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के गहन अध्ययन को चिंतन की मथनी से मथकर प्राप्त तत्त्वरूप नवनीत को श्रोताओं को वितरित किया है। पू. आचार्यश्री ने आगम के कुछ ऐसे स्थलों की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया, जहाँ मूल संस्कृत टीका और उसके हिंदी अनुवाद में भिन्नता है। पू. आचार्यश्री ने विद्वानों को यह सलाह दी कि वे जहाँ तक संभव हो, ग्रंथों का स्वाध्याय मूल एवं प्राचीन संस्कृत टीकाओं के आधार पर ही करें। पू. आचार्यश्री ने सम्पन्न हुए दो श्रुताराधना शिविरों के माध्यम से सबको अपना चिंतन एवं अनुभूतिप्रसूत प्रवचन प्रदान कर उपकृत किया है। इस शिविर में एक वीतरागी संत के चरणों में बैठकर विद्वानों एवं स्वाध्यायशील व्यक्तियों के द्वारा श्रुत की आराधना की गई है, अतः यह शिविर सही अर्थ में श्रुताराधनाशिविर कहा जाना चाहिए। ऐसे तत्त्वदर्शक उपयोगी शिविर का संयोग हमें बार-बार प्राप्त हो यही भावना है।
मूलचन्द लुहाड़िया
प्रथम जैन तीर्थंकर का निर्वाण स्थल कैलाश मानसरोवर में कपिल दवे. अहमदाबाद। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ का निर्वाणस्थल कैलाश मानसरोवर के पास अष्टापद पर्वत पर कहीं होने संबंधी धारणाओं के बीच अंतरिक्षवैज्ञानिकों और न्यूयार्क के प्रमुख जैन सेंटर ने दावा किया है कि उन्होंने श्री आदिनाथ के निर्वाण स्थलवाले मूल अष्टापद पर्वत और उनका मंदिर खोज निकाला है।
सेंटर द्वारा कराए गए शोध के मुताबिक सेटेलाइट आई. आर. एस. एल. आई. एस. एस.-4 से मिले चित्रों में ज्ञानद्राग मठ के पास कुछ चौकोर ओर आयताकार आकृतियाँ दिखाई देती हैं। साथ ही इस स्थल का दौरा करने पर भी इसके खंडहर दिखाई देते हैं। हालांकि इस स्थल की पुष्टि अभी बाकी है। दरअसल, सेंटर न्यूर्याक के जैनमंदिर में अष्टापद का मॉडल बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इस सिलसिले में उसने दो वर्ष पहले मूल अष्टापद का पता लगाने के लिए शोध करना शुरू किया
था।
सेटेलाइट इमेजिंग की ली मदद : सेंटर की ओर से शोध कर रहे अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. पी.एस. ठक्कर ने बताया कि धर्मराज नारसांग के पास स्थित पहाड़ के, प्रभु आदिनाथ के निर्वाणस्थल होने की ज्यादा संभावना दिखती है। यह शोध जैनसाहित्य और वैज्ञानिक- दृष्टिकोण के आधार पर दो चरणों में हुआ था, पहला मई से जून 2006 और फिर जुलाई से अगस्त 2007 तक।
अलग-अलग अष्टापद : कैलाश मानसरोवर के पास अनेक स्थानों पर 'अष्टापद महातीर्थ' होने की मान्यता है, लेकिन इनके कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है। इसलिए शोध करने के लिए भेजे गए दल ने सभी संभावित स्थलों का अध्ययन किया। इसमें कैलाश, बारखा तराई सारबोचे के पास अष्टापद, नंदी पर्वत, ज्ञानद्राग मठ या गंगता मठ और सेरलोंग गोंपा के बीच स्थित अष्टापद पर्वत, ज्ञानद्राग या गंगता मठ और इसके उत्तर में स्थित छोटी पहाड़ी, कैलाश के नीचे स्थित 13 द्रीगुंग और त्रिनेत्र या गोंबो मैंग का अध्ययन किया गया।
कहाँ है नारसांग- डॉ. ठक्कर के मुताबिक संभावित अष्टापद स्थल, कैलाश पर्वत के दक्षिण पूर्व में है। इस स्थान पर सेरदुंग चुकसुम ला या गंगपो संगलम ला से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
"सेटेलाइट डाटा से धर्मराज नारसांग के अलावा किसी दूसरे स्थल को अष्टापद पर्वत या अष्टापद महातीर्थ मानने का कोई आधार नहीं है। यह स्थान अष्टापद का सबसे निकटतम संभावित स्थल लगता है, जिसकी पुष्टि की जरूरत है।" -डॉ. पीएस ठक्कर
वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक, 'दैनिक भास्कर',
भोपाल, २३ मई २००८ से साभार
- जून-जुलाई 2008 जिनभाषित 3
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