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पूर्वक 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था। नारायण । लिया। बाद में रानी को ज्ञात हुआ कि उसका हार लकड़हारे श्री कृष्ण ने उसका वध करके उसके आतंक से कन्याओं | के पास है। उस हार के माँगने पर लकड़हारिन ने कहा को मुक्त कराया। इसी खुशी में लोगों ने दीप जलाकर | कार्तिक माह की अमावस्या को राजमहल सहित पूरे मिठाइयाँ बाँटी जिसे आज भी प्रतिवर्ष दीपावली के रूप | नगर में अँधेरा रहेगा और मेरे घर दीप जलेगा इस शर्त में मनाते हैं।
| पर मैं तुम्हें हार वापस देती हूँ। रानी ने इसे स्वीकार गोवर्धन पूजा- तीसरी मान्यता अनुसार इन्द्र के | कर लिया। कार्तिक की अमावस्या को उस लकड़हारे कहने पर ग्वालबालों ने इन्द्र की पूजा करने इन्द्रोज यज्ञ | के घर दीप जला, लक्ष्मी ने उसका आदर-सत्कार करने का निश्चय किया क्योंकि इन्द्र ने कहा कि इससे | स्वीकार किया और वहीं स्थायी रहने लगीं। अतिवृष्टि और अनावृष्टि से बचा जा सकता है। जब | भैरव एवं काली की पूजा- पाँचवीं मान्यता कृष्ण ने यह बात सुनी तो उन्होंने कहा- सुवृष्टि का | अनुसार जब कलयुग का प्रारंभ हुआ, तब काली ने कारण गोवर्धन पूजा है। अतः सभी इन्द्रोज पूजा छोड़कर | कलकी अवतार को मार करके समस्त क गोवर्धन पूजा करने लगे। इन्द्र को जब इस घटना की | करना चाहा। इसी उद्देश्य से वह राक्षसों जानकारी हुई, तब इन्द्र ने क्रोध में आकर प्रलयकारी | हुई आगे बढ़ रही थीं कि कलकी राक्षस अपना अंत वर्षा करने की आज्ञा मेघों को दे दी। कृष्ण ने अंगूठे | निकट जानकर देवों की शरण में पहुँचा, तब उन्होंने से गोवर्धन पर्वत उठाकर एवं सुदर्शन चक्र चलाकर उस | सलाह दी कि शंकर भगवान् के पास जाउ वर्षा से ब्रजवासियों की रक्षा की। इन्द्र ने कृष्ण को | समाधान हो जाएगा। भगवान् शंकर जी ने कहा तुम में विष्णु का अवतार मानकर क्षमा माँगी तब से गोवर्धन | से कोई एक मेरा रूप धारण करके रास्ते पर लेट जाओ। पूजा के रूप में दीवापली पर्व मनाया जाने लगा। | भैरव ने शिव का रूप धारण किया। जैसे ही काली
दीप जलाकर लक्ष्मी पूजन- चौथी मान्यता है | का पैर उस पर पड़ा है वैसे ही मुख से जीभ बाहर कि अमावस्या की रात को दीप जलाकर लक्ष्मी पूजन | निकल आई और संहार रुक गया। उस समय 10 चांदी करने से लक्ष्मी उस घर में आकर स्थायी निवास करने | के सिक्के भैरव धारण किए हुए थे। इसी उपलक्ष्य में लगती है। इस मान्यता अनुसार एक कथा है कि एक | दीपावली मनाई जाने लगी। राजा की सात बेटियाँ थीं। राजा ने बेटियों से कहा कि | दीपदान- छठवीं मान्यता है कि भगवान् वामण तुम सब ये स्वीकारो कि तुम मेरे भाग्य का खाती हो। ने राजा बलि की धरती को तीन कदम में नापा था। इस बात को सुनकर छोटी बेटी ने इसे स्वीकार नहीं | जिससे मौत उसके सामने दिखने लगी थी। तब भगवान् किया और कहा मैं अपने भाग्य का खाती हूँ। तब उस | ने कहा जो व्यक्ति अमावस्या की प्रत्युष बेला में स्नान राजा ने क्रोध में आकर रास्ते से जा रहे लकडहारे से | करके दीप दान करता है, उसे यमराज यातना नही देता उसका तत्काल विवाह कर दिया। राजकुमारी अपने | और लक्ष्मी सदा सहायक होती हैं। लकड़हारे पति के साथ प्रसन्नतापूर्वक चली गई और | सातवीं मान्यता अनुसार प्राचीनकाल में कार्तिक पति से कहा कि तुम कभी खाली हाथ घर नहीं आना। | माह की अमावस्या को दीप जलाकर यात्रा करना शुभ लकड़हारे को एक दिन कुछ न मिला तो वह मरा हुआ | मानते थे। यात्रा करते समय नाविक के लिए लकड़ी साँप लेकर घर आ गया। राजकुमारी ने उसे छत पर | के ऊपर ऊँचे दीपक प्रकाश-स्तंभ का काम करते थे। डाल दिया। प्रात:काल रानी रत्नों से जड़ा सोने का हार | जिसके सहारे अंधेरे में भी वे अपने गन्तव्य तक पहुँचते उतारकर स्नान करने लगीं, उस समय एक गिद्ध उस | थे। हार को उठाकर लकड़हारे के घर के ऊपर से जा रहा (लेखक एम.एस.सी. तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद था, तब मरे हुए साँप को देखकर गिद्ध हार छोड़कर | उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित दिगम्बर जैनमुनि हैं।) साँप लेकर उड़ गया। राजकुमारी ने उसे उठाकर रख
नवम्बर 2008 जिनभाषित 9
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