठ कर्मों का नाश एवं अनंत-ज्ञान, अनंत-सुख आदि संस्कृति के अनुसार यह एक अनादिकालीन पर्व है। 8 गुणों की प्राप्ति के प्रतीक में जलाते हैं। 16 प्रकार
जैन धर्मानुसार दीपावली- युग के आदि में सूर्य- | की शुभ-भावना से धर्मतीर्थ के नायक तीर्थंकर बनते प्रकाश तो था, परन्तु अग्नि और दीपक का प्रकाश नहीं हैं, उसी के प्रतीक स्वरूप 16 दीपक जलाते हैं। प्रत्येक था, तब जैन धर्मानुसार प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी | दीपक में 4-4 ज्योति जलाई जाती हैं। जो अनंत-ज्ञान, ने पत्थर से पत्थर रगड़कर चिंगारी द्वारा अग्नि का | अनंत-दर्शन, अनंत-सुख, अनंत-शक्ति के प्रतीक होती आविष्कार कराकर भोजन पकाने एवं रात्रि में अंधकार | हैं। 16 दीपक में कुल 64 ज्योति जलती हैं, जो 64 से बचने के लिए दीपक जलाने की शिक्षा दी। (असि, प्रकार की ऋद्धियों के प्रतीक होते हैं। जिसकी परम्परा मसि. कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या की शिक्षा दी)| आज भी जैनसमाज में प्रवाहमान है। इस प्रकार आदमी ने अंधकार पर विजय प्राप्त की जिसे
दीपावलीज्योति-पर्व के रूप में मनाया। अतः दीपावली हमें उस श्रीराम का अयोध्या आगमन- हिन्दू धर्म के आदिकाल की याद दिलाती है, जब मानव ने अग्नि | अनेक संप्रदाय हैं उनमें अनेक मान्यताएँ दीपावली से के दर्शन किये थे। परन्तु आज अलग-अलग धर्म एवं | जुड़ी हैं। जैसे एक मान्यतानुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम संप्रदायों से अनेकों घटनाएँ इस दीपावली पर्व से जुड़ी के 14 वर्ष वनवास के उपरान्त अयोध्या आगमन पर हुई हैं। जिसका स्वरूप प्राचीन काल में अलग था और लोगों ने दीप-मालिका जलाकर स्वागत किया। इसी वर्तमान में अलग है। परन्तु प्राचीन घटनाएँ आज भी | उपलक्ष्य में दीप जलाकर दीपावली मानते हैं। परन्तु महत्त्वपूर्ण हैं।
| वाल्मीकि रामायण में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता भगवान् महावीर स्वामी का निर्वाण- जैनधर्म | है। के प्रर्वतक 24 तीर्थंकर हैं। उनके पंच-कल्याणक होते | नरकासुर का वध- दूसरी मान्यता अनुसार नरकासुर हैं, उनमें जब मोक्ष कल्याणक होता है, तब प्रत्येक तीर्थंकर | ने इस पृथ्वी पर आतंक फैला रखा था और उसने बल
8 नवम्बर 2008 जिनभाषित
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