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________________ किस प्रकार उस विवाह के माध्यम से, डोरी के माध्यम । भोग का (सांसारिकता का) अनुपालन नहीं, भोग में चैतन्य से, सम्बन्ध के माध्यम से, अपने जीवन को सफलीभूत | का सहारा लिया, उसके बिना वे चल नहीं सकते थे, बनाया। आपको याद रहे कि वह सीता भोगसामग्री थी| चलना अनिवार्य था, मंजिल तक पहुँचना था, इसलिए राम के लिए, राम भोगसामग्री थे. सीता के लिए। पर | साथी को अपनाया था, ध्यान रहे कि विवाह पद्धति का उनकी दृष्टि में अनन्त जो सामग्री बिछी थी चारों ओर | अर्थ मोक्ष-मार्ग में साथी बनाना है। विवाह का अर्थ एकान्त वह भोगसामग्री नहीं थी, उस प्रयोगशाला में जो कोई से संसारमार्ग की सामग्री नहीं है। भी पदार्थ इधर-उधर बिखरा हुआ है, विद्यार्थी को उनका विवाह तो पाश्चात्य शहरों में भी होते हैं, पर कोई ध्यान नहीं रहता, उसी प्रकार उन्हें बाहर की वस्तुओं| वहाँ के विवाह, विवाह नहीं कहलाते। वहाँ पर पहले से कोई मतलब नहीं था। उनकी यात्रा अनाहत चल | राग होता है, बाद में बन्धन होता है, यहाँ पहले बन्धन रही थी। इसी बीच हजारों स्त्रियों के साथ जानेवाला | होता है, पीछे राग होता है, और वह राग नहीं आत्मानुराग रावण, एक भूमिगोचरी सीता के ऊपर दृष्टिपात करता | प्रारम्भ हो जाता है। पहले संकल्प दिये जाते हैं, फिर है, किन्तु सीता की आत्मा के ऊपर दृष्टिपात नहीं करता, बाद में उनके साथ सम्बन्ध होता है, अन्यथा नहीं। इसका सीता की आत्मा तक उसकी दृष्टि नहीं पहुँचती, अपितु | अर्थ क्या? इसका अर्थ बहुत गूढ़ है। जब तक उनका गोरी-गोरी उस काया की माया में डूब जाता है और (राम व सीता का) सांसारिक गृहस्थधर्म चलता रहा, अपने जीवन को भी वह धो देता है। यह ध्यान रहे | तब तक उन्होंने एक-दूसरे के पूरक होने के नाते अपने कि उसकी दृष्टि सीता की आत्मा तक पहुँच जाती, जीवन को चलाया। अन्त में सीता कहती है कि हमने तो उसे अवश्य मार्ग मिल जाता, उसका जीवन सुधर | एम. ए. तो कर लिया, अब पी.एच.डी. करना है, स्वयं जाता। सीता की चर्या के माध्यम से राम का जीवन | का शोध करना है। शोध के लिए पर्याप्त बोध भी मिल सुधरा और राम के जीवन के माध्यम से, सीता का | चुका है। बोध की चरम सीमा हो चुकी है। बोध की जीवन सुधरा । वे एक दूसरे के पूरक थे। जैसे कि राह | चरम सीमा होने के उपरान्त ही, शोध हुआ करता है। में दो बुड्ढे परस्पर एक-दूसरे के सहयोग से चलते | एम. ए. का विद्याध्ययन शोध के लिए आवश्यक है, जाते हैं, गिरते नहीं हैं। इस प्रकार वे दोनों भी चले | उसके बिना शोध नहीं हो सकता, उस बोध को ही जा रहे थे। इधर-उधर उपयोग न भटके इसलिए दृढ़ | शोध समझ लें, तो गलत हो जायेगा, आज यही हो रहा निश्चय करके एक विषय में दो विद्यार्थी जटे हए थे,। है। शोध करना तो दूर रह जाता है, मात्र इतना ही पर्याप्त राम और सीता। ज्यों ही रावण बीच में आया, तो राम | समझ लेते हैं कि सोलहवीं कक्षा पास कर ली, तो हमने सोचते हैं कि इसके लिये यहाँ पर स्थान नहीं है, हमारे | बहुत कुछ कर लिया, पर वस्तुतः किया कुछ नहीं। जीवन के बीच में कोई नहीं आ सकता। कोई आता | शोध अब प्रारम्भ होगा, अपनी तरफ से अनुभूति अब है, तो वह व्यवधान सिद्ध होगा और उस व्यवधान को | प्रारम्भ होगी। अभी तक अनुभूति नहीं, मात्र गाइडैन्स हम सर्वप्रथम दूर करेंगे। जब तक यह रहेगा, तब तक | मिली है। एम. ए. का अर्थ है दूसरे को गाइडैन्स के हम दोनों का जीवन एक साथ चल नहीं सकता, फिर | माध्यम से अपने आप के बोध को समीचीन बनाना भी रावण आता है, तो राम को कुछ प्रबन्ध करना ही | और फिर इसके उपरान्त अनुभूति का अर्थ- अब किसी पड़ता है। रावण को मारने का इरादा नहीं किया राम | प्रकार की टेक्स्ट बुक नहीं है, कोई बन्धन नहीं है, ने, मात्र अपने प्रशस्त-मार्ग में आनेवाले व्यवधान को अब शोध करना है। हटाने का प्रयास किया और सीता के पास जाने का सीता के पास अब इतनी शक्ति आ चुकी थी प्रयास किया। | कि वह राम से कहती है- अब मुझमें इतनी शक्ति आ सीता ने जिस संकल्प के साथ इस ओर कदम | चुकी है कि आपकी आवश्यकता नहीं है। अब तीन बढाया था, उसकी रक्षा करना, समर्थन करना, राम का लोक में जो कोई भी पदार्थ बिखरे परम धर्म था और राम का समर्थन करना सीता का किसी भी पदार्थ को निकाल कर आत्मा को चन सकती परम धर्म था। उन दोनों ने धर्म का अनुपालन किया।। हूँ और बोध का विषय बना सकती हूँ, जैसे कि सामान्य 8 मई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524328
Book TitleJinabhashita 2008 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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