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________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता- श्री राजीव जैन अमरपाटन । वस्त्ररहित होकर सामायिक किया करते थे। इससे यह जिज्ञासा- क्या मनुष्य या तिर्यंच आयु का बंध | प्रमाणित है कि सामायिक-प्रतिमाधारी को नग्न होकर करनेवाला अणुव्रत तथा महाव्रत धारण कर सकता है? | (एकांत में) सामायिक करना आगम सम्मत है। समाधान- उपर्युक्त विषय पर गोम्मटसार-जीव- प्रश्नकर्ता- पं. देवेन्द्रकुमार शास्त्री जयपुर काण्ड गाथा ६५३ में इस प्रकार कहा है जिज्ञासा- क्या म्लेच्छ लोगों का खानपान व चत्तारि विखेत्ताई आउगबंधेण होदि सम्मत्तं। आचरण भ्रष्ट होता है? इनकी क्या विशेषताये हैं? अणुवदमहव्वदाई ण लहइ देवाउगं मोत्तुं॥ ६४३॥ समाधान- म्लेच्छ दो प्रकार के होते हैं १. अर्थ- चारों गति संबंधी आयुकर्म बंध हो जाने | कर्मभूमिज म्लेच्छ २. अंतरद्वीपज म्लेच्छ। इनमे अंतरद्वीपज __पर भी सम्यग्दर्शन हो सकता है। किन्तु अणुव्रत और म्लेच्छ तो वे हैं, जो ९६ अंतरद्वीपों में रहते हैं, जिनका महाव्रत देवायु के अतिरिक्त अन्य आयु के बंध होने | शरीर मनुष्यों जैसा होता है, परन्तु उनके मुख अश्व, पर प्राप्त नहीं हो सकते। सिंह, कुत्ता, भैंसा, सुअर, व्याघ्र आदि के मुख के समान भावार्थ- देव और नारकियों के न अणुव्रत होते होते हैं। ये कुभोगभूमिज मनुष्य भी कहलाते हैं। इनके हैं और न महाव्रत होते हैं। तिर्यंचों के अणुव्रत होते | शरीर की अवगाहना २००० धनुष होती है। ये सभी हैं। यदि किसी तिर्यंच को नारक, तिर्यंच या मनुष्यायु मंदकषायी, प्रियंगु पुष्प के समान श्यामल वर्णवाले और का बंध हो गया है, तो उसके अणुव्रत नहीं हो सकते, एक-पल्य-आयुवाले होते हैं। इनका भोजन फल-फूल किन्तु सम्यक्त्व हो सकता है। मनुष्यों के अणुव्रत तथा / तथा मीठी मिट्टी होता है। ये सभी मरण कर, यदि महाव्रत दोनों हो सकते हैं। यदि किसी मनुष्य को नरक, मिथ्यादृष्टि हैं, तो भवनत्रिकों में अथवा सम्यग्दृष्टि हों - तिर्यंच या मनुष्यायु में से किसी एक का बंध हो गया | तो पहले तथा दूसरे स्वर्ग में जन्म लेते हैं। आपके प्रश्न है, तो वह अणुव्रत तथा महाव्रत धारण नहीं कर सकता। से प्रतीत होता है कि आपने कर्मभूमिज म्लेच्छ से संबंधित (किन्तु सम्यक्त्व की उत्पत्ति हो सकती है)। देव तथा प्रश्न पूछा है। अतः अब उनकी चर्चा की जाती है। नारकी के तिर्यंचायु तथा मनुष्यायु का बंध हो जाने पर . कर्मभूमिज म्लेच्छ भी दो प्रकार के होते हैं। १. भी सम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है। म्लेच्छखण्डों में रहनेवाले मनुष्य २. आर्यखण्डों में रहनेजिज्ञासा- क्या सामायिक प्रतिमाधारी, वस्त्ररहित वाले म्लेच्छ। म्लेच्छखण्डों में रहनेवाले मनुष्य के संबंध होकर सामायिक कर सकता है? समाधान- उपर्युक्त जिज्ञासा के समाधान में | । म्लेच्छो के संबंध में श्री आदिपुराण भाग २, पर्व रत्नकरंडक-श्रावकाचार का श्लोक न १३९ द्रष्टव्य है- | ३१ में इस प्रकार कहा है चतरावर्तत्रित्तयश्चतःप्रणामः स्थितो यथाजातः।। धर्मकर्मबहिर्भूता इत्यमी म्लेच्छका मताः। सामयिको द्विनिषद्यस्त्रियोगशद्धस्त्रिसन्ध्यमभिवन्दी। अन्यथाऽन्यैः समाचारैरार्यावर्तेन ते समाः॥ १४२॥ अर्थ- मानवधर्म टीकाकार आचार्य ज्ञानसागरजी अर्थ- ये म्लेच्छखण्ड में निवास करनेवाले मनुष्य, महाराज के अनुसार चारों दिशाओं में तीन-तीन आवर्त | धर्मक्रियाओं से रहित हैं, इसलिए म्लेच्छ माने गये हैं। और चार बार नमस्कार करनेवाला, यथाजात (नग्न) रूप धर्मक्रियाओं के सिवाय अन्य आचरणों से, आर्य खण्ड से अवस्थित ऊर्ध्वकायोत्सर्ग और पदमासन का धारक | में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के समान हैं। तीनों योगों की शुद्धिवाला, तीनों संध्याओं में वन्दना को इस प्रमाण से ज्ञात होता है कि ये मनुष्य, धार्मिक करनेवाला, सामायिक-प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है। संस्कारों से रहित होने के कारण ही म्लेच्छ कहे गये प्रथमानुयोग में सेठ सुदर्शन के संबंध में कथा | हैं। परन्तु शारीरिक सुन्दरता गुणवानपना, सांसारिक कार्यो आती है कि वे अष्टमी तथा चतुर्दशी को श्मशान में | में दक्षता आदि में आर्यखण्ड के मनुष्यों से हीन नहीं 38 जून-जुलाई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524329
Book TitleJinabhashita 2008 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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