SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह की डोरी में बँधने के बाद वह आत्मा फिर चारों ओर से अपने आप को छुड़ा लेता है और उस डोरी के माध्यम से वह आत्मा तक पहुँचने का प्रयास करता है। कोई किसी बहाव को देश से देशान्तर ले जाना चाहता है, तो उसे रास्ता देना होगा, तभी वह बहाव वहाँ तक पहुँच पायेगा, अन्यथा वह मरुभूमि में समाप्त हो जायेगा । आप लोगों का उपयोग भी आज तक पुरुष तक इसलिये नहीं पहुँच रहा है कि इस तक बहने के लिए कोई रास्ता पास नहीं है और अनन्तों में वह जब वहने लग जाता है, तो वह उपयोग सूख जाता है, क्योंकि छद्मस्थों का उपयोग ही तो है । उस उपयोग के लिये, उस झरने के लिये कुछ रास्ता आवश्यक है, अनन्तों से वह रास्ता बंद हो जाता है, तो वह रास्ता सीधा हो जाता है, इसके लिये सही-सही रास्ता आवश्यक है और वही है काम, वही है असली विवाह, जिसके माध्यम से वह वहाँ तक जा सके। आपने विवाह के बारे में सोचा है कुछ आज तक ? जहाँ तक मैं समझता हूँ इस सभा में ऐसा कोई भी नहीं होगा, जो विवाह से परिचित न होगा, लेकिन विवाह के उपरान्त भी वह पुरुष (आत्मा) के पास गया नहीं, इसलिए विवाह केवल एक रूढ़िवाद रह गया है। S विवाह का अर्थ काम-पुरुषार्थ है और यह आवश्यक है, किन्तु इस विवाह के दो रास्ते हैं एक गृहस्थाश्रम सम्बन्धी व दूसरा मुनि - आश्रम सम्बन्धी । आप लोगों ने उचित यही समझा कि गृहस्थाश्रम का विवाह ही अच्छा है । अनन्त भोगसामग्रियों से आपको मुक्ति मिलनी चाहिये थी, किन्तु नहीं मिल पाई। जिस समय विवाह - संस्कार होता है, उस समय उस उपयोगवान् आत्मा को संकल्प दिया जाता है, पंडित जी के माध्यम से कि अब तुम्हारे लिये संसार में जो स्त्रियाँ हैं, वे सब माँ, बहिन और पुत्री के समान हैं। आपके लिए एकमात्र रास्ता है, इसके मध्यम से चैतन्य तक पहुँचिये आप | प्रयोगशाला में एक विज्ञान का विद्यार्थी जाता है, प्रयोग करना प्रारम्भ करता है, जिस पर प्रयोग किया गया है, उसकी दृष्टि उसी में गड़ जाती है और वह अपने आपको भूल जाता है, पास-पड़ौस को तो भूल ही जाता है, स्वयं को भी भूल जाता है। एकमात्र उपयोग काम करता है, तब वह विज्ञान का विद्यार्थी सफलता प्राप्त करता है, प्रयोग सिद्ध कर लेता है, प्रैक्टीकल के Jain Education International । माध्यम से वह विश्वास को दृढ़ बना लेता है, ऐसी ही प्रयोगशाला है विवाह । विवाह का अर्थ है दो विज्ञान के विद्यार्थी पति और पत्नी । पत्नी के लिये प्रयोगशाला है पति और पति के लिये प्रयोगशाला है पत्नी, पत्नी का शरीर नहीं आत्मा ! यह ध्यान रहे कि वे ऊपर स्त्री व पुरुष हैं, पर अन्दर से दोनों पुरुष हैं (अर्थात् आत्मा हैं) स्त्रियाँ भी पुरुष के पास जा रही हैं और पुरुष भी पुरुष के पास जा रहे हैं। दोनों पुरुष हैं, पर ऊपर स्त्री पुरुष के वेद के भेद हैं, किन्तु वेद के भेद ही वहाँ पर अभेद के रूप में परिणत हो रहे हैं। अभेद की यात्रा प्रारम्भ रही है, यह है विवाह की पृष्ठभूमि! अभी तक आप लोगों ने विवाह तो किया होगा, पर पति सोचता है पत्नी मेरे लिये भोगसामग्री है, बस इतना ही समझकर ग्रन्थि बँध जाती है, विवाह हो जाता है, बंधन में बँध जाते हैं, इसलिये आनन्द नहीं आता । इसीलिये जैसे-जैसे भौतिक कायायें सूखने लगती हैं, बेल सूखने लगती है, समाप्तप्राय होने लग जाती है, तो दोनों एक दूसरे के लिये घृणा के पात्र बन जाते हैं। पति से पत्नी की नहीं बनती और पत्नी से पति की नहीं बनती और बस बीच में दीवार खिंच जाती है। वह तो लोकनाता है, जिसे निभाते चले जाते हैं, निभना नहीं निभाना पड़ता है, क्योंकि अग्नि के समक्ष संकल्प किया था । दो बैल थे, वे एक गाड़ी में जोत दिये गये । एक किसान गाड़ी को हाँकने लगा। एक बैल पूर्व की ओर जाता है, तो एक बैल पश्चिम की ओर, बस परेशानी हो जाती है। बैलों को तो पसीना आता ही है, किसान को भी पसीना आना प्रारम्भ हो जाता, वह सोचता है कि अब गाड़ी आगे नहीं चल पायेगी । यही स्थिति गृहस्थाश्रम की है। आप लोगों का रथ प्रायः ऐसा ही हो जाता है । पत्नी एक तरफ खींच रही है, तो पति दूसरी ओर, अन्दर का आत्मा सोच रहा है कि यह क्या मामला हो रहा है? आप लोग आदर्श विवाह तो करना चाहते हैं दहेज से परहेज करने के लिए, किन्तु आदर्श विवाह के माध्यम से अपने जीवन को आदर्श नहीं बना पाये। इसलिए आपका वह आदर्श विवाह एकमात्र आर्थिक विकास के लिए कारण बन सकता है, किन्तु पारमार्थिक विकास के लिए नहीं बनता । आदर्श विवाह था राम और सीता का। दोनों ने मई 2008 जिनभाषित 7 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524328
Book TitleJinabhashita 2008 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy