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________________ पुरुषार्थ की ओर अनन्त सुख की उपलब्धि करें, यही । लिये मार्ग सुझाया। महान् अध्यात्मसाहित्य का सृजन किया कामना है। और आज हमारे जैसे भौतिक चकाचौंध के युग में ___मुझे जो यह इस प्रकार ज्ञान की, साधना की | रहते हुये भी कुछ कदम उस ओर उठ रहे हैं, तो मैं थोड़ी सी ज्योति मिली है, वह पूर्वाचार्यों से (पूज्य गुरुवर | समझता हूँ कि बाह्य निमित्त से वे आचार्य कुन्दकुन्द श्री ज्ञानसागर जी महाराज से) मिली है। हम पूर्वाचार्यों | और आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज आदि जो पूर्वाचार्य के उपकार को भुला नहीं सकते। वैषयिक दृष्टि को | हुये, उनका ऋण हम पर है और उनके प्रति हमारा भूलकर विवेकदृष्टि से इनके उपकारों को देखो, इनके | यही परम कर्त्तव्य है कि उस दिशा के माध्यम से अपनी द्वारा बताये कर्तव्यों की ओर अपना दृष्टिपात करो और | दिशा बदलें और दशा बदलें, अपने जीवन में उन्नति देखो, कि इनके संदेश किसलिए हैं? स्व-आत्म पुरुषार्थ | का मार्ग प्राप्त करें, सुख का भाजन बनें और इस परम्परा के साथ उनके उपदेश आप लोगों के उत्थान के लिए को अक्षुण्ण बनाये रखें, ताकि आगे आनेवाले प्राणियों हैं किन्तु उनका अपनी आत्मा में रमण स्वयं के कल्याण | के लिए भी यह उपलब्ध हो सके। आचार्य कुन्दकुन्द के लिये था। कोई भी व्यक्ति जब स्वहित चाहता है | की स्मृति के साथ मैं आज का वक्तव्य समाप्त करता और उसका हित हो जाता है, तो उसकी दृष्टि अवश्य | हूँदूसरे की ओर जाती है, इसमे कोई सन्देह नहीं। उन्होंने कुन्दकुन्द को नित न, हृदय कुन्द खिल जाय। सोचा कि ये भी मेरे जैसे दुःखी हैं, इनको भी रास्ता परम सुगन्धित महक में, जीवन मम घुल जाय। मिल जाये। आचार्यों को जब ऐसा विकल्प हुआ, तो (दोहा-दोहन) उन्होंने उसके वशीभूत होकर प्राणियों के कल्याण के । 'चरण आचरण की ओर' से साभार पार्श्वनाथ विद्यापीठ निबन्ध प्रतियोगिता 2007-08 उद्देश्य- जैन समाज लम्बे समय से यह अनुभव। आयुवर्ग के आधार पर निबन्ध के लिए निर्धारित कर रहा है कि लोगों को जैनधर्म, दर्शन एवं संस्कृति की | पृष्ठ संख्यायथार्थ जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि जैनदर्शन में विश्वदर्शन | ___ 18 वर्ष तक- डबल स्पेस में फुलस्केप साइज में बनने की क्षमता है। इस उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए | टंकित (typed) पूरे चार पेज। 'पार्श्वनाथ विद्यापीठ' नवयुवकों के बौद्धिक विकास एवं | 18 वर्ष के ऊपर- डबल स्पेस में फुलस्केप साइज जैनधर्म, दर्शन के प्रति उनकी जागरूकता को बनाये रखने | में टंकित (typed) पूरे आठ पेज। के लिए प्रतिवर्ष एक निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन कर पुरस्कार- निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित प्रतियोगी रहा है, जिससे कि लोगों में पठन-पाठन एवं शोध के प्रति को निम्नानुसार पुरस्कार देय होगारुचि पैदा हो एवं साथ ही विचारों का आदान-प्रदान हो 18 वर्ष तक के प्रतियोगी के लिये- प्रथम पुरस्कारसके। इस कड़ी में यह पाँचवीं निबन्ध प्रतियोगिता है।। 2500 रु., द्वितीय पुरस्कार-1500 रु., तृतीय पुरस्कार-1000 विषय : 'अनेकान्तवाद : सिद्धान्त और व्यवहार' निबन्ध के साथ प्रतिभागी की पासपोर्ट साइज फोटो, 18 वर्ष के ऊपर के प्रतियोगी के लिये-प्रथम पूरे पते सहित अपनी शैक्षिक योग्यता का विवरण एवं हाई| पुरस्कार-2500 रु.,द्वितीय पुरस्कार-1500 रु., तृतीय पुरस्कारस्कूल सर्टिफिकेट की फोटो प्रति (Xerox copy) भेजना | 1000 रु. अनिवार्य है। प्रतियोगिता की भाषा- निबन्ध हिन्दी या अंग्रेजी निबन्ध भेजने का पता दोनों भाषाओं में हो सकते हैं। संयोजक- निबन्ध प्रतियोगिता-2007-08, पार्श्वनाथ अन्तिम तिथि- इस निबन्ध प्रतियोगिता के लिये विद्यापीठ आई.टी.आई.रोड, करौंदी, वाराणसी- 221005 | अ | आलेख 30 दिसम्बर, 2008 तक भेजे जा सकते हैं। (उ.प्र.) डॉ. श्री प्रकाश पाण्डेय निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी-5 (उ. प्र.) 12 मई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524328
Book TitleJinabhashita 2008 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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